अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: कोरोना महामारी के इस समय में क्या विपक्ष के पास कोई वैकल्पिक मॉडल है?
By अभय कुमार दुबे | Published: May 27, 2020 11:41 AM2020-05-27T11:41:10+5:302020-05-27T11:41:31+5:30
राहुल गांधी द्वारा सड़क पर निकलकर प्रवासियों से बातचीत करने के चित्रों को देखने से पहली अनुभूति यही होती है कि वे मात्र संकेतात्मक राजनीति कर रहे हैं. अगर ऐसा न होता तो सारे देश में कांग्रेस कार्यकर्ता इस प्रश्न पर सड़कों पर निकल सकते थे.
ऐसा लगता है कि विपक्षी राजनीति कोरोना के क्वारंटाइन से बाहर निकलना चाहती है, यह अच्छी बात है. लेकिन, हमें यह देखना-समझना भी चाहिए कि विपक्ष में यह ऊर्जा इतनी देर से क्यों पैदा हुई. पूछा जाना चाहिए कि विपक्षी दल पिछले दो महीने से छुट्टी क्यों मना रहे थे? उनके नेताओं और प्रवक्ताओं की तरफ से ज्यादा से ज्यादा केंद्र सरकार की ‘रचनात्मक’ आलोचना ही सामने आ रही थी.
प्रवासी मजदूरों की तकलीफों से उपजी असाधारण त्रसदी को केंद्र बनाकर राजनीति करने का संकल्प करने में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल तकरीबन आठ हफ्ते की देर कर चुके हैं. राहुल गांधी द्वारा सड़क पर निकलकर प्रवासियों से बातचीत करने के चित्रों को देखने से पहली अनुभूति यही होती है कि वे मात्र संकेतात्मक राजनीति कर रहे हैं. अगर ऐसा न होता तो सारे देश में कांग्रेस कार्यकर्ता इस प्रश्न पर सड़कों पर निकल सकते थे.
अगर समाज में तरह-तरह के लोग अपने सीमित संसाधनों के बावजूद गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद के लिए आगे आ सकते हैं तो देश के विपक्षी राजनीतिक दल महामारी के इस विकट समय में पिछले दो महीने से हाथ पर हाथ रखे क्यों बैठे रहे? यह ठीक है कि राष्ट्रीय संकट की घड़ी में उन्हें सामान्य राजनीतिक प्रतियोगिता से बाज आना चाहिए था, लेकिन क्या इसका मतलब यह होता है कि उन्हें निष्क्रियता की चादर तान कर सो जाना चाहिए था?
क्या उनकी राजनीतिक बुद्धि में यह नहीं आ रहा था कि केंद्र सरकार ने डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट का सहारा लेकर सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए हैं, जबकि कोरोना विरोधी संघर्ष मुख्य तौर पर राज्यों की जमीन पर होना था.
इस एक्ट को लागू करने से हुआ यह कि राज्यों के हिस्से में आने वाला संक्रामक बीमारियों की रोकथाम करने वाला एक्ट कारगर नहीं रह गया. नतीजे के तौर पर राज्यों से बिना पूछे सारे फैसले होने लगे. विपक्ष को अपने-आप से पूछना यह चाहिए कि उसने इस सबको समझने में इतनी देर क्यों लगा दी?
यह देखकर ताज्जुब होता है कि ये राजनीतिक दल भाजपा की केंद्र सरकार के सामने कोविड-19 से लड़ने का कोई वैकल्पिक मॉडल रखने की जुर्रत नहीं कर पाए.
एक तरह से दो महीने तक इन दलों ने भी प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संदेशों का इंतजार करते रहने के अलावा कुछ नहीं किया. इनका राजनीतिक दिमाग कितना कुंद हो चुका है, इसका सबसे बड़ा सबूत तो यह है कि सरकार द्वारा घोषित पहले छोटे राहत पैकेज से लेकर बाद में घोषित बड़े राहत पैकेज के संदिग्ध स्वरूप को आड़े हाथों लेने वाले किसी श्वेत-पत्र के प्रकाशन के बारे में उसने आज तक नहीं सोचा है. विपक्ष की राजनीतिक अक्षमता उस समय अक्षम्य लगने लगती है जब वह अपनी ही राज्य सरकारों द्वारा किए जाने वाले अच्छे और श्रेयस्कर काम का प्रचार करने में नाकाम साबित होता है.
विपक्ष की कम से कम तीन सरकारें ऐसी हैं जिनकी उपलब्धियों को राष्ट्रीय मंच पर पेश करने के सुनियोजित प्रयास होने चाहिए थे. पहली सरकार पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाले केरल की है. केरल में केवल आठ सौ लोगों को संक्रमण हुआ है और केवल पांच मौतें हुई हैं.
क्या यह असाधारण उपलब्धि नहीं है? क्या इसे मोदी के गुजरात-मॉडल के मुकाबले केरल-मॉडल के रूप में प्रचारित करने की रणनीति नहीं अपनाई जानी चाहिए थी? इसी तरह कोविड-19 का मुकाबला करने में राजस्थान की सरकार ने भी असाधारण योजनाबद्ध प्रयासों का प्रदर्शन किया है.
गहलोत सरकार ने जिस प्रकार बुजुर्ग और बीमारियों से पीड़ित लोगों पर फोकस करके संक्रमण की रोकथाम का प्रयास किया, उससे अन्य सरकारें सबक हासिल कर सकती हैं. तीसरा अच्छा काम करने का श्रेय नवीन पटनायक की ओडिशा सरकार को जाता है. भले ही यह कोविड के मामले में न हो, पर अम्फान तूफान की चेतावनी मिलते ही जिस तत्परता से इस सरकार ने दो लाख लोगों को चार हजार से ज्यादा शरणस्थलों में पहुंचाया (और साथ-साथ कोविड से संबंधित सतर्कताएं भी जारी रखीं), वह मिसाल के काबिल है.
1999 में इसी तरह के तूफान के कारण ओडिशा ने दस हजार जानें खोई थीं. इस बार एक व्यक्ति की भी मौत नहीं हुई. कांग्रेस समेत विपक्ष की अन्य पार्टियों को अपनी राजनीतिक कंजूसी ताक पर रख कर इन सरकारों की ढोल बजा कर सराहना करनी चाहिए.
अगर वे ऐसा करेंगे तो भाजपा द्वारा प्रचलित प्रचारोन्मुख और शेखीखोर किस्म के गवर्नेस के मॉडल की आलोचना अपने आप ही बनने लगेगी. सोनिया गांधी को चाहिए कि वे तीनों गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों को सार्वजनिक रूप से खुली बधाई दें और उनकी सराहना में कुछ बातें कहें. इससे उनकी और विपक्ष की सकारात्मकता सामने आएगी