दिनकर कुमार का ब्लॉग: चुनावी राजनीति में अखिल गोगोई का हश्र इरोम शर्मिला जैसा होगा!

By दिनकर कुमार | Published: August 31, 2020 03:04 PM2020-08-31T15:04:06+5:302020-08-31T15:04:06+5:30

असम के कृषक नेता अखिल गोगोई ने भी चुनावी राजनीति में प्रवेश करने का फैसला किया है. ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि वे क्या इस राजनीति में सफल होंगे या फिर उनका हश्र इरोम शर्मिला जैसा हो जाएगा।

will Assam Akhil Gogoi's fate in electoral politics will be like Irom Sharmila | दिनकर कुमार का ब्लॉग: चुनावी राजनीति में अखिल गोगोई का हश्र इरोम शर्मिला जैसा होगा!

चुनावी राजनीति में उतरेंगे अखिल गोगोई (फाइल फोटो)

Highlightsअखिल गोगोई अपने प्रदर्शनों में लाखों की भीड़ जुटा सकते हैं, लेकिन उसके वोट में बदलने पर संदेहगोगोई फिलहाल जेल में हैं, विचारधारा या जमीनी संघर्ष की आज की राजनीति में अहमियत बहुत कम

भारत में अधिकांश आंदोलनों से निकले नेता और पार्टियां अंतत: उसी सत्ता-तंत्र का हिस्सा बन जाती हैं जिसे बदलने का सपना लेकर वे चुनावी राजनीति में उतरती हैं. जेपी आंदोलन से निकले नेताओं का सत्ता में पहुंचकर क्या हश्र हुआ, इसकी मिसालें कई हैं. 

शुरू में लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, रामविलास पासवान वगैरह में कई संभावनाएं दिखी थीं. लेकिन बाद में यथास्थितिवाद और राजनीतिक रसूख कायम रखने के चक्कर में वे कुनबापरस्ती की ओर मुड़ गए. कुछ-कुछ ऐसा ही हाल कांशीराम के सामाजिक न्याय आंदोलन से निकली मायावती की बसपा और इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामक संगठन से अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए जन लोकपाल आंदोलन से निकली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का भी हुआ. 

ऐसी मिसालें उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक कई हैं. आंदोलन को व्यवस्थागत राजनीति में बदलने के चक्कर में साख गंवा देने का सबसे प्रमुख उदाहरण मणिपुर की इरोम शर्मिला का है. उन्होंने सैन्यबल विशेष अधिकार अधिनियम को हटाने के लिए एक दशक से अधिक समय तक की अपनी भूख हड़ताल को खत्म करके विधानसभा चुनावों में मैदान में उतरने का फैसला किया तो जमानत भी नहीं बचा पाई. 

इरोम विधानसभा चुनाव में थउबल सीट से मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ीं, लेकिन उन्हें मात्र 90 वोट ही मिल सके. अब असम के कृषक नेता अखिल गोगोई ने भी चुनावी राजनीति में प्रवेश करने का फैसला किया है. देखना यह है कि उनका हश्र इरोम से कितना अलग होता है. किसान अधिकार समूह कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) जल्द ही अगले साल की शुरुआत में असम चुनाव लड़ने के लिए एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी शुरू करेगी और इसके संस्थापक अखिल गोगोई मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे.

गोगोई फिलहाल जेल में हैं. उन्हें एनआईए ने राजद्रोह के आरोपों के तहत और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों के तहत कथित तौर पर प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) का ओवरग्राउंड वर्कर होने के आरोप में गिरफ्तार किया था. उन्होंने और केएमएसएस ने पिछले साल दिसंबर में असम में सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

‘हम एक राजनीतिक पार्टी का गठन करेंगे. गोगोई के जेल से बाहर आने के बाद हम पार्टी के नाम और अन्य विवरणों की घोषणा करेंगे.’ केएमएसएस के अध्यक्ष भास्को डी सैकिया ने कहा. उन्होंने कहा कि गोगोई सीएम पद के उम्मीदवार होंगे. नई पार्टी राज्य के विभिन्न जातीय, धार्मिक और भाषाई समुदायों से संबंधित लोगों को साथ लेकर बनेगी.

यह घोषणा कांग्रेस और एआईयूडीएफ द्वारा चुनाव के लिए गठबंधन करने के निर्णय के तुरंत बाद हुई है. इसी समय प्रभावशाली छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद (एजेवाईसीपी) ने भी एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी बनाने का संकेत दिया है.

अखिल गोगोई अपने विरोध प्रदर्शनों में भले ही लाखों की भीड़ जुटा सकते हैं, लेकिन वे उन लाखों लोगों से अपने लिए मतदान करने की अपेक्षा नहीं कर सकते. धनबल और बाहुबल से जब चुनाव जीतने का सिलसिला चल रहा हो, जब पैसे की थैली देकर चुनावी टिकट खरीदने का युग चल रहा हो और जब मतदाता दारू या पैसे के बदले वोट बेचने के लिए तत्पर हो, तब विचारधारा या जमीनी संघर्ष की कोई अहमियत नहीं रह जाती।

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