भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः असंगठित क्षेत्र में सुधार से होगा रोजगार सृजन 

By भरत झुनझुनवाला | Published: November 22, 2018 11:58 PM2018-11-22T23:58:28+5:302018-11-22T23:58:28+5:30

फरवरी 2016 में देश के वयस्क नागरिकों में 47 प्रतिशत रोजगार पर थे. अक्तूबर 2011 में यह घटकर 42.4 प्रतिशत रह गया था. जुलाई 2017 में केवल 1.4 करोड़ लोग रोजगार ढूंढ रहे थे जो कि अक्तूबर 2018 में बढ़कर 2.9 करोड़ हो गए थे.

Bharat Jhunjhunwala's blog: Improvement in unorganized sector will create jobs | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः असंगठित क्षेत्र में सुधार से होगा रोजगार सृजन 

भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः असंगठित क्षेत्र में सुधार से होगा रोजगार सृजन 

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी देश की प्रतिष्ठित संस्था है जिसके द्वारा अर्थव्यवस्था के आंकड़ों पर नजर रखी जाती है. इस संस्था ने अपनी हाल की रपट में बेरोजगारी को लेकर गंभीर आंकड़े प्रस्तुत किए हैं. कहा है कि अक्तूबर 2017 में देश में 40.7 करोड़ लोग कार्यरत थे जो अक्तूबर 2018 में घटकर 39.7 करोड़ रह गए थे. अक्तूबर 2018 में बेरोजगारी की दर 6.9 प्रतिशत पर दो वर्षों की अधिकतम दर पर पहुंच गई है.

फरवरी 2016 में देश के वयस्क नागरिकों में 47 प्रतिशत रोजगार पर थे. अक्तूबर 2011 में यह घटकर 42.4 प्रतिशत रह गया था. जुलाई 2017 में केवल 1.4 करोड़ लोग रोजगार ढूंढ रहे थे जो कि अक्तूबर 2018 में बढ़कर 2.9 करोड़ हो गए थे. इन आंकड़ों की गंभीरता इस बात से भी दिखती है कि अक्तूबर से दिसंबर के महीने आम तौर पर रोजगार सृजन के माने जाते हैं. अत: इस समय गिरावट होना ज्यादा गंभीर विषय है. रोजगार सृजन पर ध्यान देना होगा.

रोजगार सृजन के कई सुझाव दिए जा रहे हैं. पहला सुझाव कुटीर उद्यमियों को माइक्रो क्रेडिट के माध्यम से पूंजी उपलब्ध कराने का है. इस सुझाव में समस्या यह है कि श्रम-सघन उत्पादन अक्सर महंगा पड़ता है जैसे चरखे से काती गई सूत महंगी होती है. चरखे से सूत का उत्पादन तभी होगा जब उसे मशीन में बनी सस्ती सूत से संरक्षण मिले.

यदि मशीन से बनाए गए धागे पर भारी टैक्स लगाया जाए तभी चरखे पर काता गया सूत बाजार में टिक पाएगा. यह वैश्विक बाजार में संभव नहीं है. मान लीजिए भारत सरकार ने घरेलू कताई मिलों पर भारी टैक्स लगा दिया. इससे भारत में मिलों से काते गए धागे का दाम ऊंचा हो जाएगा और थाईलैंड में मशीन द्वारा काते गए सस्ते धागे का आयात होने लगेगा. माइक्रो फाइनेन्स से लाभ तब है जब साथ-साथ श्रम-सघन उत्पादों को सस्ते आयातों से संरक्षण दिया जाए. 

दूसरा सुझाव है कि असंगठित श्रमिकों के ट्रेड यूनियन सरीखे संगठन बनाए जाएं और वे बाहुबल के जोर से ऊंचे वेतन हासिल करें जैसे केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों ने वेतन आयोगों की सिफारिशों को लागू करा कर हासिल किया है. परंतु असंगठित क्षेत्र को संगठित कराना दुष्कर कार्य है. कारण यह कि असंगठित क्षेत्र में विक्रेता तथा क्रेता दोनों फैले हुए अथवा विकेंद्रित होते हैं.

फैक्ट्री में 1000 श्रमिक एक स्थान पर सहज एकत्रित हो जाते हैं. परंतु ब्लाक के सभी जुलाहों को एकत्रित करने में उनकी एक दिन की दिहाड़ी जाती है. यदि एक ब्लॉक, जिले अथवा राज्य के जुलाहों ने अपना संगठन बना लिया तो दूसरे राज्य के असंगठित जुलाहे सस्ता माल बेच देंगे और यह संगठन फेल हो जाएगा. असंगठित श्रमिकों का संगठन तभी सफल होगा जब उसका बाजार के मूल्यों पर नियंत्रण होगा. 

इस संबंध में घाना का अनुभव हमें रास्ता दिखाता है. असंगठित क्षेत्र के लोगों को संगठित करने के लिए कच्चे तथा तैयार माल के मूल्यों पर नियंत्रण जरूरी होता है. घाना प्राइवेट रोड ट्रांसपोर्ट यूनियन ने टैक्सी तथा ट्रक चालकों को संगठित किया है. यह यूनियन यातायात के भाड़े तय कर देती है. टिम्बर वुडवर्कर्स यूनियन के तहत लकड़ी की नक्काशी करने वालों, केन के फर्नीचर बनाने वालों, आरा मशीन वालों आदि के अलग-अलग संगठन बनाए गए है. ये संगठन सरकारी ठेकों पर वार्ता करते हैं और यूनियन के माध्यम से रेट तय करते हैं. इन यूनियनों को कुछ सफलता मिली है. 

परंतु दूसरे उद्योगों का संगठन कठिन साबित हो रहा है. जनरल एग्रीकल्चरल वर्कर्स यूनियन के तहत खेत मजदूरों और छोटे किसानों को संगठित किया गया है. लेकिन यूनियन को संगठन में खर्च अधिक करना पड़ता है और सदस्यता शुल्क कम आता है. इसलिए संगठन का विस्तार नहीं हो रहा है.  

तीसरा सुझाव है कि असंगठित श्रमिकों के लिए बीमा, बेरोजगारी भत्ता, स्वास्थ्य सेवा आदि की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाए. इस सुझाव में समस्या यह है कि इन सुविधाओं को मुहैया कराने के लिए सरकार को दूसरे क्षेत्रों पर टैक्स लगाना होगा जो कि वैश्विक बाजार में संभव नहीं है. वैश्वीकरण में उस देश की जीत होगी जिसकी सरकार न्यूनतम टैक्स लगाए और जहां माल का उत्पादन सस्ता पड़े.

इन सुविधाओं को मुहैया कराने के लिए जो देश टैक्स ज्यादा लगाएगा उसका माल महंगा पड़ेगा और वह विश्व बाजार से बाहर हो जाएगा. चौथा सुझाव है कि श्रमिकों को कोऑपरेटिव सोसाइटी में संगठित कर दिया जाए जैसे अहमदाबाद की ‘सेवा’ नामक संस्था ने किया है. इस सुझाव में समस्या यह है कि कोऑपरेटिव में सदस्यों में आपसी तालमेल बैठाने में कठिनाई होती है.  

असंगठित क्षेत्र में लोगों की स्थिति में सुधार के लिए दो शर्ते हैं. एक यह कि उनके संगठन केवल ट्रेनिंग और ऋण तक सीमित न रहें बल्कि कच्चे एवं तैयार माल के मूल्य निर्धारण में दखल करें. दूसरा यह कि तैयार माल को प्रतिस्पर्धा से बचाया जाए. यह संरक्षण सरकार को देना होगा. संगठन एवं संरक्षण के योग से ही असंगठित श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा.

Web Title: Bharat Jhunjhunwala's blog: Improvement in unorganized sector will create jobs

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