#KuchhPositiveKarteHain: अक्षर संत, जिन्होंने संतरे बेचकर बनाया गरीब बच्चों का भविष्य

By मोहित सिंह | Published: July 19, 2018 03:50 PM2018-07-19T15:50:55+5:302018-07-19T16:01:39+5:30

साक्षरता का जीवन में कितना महत्त्व है शायद इसका पता एक अनपढ़ इंसान को ही हो सकता है. आज हम बात कर रहे हैं मंगलुरु के पास के छोटे से गाँव के अक्षर संत कहे जाने वाले एक छोटे से संतरा विक्रेता हजब्बा की जिन्होंने अपने मेहनत की कमाई का इस्तेमाल अपने गाँव के बच्चों को साक्षर करने में लगा दिया.

Orange Seller Harekala Hajabba: Motivating Story of Akshara Santa or Saint of Letters from Mangaluru | #KuchhPositiveKarteHain: अक्षर संत, जिन्होंने संतरे बेचकर बनाया गरीब बच्चों का भविष्य

Harekala Hajabba: Motivating Story of Akshara Santa or Saint of Letters from Mangaluru

मंगलुरु से 25 किलोमीटर दूर छोटा सा गाँव है हारेकला, इस गाँव में रहते हैं एक साधारण से संतरा विक्रेता 'हजब्बा' जिनके असाधारण काम ने उनको अक्षर संत के नाम से पूरे मंगलुरु में प्रसिद्ध कर दिया है. इस छोटे से संतरा विक्रेता ने अपनी कमाई से गाँव के गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल की स्थापना की और इस गाँव में साक्षरता की एक ऐसी रौशनी जलाई जो पूरे देश को  प्रेरणा दे जाती है.

बेहद गरीब परिवार में जन्में 'हजब्बा' ने बचपन से ही अपने आस - पास ऐसा माहौल देखा था कि उनका सपना ही शहर जाकर बीड़ी बनाने का काम करने का रहा. लेकिन शायद हजब्बा की किस्मत में कुछ और ही लिखा था, परिवार का पेट भरने के लिए उनको संतरे बेचना शुरू करना पड़ा.

हजब्बा ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था "मैं कभी भी स्कूल नहीं गया. बहुत ही छोटी उम्र में गरीबी ने मुझे संतरे बेचने के लिए मजबूर कर दिया. एक दिन, मेरी मुलाकात दो विदेशी सैलानियों से हुई, उन्होंने मुझसे अंग्रेजी में बात करना शुरू कर दिया और संतरे का दाम पूछने लगे. चूकिं मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी तो मैं उनसे बात नहीं कर पाया और दोनों बिना संतरा खरीदे ही चले गए. मुझे इस घटना के बाद बहुत ही शर्म आयी और लगा कि भाषा के इस गतिरोध की वजह से वो दोनों चले गए. "

हजब्बा ने जो दुःख महसूस किया था वो नहीं चाहते थे कि दूसरे भी वासे ही किसी घटना से गुजरें. इस घटना के बाद से उनके जीवन का एक लक्ष्य बन गया 'लोगों को साक्षरता के लिए जागरूक करने का'. हजब्बा ने गाँव में स्कूल खोलने की कोशिश करना शुरू कर दिया ताकि गाँव के गरीब बच्चे पढ़ - लिख सकें.

उनकी पत्नी मैमूना शुरुआत में उनके खिलाफ थीं. उनका  कहना था कि हजब्बा अपनी कमाई जिनपर उनके तीन बच्चों की परवरिश का हक़ था को दूसरों के भले के लिए इस्तेमाल कर ले रहे हैं. लेकिन बाद में उनको भी इस नेक काम की महत्ता समझ आ गयी और उन्होंने भी अपने पति का साथ देना शुरू कर दिया.

हजब्बा के सपने ने साल 1999 में आकार लेना शुरू किया जब मदरसे से जुड़े एक छोटे से स्कूल की स्थापना उनके गाँव में हुई. शुरू में उस स्कूल में महज़ 28 बच्चे पढ़ा करते थे लेकिन जल्द ही छात्रों की संख्या बढ़ने लगी. हजब्बा को पता था कि जल्द ही उनको इस छोटी सी जगह से किसी बड़े स्कूल में जाना पड़ेगा, इसलिए उन्होंने अपनी कमाए पैसों को स्कूल बनाने के लिए जोड़ना शुरू कर दिया ताकि गाँव के बच्चों का भविष्य सुरक्षित किया जा सके.

साल 2004 में अपने बचाये पैसों से हजब्बा ने स्कूल के लिए 22000 स्कॉयर फीट जमीन खरीद ली. उनको पता था कि स्कूल बनाने के लिए जितने पैसों की ज़रुरत है उतने पैसे उनके पास नहीं हैं इसलिए पैसों के लिए उन्होंने बड़े राजनीतिज्ञों, उद्योगपतियों, अमीर लोगों को संपर्क करना शुरू किया. अपने इस सपने को पूरा करने के लिए हजब्बा ने सारे दरवाजे खटखटाये, सबके पास मदद के लिए पहुंचे.

एक घटना का जिक्र करते हुए हजब्बा ने बताया था कि एक बार वो किसी अमीर व्यक्ति के पास स्कूल बनाने में मदद के लिए गए और कैसे पैसों से मदद  करने के बजाय उस इंसान ने इनपर अपने कुत्ते को छोड़ दिया था.

लोगों का ऐसा व्यवहार भी हजब्बा को उनके सपने से नहीं डिगा सका. धीमे - धीमे उन्होंने पैसे इकट्ठा करके उस ज़मीन पर एक छोटा सा प्राइमरी स्कूल शुरू ही कर दिया.

यह ऐसा समय था जब मीडिया को उनकी इस पहल का पता चल गया था और समाचार पत्रों में उनकी चर्चा होना शुरू हो गयी थी. एक कन्नड़ न्यूज़पेपर 'होसा दिगांथा' ने  हजब्बा को सबसे पहले कवर किया उसके बाद सीएनएन आईबीएन ने हजब्बा को 'रीयल हीरोज़' अवार्ड के लिए नॉमिनेट किया. इन सब के बाद हजब्बा को एक पहचान मिली जिसका परिणाम उनको आर्थिक मदद  के रूप में मिलना शुरू हुआ. आज उनका स्कूल 150 बच्चों का भविष्य सवार रहा है और यह स्कूल 1.5 एकड़ में फैला हुआ है. प्राइमरी स्कूल से शुरू हुआ यह सफर आज सेकेंडरी स्कूल तक पहुंच चुका है. स्कूल बनाने के बाद हजब्बा ने उसको सरकार को दे दिया और इस स्कूल का संचालन अभी सरकार ही कर रही है.

गरीब बच्चों का भविष्य सुधरने की धुन में हजब्बा के सर पर खुद की छत तक नहीं बन पायी। 2014 में उनको एक इवेंट में स्पीकर के तौर पर आमंत्रण देने वाले अल्बान मेनेज़ेस ने उनको कई बार काल किया लेकिन हजब्बा ने उनका फ़ोन नहीं उठाया, जब फ़ोन उनके बेटे ने उठाया तो पता चला कि हजब्बा हॉस्पिटल में भर्ती है. अल्बान ने तुरंत हजब्बा  किया तो उनको हजब्बा की बीमारी का पता चला. हजब्बा अपने सर पर छत ना होने से बेहद चिंतित थे और यही उनकी बीमारी का प्रमुख कारण था. 

अल्बान को यह सुनकर बेहद दुःख हुआ और उन्होंने उनकी घर बनाने में मदद की. रिकॉर्ड 4 महीने में महज़ 15 लाख में एक घर बना दिया गया. हजब्बा  750 स्कवायर फ़ीट के घर में दो बैडरूम, एक किचन और एक ऐसा कोना है जहाँ उनके सारे सम्मान और अवार्ड्स रखे हुए हैं. 

हजब्बा अब भी नहीं रुके हैं और अपना एक और सपना पूरा करने के लिए कोशिश करना शुरू कर चुके हैं - वह सपना है 'अपने गाँव में गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज' बनाने का.

English summary :
Harekala Hajabba: Motivating Story of a small orange seller from a very small village of Mangaluru who invested his entire earning in building a school for poor children. He is famous as Akshara Santa or Saint of Letters.


Web Title: Orange Seller Harekala Hajabba: Motivating Story of Akshara Santa or Saint of Letters from Mangaluru

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