लोकमत संपादकीयः समाज को आचरेकर जैसे आदर्श गुरु चाहिए
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 4, 2019 08:42 PM2019-01-04T20:42:59+5:302019-01-04T20:42:59+5:30
सचिन तेंदुलकर, विनोद कांबली, चंद्रकांत पंडित, अमोल मुजुमदार, प्रवीण आमरे, अजित अगरकर, लालचंद राजपूत सहित उनके छात्र आज भी पूरी विनम्रता से स्वीकार करते हैं कि उन्हें बेहतरीन क्रिकेटर बनाने में गुरु आचरेकर का ही योगदान था.
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर समेत विनोद कांबली जैसे अनेक भारतीय क्रिकेटरों के करियर को संवारने वाले ‘क्रिकेट के द्रोणाचार्य’ रमाकांत आचरेकर प्राचीन गुरुओं की परंपरा की याद दिलाते थे. उनका अवसान इस मायने में भी एक बड़ी क्षति है कि उस तरह के गुरुओं का मिलना अब दुर्लभ है. आज जबकि अधिकांश तथाकथित गुरुओं का एकमात्र लक्ष्य पैसा कमाना ही रह गया है, क्रिकेट कोच के रूप में आचरेकर सिर्फ उसे ही क्रिकेट की तालीम देते थे जो कड़ी मेहनत करने के लिए सदैव तैयार रहता था.
यही कारण है कि सचिन तेंदुलकर, विनोद कांबली, चंद्रकांत पंडित, अमोल मुजुमदार, प्रवीण आमरे, अजित अगरकर, लालचंद राजपूत सहित उनके छात्र आज भी पूरी विनम्रता से स्वीकार करते हैं कि उन्हें बेहतरीन क्रिकेटर बनाने में गुरु आचरेकर का ही योगदान था. इनके पास अपने गुरु की महानता के बारे में बताने वाली कितनी ही कहानियां हैं. इस तरह के गुरुओं की वस्तुत: हर खेल के क्षेत्र में जरूरत है.
खेल ही नहीं बल्कि शिक्षा क्षेत्र में भी इस तरह के गुरु मिलें तो छात्र आगे चलकर देश के महान नागरिक बन सकते हैं. हमारे भारत देश में तो प्राचीनकाल से ही गुरुओं का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रहा है. कबीर दास जी ने तो यहां तक कहा था कि ‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय/ बलिहार गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय.’ अर्थात् गुरु का स्थान ईश्वर से भी बढ़कर होता है.
प्राचीन ग्रंथों में गुरुओं और समर्पित शिष्यों की जाने कितनी ही कहानियां हैं. यहां तक कि संगीत घरानों में आज भी गुरुओं का बहुत महत्व है. लेकिन दुर्भाग्य से शिक्षा क्षेत्र में ऐसे गुरु आज देखने को नहीं मिलते हैं. कबीर दास जी ने यह भी कहा था कि ‘गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट/ अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट.’
आज ऐसे कितने गुरु हैं जो अपने शिष्यों को गढ़ने के लिए इतनी मेहनत करते हैं?
सचिन तेंदुलकर ने अपने गुरु आचरेकर के बारे में जो किस्से बताए हैं कि उन्होंने कभी उन्हें ‘वेल प्लेड’ नहीं कहा या तमाचा जड़ा था या पेड़ के पीछे छिप कर उनकी बल्लेबाजी देखते थे, वह वस्तुत: अपने शिष्य को गढ़ने और उसकी खोट निकालने की प्रक्रिया ही थी. आज समाज के हर क्षेत्र में ऐसे ही गुरुओं की जरूरत है. दुनिया से जाने के बाद भी निश्चित ही रमाकांत आचरेकर आदर्श गुरु के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे.