राजेश बादल का ब्लॉग: सफल नहीं होगा गांधी जी को नकारने का षड्यंत्र

By राजेश बादल | Published: May 21, 2019 07:06 AM2019-05-21T07:06:52+5:302019-05-21T07:06:52+5:30

अंग्रेजों ने हमें समान रूप से गुलामी की राष्ट्रीय चुभन दी. गांधीजी  ने उस चुभन या तीखी धार को अपने प्रभाव से न केवल हल्का किया, बल्कि यह अहसास भी कराया कि उनकी जादू की छड़ी से ही आजादी का द्वार खुलता है.

why Nathuram Godse and mahatma gandhi controversial comment in ls polls 2019 | राजेश बादल का ब्लॉग: सफल नहीं होगा गांधी जी को नकारने का षड्यंत्र

राजेश बादल का ब्लॉग: सफल नहीं होगा गांधी जी को नकारने का षड्यंत्र

सत्नहवीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव के दरम्यान महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का जिस तरह महिमामंडन किया गया, वह हमें झकझोरता है. आज हम यह भी पाते हैं कि महात्मा गांधी से उपकृत राष्ट्र में उनका पुण्य स्मरण करते हुए वह हार्दिक कृतज्ञता बोध नहीं पाया जाता. कर्तव्य की तरह हम उन्हें याद करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ उनके योगदान को शापित करने का षड्यंत्न भी हो रहा है. अब गांधी को अनेक ऐसी घटनाओं के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जाने लगा है, जिनका वास्तव में उनसे लेना-देना ही नहीं है. अहिंसक संघर्ष के बाद संसार के सबसे बड़े साम्राज्य की भारत से विदाई के बाद हम गांधी से और क्या चाहते थे.

गुलामी से मुक्त एक विराट देश को शासन संचालन का भी मंत्न गांधीजी देकर जाएं- हम ऐसा क्यों चाहते थे? गांधी की कोख से निकले सत्याग्रह ने आजादी का फल हमें दिया. इसके बाद शासन संचालन की जिम्मेदारी तो हमारी थी. हम अपने सपनों का भारत नहीं बना सके तो उसके लिए भी राष्ट्रपिता को जिम्मेदार मानने लगे हैं. 


हम यह कैसे हिंदुस्तानी समाज की रचना कर रहे हैं, जिसमें अपने राष्ट्रनायकों और शहीदों के लिए स्थान सिकुड़ता जा रहा है. क्या हम भारत के लोग इस मुल्क और महात्मा के रिश्ते को अब तक नहीं समझ पाए हैं? वह रिश्ता, जो देह और आत्मा की तरह है. क्या हमें और हमारी नई पीढ़ियों को मोहनदास करमचंद गांधी के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के रूप में परिवर्तन के पीछे की दास्तान पता है? एक दुबला पतला हमारे जैसा ही हाड़-मांस का आदमी अफ्रीका से आता है और भारत के इतिहास में पहली बार करोड़ों लोगों को प्रेरित करता है कि वे अपने राजनीतिक हित के लिए संघर्ष करें.

असंख्य पोखरों में विभाजित देश में वह समंदर की लहरों का ऐसा आवेग पैदा करता है जिसकी बाढ़ में समूची गोरी हुकूमत बह जाती है. याद करें कि उन दिनों भारत छोटे छोटे अनगिनत तालाबों में बंटा था. ये तालाब राष्ट्रीय आंदोलन की शक्ल नहीं ले सकते थे क्योंकि तब ये तालाब वास्तव में राष्ट्र के आकार पर असर डालने वाले नहीं थे. हिंदुस्तान जैसा देश दरअसल समंदर ही है और समंदर की समग्रता में ही ज्वार आता है. सतही ढंग से सोचने वाले कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं कि बरतानवी सत्ता ने ही वास्तव में ढेरों शासन प्रणालियों के सहारे चल रहे छोटे-छोटे उप राष्ट्रों को भारत जैसे एक महा राष्ट्र का आकार दिया है. पर उनसे कौन सहमत हो सकता है.

अंग्रेजों ने हमें समान रूप से गुलामी की राष्ट्रीय चुभन दी. गांधीजी  ने उस चुभन या तीखी धार को अपने प्रभाव से न केवल हल्का किया, बल्कि यह अहसास भी कराया कि उनकी जादू की छड़ी से ही आजादी का द्वार खुलता है. इस धारणा पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोगों ने यकीन किया. इसके बाद ही ढेर सारे तारों ने आसमान को अपना मानना शुरू कर दिया. आज अपने इसी आसमान पर हम क्या गर्व नहीं कर रहे हैं? तो फिर गांधी को दिन-रात कोसने वालों को अहिंसक उत्तर प्रत्येक भारतीय को क्यों नहीं देना चाहिए? 

Web Title: why Nathuram Godse and mahatma gandhi controversial comment in ls polls 2019

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