राहुल गांधी से इतना डर क्यों रही है पीएम मोदी टीम?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: January 19, 2021 08:14 PM2021-01-19T20:14:46+5:302021-01-19T20:15:59+5:30
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भी अन्ना आंदोलन के कारण भ्रष्टाचार की सियासी धारणा बनी तो केन्द्र की सत्ता कांग्रेस के हाथ से निकल गई, जबकि इसके बाद भी न तो भ्रष्टाचार खत्म हुआ, न कालाधन आया और न ही महंगाई कम हुई.
राहुल गांधी न तो प्रधानमंत्री हैं, न ही विपक्ष के नेता है और न ही कांग्रेस अध्यक्ष हैं, फिर पीएम मोदी टीम उनसे इतना डर क्यों रही है.
राहुल गांधी जब भी कोई बयान जारी करते हैं, जब भी प्रेस कांफ्रेंस करते हैं, पीएम मोदी टीम पाॅलिटिकल काउंटर करने आ जाती है.दरअसल, देश में कोई मुद्दा, कोई आरोप कितना सही या गलत है, इससे हट कर चलने वाली राजनीतिक लहर, सियासी धारणा पर ज्यादा निर्भर है.आपातकाल के दौरान क्या अच्छा हुआ या क्या खराब हुआ, इस पर कोई चर्चा नहीं करता, लेकिन आपातकाल गलत था, यह सियासी धारणा जनता को समझ में आ गई, नतीजा यह रहा कि आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई.
इसी तरह बोफर्स सौदे को लेकर जनता में सियासी धारणा बनी, तो एक बार फिर कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई.वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भी अन्ना आंदोलन के कारण भ्रष्टाचार की सियासी धारणा बनी तो केन्द्र की सत्ता कांग्रेस के हाथ से निकल गई, जबकि इसके बाद भी न तो भ्रष्टाचार खत्म हुआ, न कालाधन आया और न ही महंगाई कम हुई.
पीएम मोदी के केन्द्र की सत्ता में आने के बाद राहुल गांधी लगातार सियासी आक्रमण करते रहे हैं. राफेल को लेकर काफी हद तक वे सियासी धारणा बनाने में कामयाब रहे, लेकिन उनकी एक गलती, अदालत के हवाले से राफेल सौदे पर टिप्पणी, ने उनके राफेल सियासी वार को बेअसर कर दिया.
लेकिन, कृषि कानून को लेकर राहुल गांधी यह धारणा बनाने में सफल रहे हैं कि पीएम मोदी सरकार के निर्णय उनके कारोबारी मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए होते हैं. सियासी प्रबंधन में पीएम मोदी टीम एक्सपर्ट मानी जाती है और इससे पहले के कई सियासी हमलों को इसी योग्यता के दम पर बेअसर भी किया गया है, परन्तु इस बार तमाम प्रयासों के बावजूद यह सियासी धारणा बेअसर नहीं हो रही है कि पीएम मोदी अपने कारोबारी मित्रों को लाभ पहुंचा रहे हैं.
यही बहुत बड़ी वजह है कि राहुल गांधी से पीएम मोदी टीम इतना डर रही है.यदि यह सियासी धारणा बनी रहती है, तो न केवल विपक्ष मजबूत होगा, बल्कि बीजेपी में भी पीएम मोदी टीम का एकाधिकार कमजोर पड़ेगा, राजस्थान से तो ऐसे सियासी संकेत भी आने लग गए हैं.
इस वक्त कृषि क़ानूनों को लेकर बनी सियासी धारणा के कारण ही दिल्ली की सीमा पर किसान आंदोलन न केवल लंबे समय से जारी है, वरन दिन-प्रतिदिन उसका प्रभाव भी बढ़ता जा रहा है. पीएम मोदी सरकार, किसान आंदोलन का समाधान निकालने के बजाए, आंदोलन तोड़ने के रास्ते तलाश रही है, किंतु किसान आंदोलन सफल हो या असफल, यदि किसान आंदोलन ऐसे ही जारी रहा, तो देश में बीजेपी के वोट का आधार जरूर कमजोर पड़ेगा!