केतन गोरानिया का ब्लॉगः रियल इस्टेट से लाएं अर्थव्यवस्था में तेजी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 19, 2019 10:49 PM2019-01-19T22:49:42+5:302019-01-19T22:49:42+5:30

अर्थव्यवस्था से काला पैसा बाहर निकालने और रियल इस्टेट की कीमतें मध्यमवर्ग की पहुंच में लाने के लिए किया गया नोटाबंदी का प्रयोग भी नाकाम रहा.

Ketan Gorania Blog: Real Estate will get Fast In The Economy | केतन गोरानिया का ब्लॉगः रियल इस्टेट से लाएं अर्थव्यवस्था में तेजी

सांकेतिक तस्वीर

Highlights‘क्रेडिट स्युइस’ की 2018 की ‘ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट’ के मुताबिक भारत में 77.4 फीसदी मालमत्ता 10 फीसदी धनाढय़ों के पास है.इसमें से 51.5 फीसदी सबसे ज्यादा अमीरों के पास है. निचले स्तर की 60 फीसदी बहुसंख्यक आबादी के पास केवल 4.7 फीसदी मालमत्ता है.

मोदी सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद से पिछले साढ़े चार साल में भारत का औसत वार्षिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीडीपी) उससे पहले के 10 वर्षो की दर से ही बढ़ा. इसके बावजूद देश में उत्साह का माहौल आखिर क्योंकर नहीं दिखता? कारोबारियों, उद्योगपतियों से बातचीत में उत्साह की कमी साफ देखने को मिलती है. मेरी राय में देश में रियल इस्टेट क्षेत्र की हालत इसके लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदार है. 

अलादीन का जादुई दिया फीका कर देने के अंदाज में आश्वासनों की खैरात का ऐलान करते हुए भाजपा सरकार बड़े गाजेबाजे के साथ सत्तारूढ़ हुई थी. ‘सबके लिए घर’ सरकार का उसमें से एक बेहद लोकप्रिय वादा था. सरकार का इरादा इसके जरिये एक तीर से दो शिकार का था. सरकार इस गलतफहमी में थी देश में मौजूद तमाम रियल इस्टेट पर केवल भ्रष्ट राजनीतिज्ञों और भ्रष्ट नौकरशाहों का कब्जा है. इस वजह से रियल इस्टेट उद्योग पर दबाव बनाकर या रियल इस्टेट की कीमत कम करने की नीति को लागू करके अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं की धनशक्ति कम की जा सकती है और दूसरी ओर घरों की कीमतें मध्यम वर्ग की हैसियत के दायरे में लाई जा सकती हैं. सरकार इस दोहरी खुशफहमी का शिकार हो गई. 

सरकार यह भूल गई कि देश के अधिकांश लोगों के पास अचल संपत्ति खरीदने की क्रय शक्ति ही मौजूद नहीं है. ‘क्रेडिट स्युइस’ की 2018 की ‘ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट’ के मुताबिक भारत में 77.4 फीसदी मालमत्ता 10 फीसदी धनाढय़ों के पास है. इसमें से 51.5 फीसदी सबसे ज्यादा अमीरों के पास है. निचले स्तर की 60 फीसदी बहुसंख्यक आबादी के पास केवल 4.7 फीसदी मालमत्ता है. पिछले चार साल में आम भारतीय की क्रय शक्ति में कुछ खास वृद्धि नहीं हुई है. न तो उनकी न्यूनतम आय बढ़ी है और न ही रोजगार के आंकड़ों में कोई उल्लेखनीय उछाल आया है. इस वजह से पिछले साढ़े चार साल में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिहाज से रियल इस्टेट खरीदने वाले नये ग्राहकों में तुलनात्मक तौर पर उतनी वृद्धि नहीं हुई है. 

अर्थव्यवस्था से काला पैसा बाहर निकालने और रियल इस्टेट की कीमतें मध्यमवर्ग की पहुंच में लाने के लिए किया गया नोटाबंदी का प्रयोग भी नाकाम रहा. इससे उल्टा अर्थव्यवस्था को ही नुकसान पहुंचा. सरकार ने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि देश के लोग सोने-चांदी और घर को कभी भी केवल निवेश की नजर से नहीं देखते. उससे उनकी भावनाएं जुड़ी होती हैं. उसके लिए वह जिंदगी भर पैसा जमा करते हैं और मुश्किल के वक्त में यही उनका सहारा होता है. नोटाबंदी करके या फिर ‘एफएसआई’ बढ़ाकर सरकार ने रियल इस्टेट के दाम गिराने की भरसक कोशिश की. लेकिन अपनी संपत्ति की कीमत कम होने के भय से कोई भी सामान्य व्यक्ति अपनी संपत्ति बेचने के लिए आगे नहीं आया. उन्हें इस योजना पर भरोसा नहीं होने के कारण उन्होंने नई संपत्ति में भी निवेश नहीं किया. 

दुर्भाग्य से पहले राजनीतिज्ञ, नौकरशाह, व्यापारी-उद्योगपति अपनी कमाई का सारा पैसा रियल इस्टेट में लगा देते थे. इस वजह से रियल इस्टेट की कीमतें बेवजह आसमान छूने लगीं.

वास्तविकता में इन कीमतों का निर्धारण ग्राहकों की क्रय शक्ति, देश की जीडीपी या प्रति व्यक्ति आय से निर्धारित होना चाहिए. नोटबंदी के पहले रियल इस्टेट में पैसे का रिटर्न बहुत अच्छा होने के कारण सारा पैसा इसी क्षेत्र में लगाया जा रहा था. केवल व्यक्तिगत तौर पर ही नहीं बल्कि लघु, मध्यम और बड़े उद्योग भी अतिरिक्त पैसे का रियल इस्टेट में ही निवेश करते थे. लेकिन सरकार द्वारा नोटाबंदी किए जाने और रियल इस्टेट की कीमतें कम करने की कोशिशों के चलते निवेशकों और खरीददारों ने निवेश को इस क्षेत्र की बजाय शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड या अन्य वित्तीय संस्थानों की ओर मोड़ दिया.

चल संपत्ति को निवेश का जरिया मानने वाले लोगों को इससे दूर ले जाने की मोदी सरकार की निरंतर कोशिशों के चलते वाकई निवेश करने के इच्छुकों को छोड़कर अन्य लोगों ने इस क्षेत्र में निवेश से किनारा कर लिया. नोटबंदी तक जो शेयर बाजार में निवेश नहीं करते थे वह बाद में इस ओर मुड़ गए. लेकिन फर्क इतना हुआ कि पहले रियल इस्टेट में काला पैसा डाला जाता था. शेयर बाजार के व्यवहार में चेक से दिया गया सफेद पैसा ही इस्तेमाल होता है. 

इसके लिए एक सुझाव देने की इच्छा होती है और वह है रियल इस्टेट उद्योग में सीधे विदेशी निवेश के दरवाजे खोल देने की. इसके तहत विदेशी नागरिकों को एक सीमित अवधि के लिए मकान और जमीनें खरीदने की इजाजत दी जाएगी. इस दौरान उनके द्वारा खरीदे गए रियल इस्टेट के बेचने पर कुछ अवधि तक प्रतिबंध होगा. उदाहरण के लिए पहले सात वर्ष में बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध और उसके तीन साल बाद चरणबद्ध तरीके से बिक्री. इससे भारतीय रियल इस्टेट उद्योग में विदेशी मुद्रा दीर्घकाल के लिए आ जाएगी. निर्माण उद्योग से अन्य 300 छोटे-बड़े उद्योग जुड़े होते हैं और उनके साथ देश की समूची अर्थव्यवस्था को पंख लग जाएंगे.

Web Title: Ketan Gorania Blog: Real Estate will get Fast In The Economy

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