अंगदान कर अपने परिजनों का जीवन बचाती महिलाएं, प्रमोद भार्गव का ब्लॉग
By प्रमोद भार्गव | Published: September 26, 2020 11:38 AM2020-09-26T11:38:52+5:302020-09-26T11:38:52+5:30
महिलाएं अंग प्रत्यारोपण के लिए पुरुषों से बहुत आगे हैं, लेकिन जब उन्हें अंगों की जरूरत पड़ती है तो नहीं मिल पाते हैं. यह भी देखने में आया है कि परिवार को अंगदान करने में बेटियों के मुकाबले बेटे आगे हैं. इसकी मुख्य वजह लड़कियों की शादी में दिक्कत न आए, इसलिए उन्हें सुरक्षित रखा जाता है.
यह तो जगजाहिर है कि महिलाएं ममता, करुणा और त्याग की प्रतिमूर्ति होती हैं लेकिन ताजा सर्वेक्षण से पता चला है कि ये अपने अंगदान करने में भी पुरुषों से आगे रहती हैं. अहमदाबाद के प्रतिष्ठित किडनी अस्पताल के अंगदान से जुड़े एक अध्ययन में महिलाओं के प्रति लैंगिक असमानता का खुलासा हुआ है.
महिलाएं अंग प्रत्यारोपण के लिए पुरुषों से बहुत आगे हैं, लेकिन जब उन्हें अंगों की जरूरत पड़ती है तो नहीं मिल पाते हैं. यह भी देखने में आया है कि परिवार को अंगदान करने में बेटियों के मुकाबले बेटे आगे हैं. इसकी मुख्य वजह लड़कियों की शादी में दिक्कत न आए, इसलिए उन्हें सुरक्षित रखा जाता है.
द ट्रांसप्लांट सोसाइटी की 28वीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में पेश किए आंकड़ों से साफ हुआ है कि जीवित किडनी प्रत्यारोपण में 90 प्रतिशत महिलाओं में पत्नियां होती हैं. कुल अंगदान में 69 प्रतिशत महिलाएं और 25 प्रतिशत पुरुष होते हैं. 74.2 फीसदी महिलाएं परिजनों को अंगदान करती हैं, किंतु उन्हें महज 21.8 प्रतिशत अंग दान में मिल पाते हैं. 70 प्रतिशत माताएं बच्चों को अंगदान करती हैं, जबकि 30 प्रतिशत पिता ऐसा करते हैं. 75 प्रतिशत दादी पोते-पोतियों के लिए अंगदान करती हैं, जबकि दादा 25 फीसदी ही करते हैं. यानी लैंगिक भेद यहां भी बरकरार है.
भारत में मिलावटी खान-पान और सड़क दुर्घटनाओं के चलते लोगों के जीवनदायी अंग खराब हो रहे हैं. गोया पांच लाख लोगों की मौत अंगों की अनुपलब्धता के चलते प्रतिवर्ष हो जाती है. दो लाख यकृत, 50 हजार हृदय और डेढ़ लाख लोग गुर्दा संबंधी बीमारियों से प्रतिवर्ष काल के गाल में समा जाते हैं. हालांकि गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए कई लोग अपना गुर्दा दान देने लगे हैं लेकिन पूरे साल में पांच हजार रोगियों को ही गुर्दा दान में मिल पाता है. इनमें 90 फीसदी गुर्दे महिलाओं के होते हैं.
किसी स्वस्थ व्यक्ति की प्राकृतिक मृत्यु होने पर उसके अंगों से आठ लोगों का जीवन बचाया जा सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति के यकृत, गुर्दे, आंत, आंखें, हृदय और फेफड़ों जैसे अंगों के अलावा त्वचा और हड्डी के ऊतकों का दान आसानी से किया जा सकता है.
मानव त्वचा से महज एक स्तंभ कोशिका (स्टेम सेल) को विकसित कर कई तरह के रोगों के उपचार की संभावनाएं उजागर हो गई हैं. माना जा रहा है कि स्तंभ कोशिका मानव शरीर के क्षय हो चुके अंग पर प्रत्यारोपित करने से अंग विकसित होने लगता है. करीब दस लाख स्तंभ कोशिकाओं का एक समूह सुई की एक नोंक के बराबर होता है. ऐसी चमत्कारी उपलब्धियों के बावजूद समूचा चिकित्सा समुदाय इस प्रणाली को रामबाण नहीं मानता.
शारीरिक अंगों के प्राकृतिक रूप से क्षरण अथवा दुर्घटना में नष्ट होने के बाद जैविक प्रक्रि या से सुधार लाने की प्रणाली में अभी और बुनियादी सुधार लाने की जरूरत है. इधर वंशानुगत रोगों को दूर करने के लिए स्त्री की गर्भनाल से प्राप्त स्तंभ कोशिकाओं का भी दवा के रूप में इस्तेमाल शुरू हुआ है. इस हेतु गर्भनाल रक्त बैंक भी भारत समेत दुनिया में वजूद में आते जा रहे हैं. इस चिकित्सा प्रणाली के अंतर्गत प्रसव के तत्काल बाद गर्भनाल काटने के बाद यदि इससे प्राप्त स्तंभ कोशिकाओं का संरक्षण कर लिया जाए तो इनसे परिवार के सदस्यों का दो दशक बाद भी उपचार संभव है.
इन कोशिकाओं का उपयोग दंपति की संतान के अलावा उनके भाई-बहन तथा माता-पिता के लिए भी किया जा सकता है. गर्भनाल से निकले रक्त को शीत अवस्था में 21 साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है. लेकिन इस बैंक में रखने का शुल्क कम से कम एक-डेढ़ लाख रुपए है.
ऐसे में यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि गरीब लोग इन बैंकों का इस्तेमाल कर पाएंगे. सरकारी स्तर पर अभी इन बैंकों को खोले जाने का सिलसिला शुरू ही नहीं हुआ है. निजी अस्पताल में इन बैंकों की शुरुआत हो गई है और 75 से ज्यादा बैंक अस्तित्व में आकर कोशिकाओं के संरक्षण में लगे हैं. इस पद्धति से जिगर, गुर्दा, हृदय रोग, मधुमेह और स्नायु जैसे वंशानुगत रोगों का इलाज संभव है.
अंग प्रत्यारोपण में सबसे कारगर पद्धति अंगदान ही है. इसकी आपूर्ति तीन प्रकार से अंगदान करके की जा सकती है. पहला कोई भी इंसान जीवित रहते हुए अपना गुर्दा अथवा जिगर दान करके जरूरतमंद को नया जीवन दे. दूसरे, किसी व्यक्ति के ब्रेन डेड होने पर उसके परिजनों की अनुमति से अंगदान किया जाए. लेकिन इसमें अंगदान करने की समय-सीमा होती है.