शोभना जैन का ब्लॉग: श्रीलंका के साथ 'मित्र और संबंधी' वाले रिश्तों को नई गति मिलेगी?
By शोभना जैन | Published: August 8, 2020 07:06 AM2020-08-08T07:06:09+5:302020-08-08T07:06:09+5:30
कोविड की वजह से श्रीलंका के चुनाव दो बार स्थगित करने पड़े थे. दरअसल यह जीत सत्तारूढ़ दल के लिए इसलिए भी बहुत अहम थी क्योंकि इसके जरिये वे राष्ट्रपति के अधिकारों पर लगे प्रतिबंधों को हटाना चाहते हैं.
असाधारण परिस्थितयों में हुए श्रीलंका चुनाव के नतीजों में श्रीलंका के प्रधानमंत्नी महिंदा राजपक्षे ने अपनी श्रीलंका पोडुजना पेरामुना पार्टी के भारी बहुमत से विजयी होने पर प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के बधाई संदेश के जवाब में भारत को श्रीलंका का ‘मित्न और संबंधी’बताया. दूसरी बार सत्ता पर काबिज हुए सत्तारूढ़ दल के सम्मुख इस बार चुनौतियां निश्चय ही गहरी हैं.
कोविड के निरंतर मंडराते खतरे के बावजूद लगभग 71 प्रतिशत मतदाताओं ने देश के सामने उत्पन्न असाधारण संकट से उबरने के लिए सरकार चुनी जिसके सम्मुख कोविड और गहन आर्थिक संकट व विषम घरेलू समस्याओं से निबटने की चुनौती है. इसके साथ ही एक और अहम चुनौती सरकार के समक्ष है, इस क्षेत्न में भारत और चीन जैसे दो शक्तिशाली पड़ोसियों के साथ रिश्तों में संतुलन कैसे बनाए, संतुलन बनाए रखते हुए साझीदारी कैसे की जाए.
खास तौर पर ऐसे में जबकि ‘भरोसेमंद भारत’ के साथ श्रीलंका के द्विपक्षीय सहयोग के प्रगाढ़ मैत्नीपूर्ण संबंधों के साथ-साथ गहरे सांस्कृतिक सामाजिक रिश्ते हैं, तो दूसरी तरफ चीन है, जहां दोनों देशों की सरकारों या सत्तारूढ़ दल के बीच किसी प्रकार का कोई सैद्धांतिक तालमेल नहीं है, न ही कोई सांस्कृतिक सामाजिक निकटता है. लेकिन हकीकत यही है कि अपने देश की वास्तविक परिस्थितियों, आर्थिक, राजनयिक स्थिति के मद्देनजर चीन का उसे मजबूरन सहारा लेना पड़ रहा है.
हालांकि चीन से ‘सहयोग’ लेने वाले श्रीलंका सहित इस क्षेत्न के सभी देश भलीभांति जानते हैं कि वे आर्थिक सहायता और ऋण जंजाल के चक्र में फंस रहे हैं. लेकिन यह भी हकीकत है कि श्रीलंका के सत्तारूढ़ दल का पिछले कार्यकाल में चीन के प्रति भारी झुकाव साफ था. चीन के प्रति झुकाव रखने वाले राजपक्षे भाइयों की सरकार के सम्मुख अब पांच वर्ष का पूरा कार्यकाल है. भारत की नजर खास तौर पर इस बात पर रहेगी. देखना होगा कि खास तौर पर चीन के प्रति झुकाव के चलते भारत के साथ कैसा रहेगा रिश्तों में संतुलन. क्या सत्तारूढ़ दल का दूसरा कार्यकाल दोनों देशों के बीच रिश्तों को नया कलेवर देने का अवसर बन सकेगा? प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी महिंदा राजपक्षे को विजय पर बधाई संदेश देने वाले पहले विश्व नेताओं में से थे.
उन्होंने उम्मीद जताई कि दोनों देश सभी क्षेत्नों में आपसी सहयोग और बढ़ाएंगे और अपने विशेष संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे. राजपक्षे ने भी जवाब में कहा कि दोनों देश ‘मित्न और रिश्तेदार’ हैं और वे भी श्रीलंका की जनता के सुदृढ़ सहयोग से लंबे समय से चल रहे इस सहयोग को और बढ़ाने के लिए काम करने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं.
गौरतलब है कि कोविड की वजह से श्रीलंका के चुनाव दो बार स्थगित करने पड़े थे. दरअसल यह जीत सत्तारूढ़ दल के लिए इसलिए भी बहुत अहम थी क्योंकि इसके जरिये वे राष्ट्रपति के अधिकारों पर लगे प्रतिबंधों को हटाना चाहते हैं. इसी के चलते सत्तारूढ़ दल का प्रयास था कि उसे संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत मिल जाए और चुनाव नतीजों के अनुसार दो-तिहाई बहुमत से उन्हें चार सीट ही कम मिली.
राष्ट्रपति गोटबाया और उनके बड़े भाई प्रधानमंत्नी महिंदा राजपक्षे के चीन के प्रति झुकाव की पृष्ठभूमि में अगर देखें तो भारत और चीन के बीच चल रहे मौजूदा तनाव पर श्रीलंका ने कभी कोई सीधी टिप्पणी नहीं की लेकिन उसकी नजरें बराबर अपने इन दोनों पड़ोसियों के तनाव वाले घटनाक्र म पर बनी रहीं जो पड़ोसी के साथ-साथ उसके विकास कार्यक्रमों में अहम साझीदार भी हैं. दूसरी तरफ जैसा कि पहले कहा गया कि भारत के साथ हालांकि, प्रधानमंत्नी महिंदा के संबंध बहुत अच्छे हैं लेकिन देशों को कर्ज बांट कर उन्हें ऋण चक्र में फंसाकर अपना विस्तारवादी एजेंडा पूरा करने की रणनीति अपना रहे चीन ने इसी नीति के जरिये नेपाल, पाकिस्तान, मालदीव जैसे क्षेत्न के अन्य देशों की तरह श्रीलंका में काफी जाल फैला लिया है.
दरसल, श्रीलंका सहित इस क्षेत्न के देश भलीभांति जानते हैं कि वे आर्थिक सहायता और ऋण जंजाल के चक्र में चीन के विस्तारवादी एजेंडे में फंस रहे हैं. भारत श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है, उसकी अनेक विकास योजनाओं में सहयोग देता रहा है. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगभग सभी मुद्दों पर सहमति रही है. असहमति के कुछ बिंदुओं को छोड़कर कुल मिलाकर रिश्ते कभी-कभार के उतार के बावजूद चढ़ाव वाले ही रहे हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि राजपक्षे भाइयों की नई पारी वाली सरकार चीन के चश्मे से हटकर भारत के साथ रिश्तों को एक नई सोच से नए कलेवर में सकारात्मक ढंग से गति देगी.