वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः भाजपा फूंक-फूंककर कदम बढ़ाए
By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 17, 2019 03:53 PM2019-01-17T15:53:07+5:302019-01-17T15:53:07+5:30
कर्नाटक और मध्यप्रदेश, इन दोनों प्रांतों की सरकारों को गिराने की कोशिशों की खबरें गर्म हैं. दोनों प्रदेशों में भाजपा विपक्ष में है. भाजपा इन दोनों प्रदेशों में सत्तारूढ़ होते-होते रह गई. मप्र में तो उसे वोट भी कांग्रेस से ज्यादा मिले लेकिन सीटें कम रह गईं. दोनों राज्यों में भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ रहा है.
केंद्र में उसकी सरकार है, राज्यपाल भी इसी सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हैं. इसके बावजूद क्या वजह है कि कर्नाटक भाजपा के सारे विधायकों को हरियाणा के एक होटल में रखा गया है ? भाजपा का आरोप है कि कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार उसके विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर रही है. समझ में नहीं आता कि वे टूटकर जाएंगे कहां? यदि पांच-दस विधायक टूट भी जाएं तो वे दल-बदल नहीं कर सकते. वे विधानसभा से निकाल दिए जाएंगे. उन पर दल-बदल कानून लागू हो जाएगा.
फिर बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस और जनता दल (एस) मिलाकर 116 विधायक हैं, जबकि बहुमत के लिए 113 सदस्यों की जरूरत है. कुमारस्वामी को एक बसपा विधायक का समर्थन भी है. यदि उनके दो निर्दलीय विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया तो भी उनके पास कुल 117 यानी चार अतिरिक्त विधायकों का समर्थन है. यदि भाजपा ने कांग्रेस और जनता दल के 5-6 विधायक और तोड़ लिए तो कुमारस्वामी सरकार अल्पमत में चली जाएगी. ऐसे में राज्यपाल भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं. लगभग यही खेल मप्र में होने की संभावना है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने इस तरह की जोड़-तोड़ को गलत बताया है.
मैं समझता हूं कि चौहान ने काफी परिपक्वता और दूरदर्शिता का परिचय दिया है. इस समय लोकसभा चुनाव सिर पर है. यदि भाजपा पर चालबाजी के आरोप लग गए तो भाजपा को धराशायी होने से कोई रोक नहीं पाएगा. लेकिन मप्र और कर्नाटक में आज जो भी उठा-पटक चल रही है, उसका कर्णधार भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व है. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व लोकसभा के चुनाव में अपनी छवि निष्कलंक रखे, यह बहुत जरूरी है.