कुमार सिद्धार्थ का ब्लॉग: एक महिला की जिद से कचरे का पहाड़ बन रहा उपवन

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 8, 2019 07:26 AM2019-03-08T07:26:00+5:302019-03-08T07:26:00+5:30

इंदौर शहर ने हाल में कूड़े के पहाड़ को खत्म करने में जो बड़ी सफलता प्राप्त की है, वह देश के सभी शहरों के लिए एक बड़ा संदेश है। इसका सारा श्रेय महापौर मालिनी गौर की जिद को जाता है। उन्होंने संकल्प लिया और उसे पूरा कर दिखाया। इसमें अधिकारियों और वहां की जनता का भी पूरा योगदान रहा। 

Women's day blog on MP indore malini gaur who clean city | कुमार सिद्धार्थ का ब्लॉग: एक महिला की जिद से कचरे का पहाड़ बन रहा उपवन

कुमार सिद्धार्थ का ब्लॉग: एक महिला की जिद से कचरे का पहाड़ बन रहा उपवन

देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में इंदौर नगर पालिका निगम के मैराथन अभियान के चलते 40 साल पुराने कचरे के पहाड़ के दिन आखिर बदल ही गए और महज चार महीने में 13 लाख टन अपशिष्ट के उस बदबूदार कचरे के पहाड़ से मुक्ति पाकर अब उसके स्थान पर ‘सिटी फारेस्ट’ विकसित किया जा रहा है। इसका सारा श्रेय महापौर मालिनी गौर की जिद को जाता है। उन्होंने संकल्प लिया और उसे पूरा कर दिखाया। इसमें अधिकारियों और वहां की जनता का भी पूरा योगदान रहा। 

 इंदौर शहर ने हाल में कूड़े के पहाड़ को खत्म करने में जो बड़ी सफलता प्राप्त की है, वह देश के सभी शहरों के लिए एक बड़ा संदेश है। इंदौर शहर के बायपास रोड पर देवगुराड़िया क्षेत्र के करीब 150   एकड़ में फैले ट्रेंचिंग ग्राउंड में पिछले 40 साल से कचरा जमा किया जा रहा था। साल-दर-साल बढ़ते-बढ़ते वहां करीब 13 लाख टन कचरा जमा हो गया और एक छोटे पहाड़ की शक्ल ले ली थी। देवगुराड़िया के ट्रेंचिंग ग्राउंड से कचरे का यह पहाड़ हटाने के लिए पिछले साल अगस्त में बीड़ा उठाया गया था। इसके लिए 17 अर्थ मूविंग मशीनें किराये पर ली गईं और आठ-आठ घंटों की दो पालियों में 150-150 मजदूरों की मदद से लगातार चार महीने अभियान चलाया गया। ट्रेंचिंग ग्राउंड में मशीनों की मदद से कचरे को फैलाकर पहले इसका रासायनिक विधि से उपचार किया गया, ताकि इसमें मौजूद हानिकारक तत्व नष्ट हो जाएं।

 कचरे के 13 लाख टन के भंडार से लगभग चार लाख टन प्लास्टिक निकला। फिर अलग-अलग ढेर बनाकर इस कचरे को छांट कर प्लास्टिक, गत्ता, चमड़ा, धातुओं के टुकड़े आदि सामान कबाड़ियों को बेच दिया गया। देवगुराड़िया के ट्रेंचिंग ग्राउंड से कचरे का पहाड़ हटने से नजदीकी इलाकों में रहने वाले सैकड़ों परिवारों को दिन-रात उठने वाली बदबू और प्रदूषण से मुक्ति भी मिली है। कचरे के पहाड़ के हटते ही लगभग 100 एकड़ जमीन खाली हो गई है। इस जमीन को समतल कर 90 एकड़ क्षेत्र पर हजारों पौधे लगाने शुरू किए गए। कुल मिला कर व्यवस्थित रूप से जो काम शुरू किया गया, उसी का नतीजा है कि कूड़े का पहाड़ आज एक छोटे हरियाले वन का रूप ले
रहा है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर से हर दिन करीब 1100 टन कचरा निकलता है जिसमें करीब 550 टन ठोस अपशिष्ट शामिल है। लोगों के परिसरों से गीले और सूखे कचरे को करीब 650 वाहनों की मदद से अलग-अलग जमा किया जाता है। फिर शहर भर में फैले केंद्रों में इसका विभिन्न तरीकों से निपटारा किया जाता है। पिछले साल नगर निगम ने फल-सब्जियों के कचरे से बायो-सीएनजी गैस तैयार कर इससे सिटी बसें व ऑटो चलाने में कामयाबी हासिल की थी। गैस उत्पादन के लिए निगम ने फल-सब्जी मंडी में संयंत्र लगाया था। गैस उत्पादन के बाद जो अपशिष्ट बचा उसका उपयोग कंपोस्ट खाद बनाने में किया गया। इंदौर नगर निगम की इस कामयाबी से यही साबित हुआ है कि अगर हमारे स्थानीय निकाय, प्रशासन और सरकार ठान लें तो शहरों को कचरा मुक्त बनाने में कोई समस्या नहीं है।

दरअसल, कचरे का प्रबंधन नहीं होना शहर के लिए एक समस्या बनकर उभरा है। देश के ज्यादातर शहर कचरे की बढ़ती समस्या से ग्रस्त हैं। इसका नतीजा शहरों में कचरे के पहाड़ खड़े होने के रूप में सामने आ रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में गाजीपुर सहित कई जगहों पर कचरे के पहाड़ हैं। पिछले कुछ सालों में इन्हें खत्म करने के कई प्रयास किए गए, लेकिन वे हटाए नहीं जा सके। गाजीपुर के कचरे का पहाड़ 65 मीटर ऊंचा हो चुका है, 8 मीटर और बढ़ा तो वह ऊंचाई में कुतुब मीनार के बराबर पहुंच जाएगा। गाजीपुर का ट्रेंचिंग ग्राउंड 29 एकड़ में फैला है, उसे 1984 में शुरू किया गया था। वहीं पंजाब में गत 10 वर्षो से कूड़े के पहाड़ों को समाप्त नहीं किया जा सका है और शहरों में कूड़े के ढेरों से न केवल बीमारियां फैल रही हैं बल्कि भूमिगत जल भी दूषित होने के मामले सामने आ रहे हैं। 

देश के अन्य शहर भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसे में अगर इंदौर नगर निगम चार-पांच महीने में कूड़े का पहाड़ हटा सकता है तो राज्यों की सरकारें और इसके निगम ये काम क्यों नहीं कर सकते? जाहिर है, इंदौर के इस महाभियान में कोई राजनीति नहीं हुई। कचरा निपटान की दिशा में पहले भी मिसाल कायम कर चुके इंदौर में इस समस्या से निपटने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई है, उससे प्रेरणा लेने की जरूरत है। यदि इंदौर जैसा ही फामरूला अपनाया जाता है तो देश के शहरों में कूड़े के पहाड़ों की समस्या समाप्त हो सकती है। इंदौर के इस प्रयास 
को सलाम।

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