विकास मिश्र का ब्लॉगः यूएनएफपीए की रिपोर्ट पर कोई गंभीर चर्चा क्यों नहीं हो रही है?

By विकास मिश्रा | Published: July 8, 2020 11:36 AM2020-07-08T11:36:14+5:302020-07-08T11:36:14+5:30

सरकार ने कानून तो बना दिए लेकिन जब तक समाज का नजरिया नहीं बदलता तब तक इस तरह के अपराध होते रहेंगे. भ्रूण हत्या पर जो शोध सामने आए हैं वे डराते हैं. आशंका है कि अगर मौजूदा हालात बने रहे तो भी 50 की उम्र तक बिना शादी वाले पुरुषों की संख्या में 2050 के बाद 10 फीसदी तक का इजाफा हो जाएगा.

Why is there no serious discussion on the UNFPA report? | विकास मिश्र का ब्लॉगः यूएनएफपीए की रिपोर्ट पर कोई गंभीर चर्चा क्यों नहीं हो रही है?

महिलाओं या लड़कियों के गायब होने के अपराध में भारत से केवल चीन ही आगे है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) ने पिछले सप्ताह जब दुनिया भर में 50 वर्षो के दौरान गायब होने वाली महिलाओं और लड़कियों का आंकड़ा जारी किया तो दंग हो जाना स्वाभाविक था. दुनिया में गायब हुई 14 करोड़ 26 लाख महिलाओं या लड़कियों में से 4 करोड़ 58 लाख भारत की हैं! हिसाब लगाएं तो प्रतिदिन यह आंकड़ा 2500 से ज्यादा होता है. यह आंकड़ा वाकई रोंगटे खड़े कर देता है. कितना दुखद और कितना आश्चर्यजनक है कि संयुक्त राष्ट्र के इन आंकड़ों पर हमारे देश में कोई गंभीर चर्चा तक नहीं हुई और न हो रही है!

रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं या लड़कियों के गायब होने के अपराध में भारत से केवल चीन ही आगे है, जहां 50 वर्षो में 7 करोड़ 23 लाख महिलाएं या लड़कियां लापता हुईं. यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि यूएनएफपीए ने लापता लड़कियों में उन बच्चियों को भी शामिल किया है जो गर्भ में  या फिर जन्म के बाद मार दी जाती हैं और जिनका कभी कुछ पता नहीं चलता. रिपोर्ट कहती है कि 2013 से 2017 के बीच भारत में करीब 4 लाख 60 हजार बच्चियां हर साल जन्म के समय ही लापता हो गईं.

सवाल यह है कि जो देश देवी की पूजा करता है, जहां कन्या पूजने की सांस्कृतिक विरासत रही है वहां महिलाओं या लड़कियों के प्रति यह रवैया क्यों? क्यों हम किसी बच्ची को गर्भ में ही मार डालते हैं या फिर जन्म के बाद मार डालते हैं? क्या केवल बेटों से यह सृष्टि चलेगी? हमारे देश में कई ऐसे राज्य हैं जहां बहुत से लड़कों की शादियां नहीं हो पातीं क्योंकि लड़कियों की संख्या कम है. इन राज्यों ने बच्चियों को बचाने का अभियान जरूर चला रखा है लेकिन भ्रूण हत्या अभी भी पूरी तरह रुकी नहीं है.

सरकार ने कानून तो बना दिए लेकिन जब तक समाज का नजरिया नहीं बदलता तब तक इस तरह के अपराध होते रहेंगे. भ्रूण हत्या पर जो शोध सामने आए हैं वे डराते हैं. आशंका है कि अगर मौजूदा हालात बने रहे तो भी 50 की उम्र तक बिना शादी वाले पुरुषों की संख्या में 2050 के बाद 10 फीसदी तक का इजाफा हो जाएगा. चीन इस समस्या से बुरी तरह जूझ रहा है. वहां दुल्हनें नहीं मिल रही हैं. चीन में 100 लड़कियों के लिए 136 पुरुष कतार में हैं. 36 तो कुंवारे ही रहेंगे न! भारत में 100 लड़कियों पर पुरुषों की संख्या 108 है.  

अब चलिए जरा इस पर विचार कीजिए कि जो लड़कियां किशोरावस्था की दहलीज पर पहुंचने के पहले या उसके बाद  गायब होती हैं वो जाती कहां हैं? यह कोई बहुत छिपा हुआ मामला नहीं है. आज भी लड़कियों की खरीद फरोख्त का एक बड़ा बाजार हमारे देश में मौजूद है. ऐसा बाजार करीब-करीब हर शहर में है. शासन को भी पता है और प्रशासन को भी लेकिन उनकी तरफ किसी का ध्यान ही नहीं है. इन ठिकानों को अचानक बंद कर देना हो सकता है संभव न हो लेकिन क्या ऐसी योजना नहीं बनाई जा सकती कि बीस साल बाद हमारे यहां ऐसी कोई मंडी हो ही नहीं! यदि नई लड़कियों को इस अमानुषिक धंधे में पहुंचने से रोकने की शासन ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है.

आखिर क्यों किसी लड़की के साथ बलात्कार हो जाता है? आपको जानकर पीड़ा होगी कि इस देश में हर दिन 100 से ज्यादा बेटियों की आबरू लूटी जाती है. यह वो आंकड़ा है जो पुलिस की फाइलों में दर्ज होता है. वास्तविक आंकड़े इससे कहीं ज्यादा होते हैं क्योंकि लोक लाज के भय से बहुत से मामले सामने आ ही नहीं पाते हैं. दुखद पक्ष यह है कि बलात्कार के मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं. तो क्या कानून ठीक से अपना काम नहीं कर पा रहा है या फिर उसमें ऐसे छिद्र हैं जिससे अपराधी बच निकलते हैं? 

मुझे लगता है कि इस अपराध को संगीन जुर्म माना तो गया है लेकिन कानूनी दांव-पेंच में सबकुछ उलझ कर रह जाता है. अपराधी को इतनी सख्त सजा नहीं मिल पाती या इतनी देर से मिलती है कि समाज में कानूून का खौफ पैदा नहीं हो पाता है. कुछ मामले मीडिया में हंगामेदार हो जाते हैं तो फैसला कुछ जल्दी आ जाता है लेकिन ज्यादातर मामले लंबा खिंचते रहते हैं.  

एक सव्रे के अनुसार  28 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं. लॉकडाउन के दौरान देश के कई हिस्सों से घरेलू हिंसा की घटनाएं ज्यादा सामने आईं. ये सारे परिदृश्य चिंता पैदा करने वाले हैं. हमारे पूरे समाज को सुधारने के लिए एक आंदोलन की जरूरत है ताकि स्त्री के प्रति हिंसा के कलंक से हम मुक्त हो सकें.

Web Title: Why is there no serious discussion on the UNFPA report?

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