अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: भाजपा को खोजना होगा यक्ष प्रश्न का उत्तर

By अभय कुमार दुबे | Published: December 26, 2018 03:30 AM2018-12-26T03:30:38+5:302018-12-26T03:30:38+5:30

अगर ये गठजोड़ होते हैं तो भारतीय जनता पार्टी को 2019 में गैर-भाजपा ताकतों की चुनावी एकता के कहीं बेहतर इंडेक्स का सामना करना पड़ेगा. तीसरा, राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनाव-उपरांत सर्वेक्षणों में दो बातें निकल कर आई हैं जो भाजपा के लिए खास तौर पर चिंतनीय हैं.

Abhay Kumar Dubey's blog: BJP to search for answers to questionable question | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: भाजपा को खोजना होगा यक्ष प्रश्न का उत्तर

अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: भाजपा को खोजना होगा यक्ष प्रश्न का उत्तर

यह देख कर थोड़ा ताज्जुब होता है कि तीन राज्यों में चुनाव हारने भर से भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता नरेंद्र मोदी की छवि दुर्जेय की बजाय कुछ-कुछ दुर्बल जैसी लगने लगी है. यह दृष्टि-भ्रम भी हो सकता है, पर 11 दिसंबर से पहले तो यह दृष्टि-भ्रम भी नहीं होता था. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा आक्रामक न हो कर अपनी जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रही थी.

चुनाव जीतना उसके लिए एक अनपेक्षित बोनस था, इसलिए उसका लक्ष्य अपने नुकसान को कम से कम करना था ताकि इन नतीजों का 2019 पर खास असर न पड़े. छत्तीसगढ़ (11 लोकसभा सीटें) को छोड़ कर दोनों बड़े राज्यों (52 लोकसभा सीटें) में भाजपा अपने मकसद में कमोबेश सफल भी रही, और उसका सूपड़ा साफ होने से बच गया. ऐसे में भाजपा और उसके समर्थकों का चेहरा उतरा हुआ नहीं लगना चाहिए. फिर इसका कारण क्या है?

इस प्रश्न के तीन जवाब हो सकते हैं. पहला, तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने से भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी (जो अभी तक बहुत पीछे दौड़ रही थी) अचानक भाजपा के बराबर दौड़ने लगी है. देश के जिन बारह राज्यों (म.प्र., राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, उत्तराखंड, असम, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश) में कांग्रेस मुख्य ताकत है, वहां अब वह लोकसभा के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है.

नतीजतन उसकी कुल जमा 48 सीटें बढ़ कर आसानी से डेढ़ सौ से ज्यादा होने की संभावना बन सकती है. दूसरा, राज्य स्तर पर चुनावी गठजोड़ों का माहौल बन गया है और प्रत्येक गैर-भाजपा राजनीतिक ताकत अपने-अपने इलाके में सीटों के बंटवारे के समीकरण बनाने में जुट गई है. स्थिति यह है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के बीच, कर्नाटक में जनता दल (सेक्यु.) और कांग्रेस के बीच, दिल्ली के साथ-साथ हरियाणा और पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच, उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा और राष्ट्रीय लोक दल के बीच, आंध्र प्रदेश में कांग्रेस और तेलुगू देशम के बीच, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल-कांग्रेस-कुशवाहा की पार्टी और जीतन राम मांझी की पार्टी के बीच एवं तमिलनाडु में द्रमुक और कांग्रेस के बीच गठजोड़ होने की सकारात्मक परिस्थितियां बन रही हैं. 

अगर ये गठजोड़ होते हैं तो भारतीय जनता पार्टी को 2019 में गैर-भाजपा ताकतों की चुनावी एकता के कहीं बेहतर इंडेक्स का सामना करना पड़ेगा. तीसरा, राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनाव-उपरांत सर्वेक्षणों में दो बातें निकल कर आई हैं जो भाजपा के लिए खास तौर पर चिंतनीय हैं.

वहां की जनता न केवल राज्य सरकारों से नाराज थी, बल्कि उसकी नाराजगी के कुछ पहलू केंद्र सरकार के खिलाफ भी थे, और वोटरों ने बार-बार कहा कि वे नेता के चेहरे पर नहीं बल्कि पार्टी के आधार पर वोट देना पसंद करते हैं. चूंकि भाजपा के पास मोदी का चेहरा तुरुप के इक्के के तौर पर है, इसलिए वोटरों द्वारा चेहरे के बजाय पार्टी-निष्ठा को महत्व देना भाजपा के लिए एक झटके की तरह देखा जा सकता है.

चुनाव सिर पर हैं और हर राजनीतिक ताकत नए सिरे से सौदेबाजी करने के लिए आकलन कर रही है कि आपातकालीन के साथ-साथ दूरगामी दृष्टि से भी कांग्रेस और भाजपा में से किसके साथ जाना फायदे का सौदा हो सकता है. राजनीतिक नजारा इतनी तेजी से बदल रहा है कि टीवी पर एक दूसरे के खिलाफ तल्ख बहस करने वाले प्रवक्ता चौबीस घंटे के भीतर-भीतर परस्पर गलबहियां डाले दिख सकते हैं.

राजनीतिक शक्तियों का यह पुनर्विन्यास 15 फरवरी तक जारी रह सकता है. यह अस्थिरता भी भाजपा को परेशान करने वाली है. 2014 में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में जाने वालों का तांता लगा हुआ था, लेकिन इस बार लोग भाजपा को छोड़ कर कांग्रेस में जा रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा द्वारा साथ छोड़ दिए जाने के बाद भाजपा इस स्थिति में नहीं थी कि रामविलास पासवान को भी अपने खेमे से चले जाने देती.

इसलिए दबाव के सामने झुकते हुए वह पासवान को अपने खाते से राज्यसभा की एक सीट देने के लिए तैयार हो गई. किसी और परिस्थिति में भाजपा ऐसा हरगिज न करती. 

बिहार में हुई यह सौदेबाजी साफ संकेत दे रही है कि पार्टी स्वयं को बचाव की मुद्रा में पा रही है. यही स्थिति महाराष्ट्र में है. शिवसेना भाजपा की रोज खिंचाई करती है. उससे समझौता करने के लिए भाजपा को बहुत झुकना पड़ेगा. इसी तरह दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में भाजपा की बेचैनियां देखते ही बनती हैं. नेताओं ही नहीं, भाजपा के साधारण कार्यकर्ताओं को भी पता है कि 2014 में दिल्ली की सातों सीटों पर उसकी जीत कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच विरोधी वोटों के बंट जाने के कारण हुई थी.

2019 में अगर दोनों मिल कर लड़े तो भाजपा निश्चित तौर पर सातों सीटें हार जाएगी. इसी  तरह पंजाब में इन दोनों के गठजोड़ के मुकाबले भाजपा-अकाली समीकरण टिक नहीं पाएगा. हरियाणा में भी ऐसी ही स्थिति बन सकती है. ऐसी कौन सी विधि है जिससे भाजपा इन विषम परिस्थितियों का मुकाबला करेगी? यह एक यक्ष प्रश्न है. इसका उत्तर मोदी-शाह की जोड़ी को जल्दी ही खोजना होगा, वर्ना महाभारत में लिखा हुआ है कि यक्ष प्रश्न का उत्तर न दे पाने का हश्र क्या होता है.

Web Title: Abhay Kumar Dubey's blog: BJP to search for answers to questionable question

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