नैतिकता की दौड़ में आखिर क्यों पीछे हैं हम ?

By एनके सिंह | Published: June 28, 2019 11:26 AM2019-06-28T11:26:45+5:302019-06-28T11:26:45+5:30

दुनिया के अधिकतर प्रजातांत्रिक देशों में भ्रष्टाचार से लड़ने के सरकार के तरीके असफल रहे हैं. ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की हाल की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के 180 मुल्कों में 78 वें स्थान पर है (

Why are we behind in the race for ethics? | नैतिकता की दौड़ में आखिर क्यों पीछे हैं हम ?

नैतिकता की दौड़ में आखिर क्यों पीछे हैं हम ?

Highlights एयर इंडिया का रीजनल डायरेक्टर सिडनी एयरपोर्ट की एक दुकान से पर्स चुराने के आरोप में निलंबित किया गया है.   इस दुनिया में एक आंकड़े के अनुसार 3.50 करोड़ कानून हैं लेकिन हत्या व बलात्कार बढ़ते ही जा रहे हैं.

विगत 22 जून को पूरे विश्व में आयोजित 5वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर हरियाणा के रोहतक जिले में एक विराट कार्यक्र म रखा गया. 20 हजार लोगों ने आने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया. सरकार ने 3500 चटाइयां (मैट) सुविधा के लिए मैदान में लगाईं. अखबारों की खबर और फोटो में स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि योग करने के बाद कार्यक्र म जैसे ही खत्म हुआ, लोग चटाइयां लेकर भागने के लिए गिद्ध भाव में छीना-झपटी करने लगे. सारी चटाइयां कुछ ही क्षणों में लापता हो गईं. उधर एक अन्य खबर के मुताबिक एयर इंडिया का रीजनल डायरेक्टर सिडनी एयरपोर्ट की एक दुकान से पर्स चुराने के आरोप में निलंबित किया गया है.   

अब तस्वीर का दूसरा पहलू देखिए. अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के ईमानदारी परखने के एक नए पैमाने पर भारत सहित दुनिया के 40 देशों के 355 शहरों में यह अनूठा अध्ययन किया गया. भारत 30 वें स्थान पर था यानी हम तासीरन बेईमान हैं. चीन सबसे अधिक बेईमान पाया गया. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने तीन तरह के 17000 पर्स (बटुए) जिनमें कुछ खाली, कुछ में 13.45 डॉलर और कुछ में 80 डॉलर के मूल्य के स्थानीय पैसे और साथ ही उन सभी पर्स में कुछ खरीद की लिस्ट और फर्जी पते वाले बिजनेस कार्ड होते थे. ये पर्स सार्वजनिक स्थलों पर जैसे बैंकों, डाकघरों, संग्रहालयों और सिनेमाघरों में धीरे से गिरा दिया गया. फिर एक शोध-सहायक आसपास के किसी कार्यालय या स्टोर के कर्मचारी को पर्स देते हुए कहता था कि उसे यह पर्स मिला है लेकिन उसे तत्काल कहीं जाना है लिहाजा वह (कर्मचारी) उसे उस पते पर फोन कर सूचित कर दे. जो बात दुनिया के मनोवैज्ञानिकों के लिए चौंकाने वाली थी वह यह कि भारत सहित लगभग सभी देशों में खाली बटुए के मुकाबले ज्यादा पैसे वाले बटुए लोगों ने मिलने के बाद पर्स में रखे पते पर वापस किए. यह अलग बात है कि स्विट्जरलैंड के लोगों ने सर्वाधिक 80 प्रतिशत भरा पर्स और 74 प्रतिशत खाली पर्स, जबकि भारत के लोगों में 43 प्रतिशत ने भरा पर्स और 23 प्रतिशत खाली पर्स वापस किया. चीन के लिए यह आंकड़ा क्रमश: 22 और आठ फीसदी रहा. 


जो लोग भारत की देन, ‘योग’ जैसी पवित्न अवधारणा और दुनिया में आत्मोत्थान के सबसे बड़े साधन योगाभ्यास के लिए आयोजन स्थल पर गए थे वे चटाई तब एक दूसरे से छीनने लगे जब अन्य कुछ लोग ऐसा करने लगे. दरअसल इस शोध की एक मौलिक गलती है कि सहायकों ने जिसे पर्स दिया था वे स्टोर या ऑफिस में नौकरी पर थे. शायद जब पर्स दिया जा रहा था तो एक-दो अन्य कर्मचारी भी देख रहे थे क्योंकि भारत के शहरों में ये जगहें काफी भीड़भाड़ वाली होती हैं. उसे यह डर था कि जिसने पर्स दिया है वह कुछ घंटों या एक दिन बाद वापस आकर पूछ सकता है. अगर यह प्रयोग तब किया जाता जब पर्स सीधे किसी अज्ञात व्यक्ति के हाथ में पहुंचता तो एयर इंडिया के अधिकारी की तरह अधिकांश मिलते और शायद भारत चीन से आगे निकल जाता. यूरोपियन पैमाने पर और सामाजिक संरचना के मद्देनजर भारत में किए गए प्रयोग हमेशा गलत निष्कर्ष देंगे. 

दुनिया के अधिकतर प्रजातांत्रिक देशों में भ्रष्टाचार से लड़ने के सरकार के तरीके असफल रहे हैं. ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की हाल की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के 180 मुल्कों में 78 वें स्थान पर है (तीन अंक ऊपर आ कर) जबकि चीन के नेता शी जिनपिंग के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई छेड़ने के बावजूद यह देश दस अंक नीचे फिसल कर 87वें स्थान पर पहुंच गया है. 

दरअसल भ्रष्टाचार एक सामाजिक व्याधि है जिससे कानून बनाकर मुक्ति पाना असंभव है. इस दुनिया में एक आंकड़े के अनुसार 3.50 करोड़ कानून हैं लेकिन हत्या व बलात्कार बढ़ते ही जा रहे हैं. सामाजिक व्याधि को खत्म करने के लिए सामाजिक और पारिवारिक संस्थाएं और प्रक्रि या विकसित करनी पड़ती है. नैतिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए भारतीय समाज में दो संस्थाएं हुआ करती थीं. मां की गोद और प्राथमिक स्कूल के अध्यापक (मास्साब). बाजार की ताकतों ने इन दोनों की भूमिका शून्य कर दी. मां पड़ोसी की बड़ी गाड़ी देखकर ‘नैतिकता’ को विकास में बाधक समझाने लगी और ‘मास्साब’ वेतन आयोग की रिपोर्ट में फंस गए. 
कोई दो दशक पहले सिंगापुर ने इस मुद्दे पर जबर्दस्त काम किया. बेहद ताकतवर गैर-सरकारी संस्थाएं विकसित कीं, सख्त कानून बनाए और समाज के स्तर पर नैतिक मूल्यों की बहाली के लिए व्यापक अभियान छेड़ा. आज यह देश सबसे ईमानदार मुल्कों में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है (सन 2017 के मुकाबले   2018 में तीन स्थान ऊपर आ कर).

डेनमार्क और न्यूजीलैंड क्र मश: प्रथम और दूसरे स्थान पर बने हैं. व्यक्तिगत नैतिक मूल्यों पर अभाव-जनित जिजीविषा का भारी पड़ना, उन संस्थाओं का खत्म होना जो बचपने से ही हर कीमत पर नैतिक मूल्य पर टिके होने का भाव डालती हैं और हतोत्साहित करने वाली संस्थाओं और कानूनों का कमजोर होना भारत में भ्रष्टाचार की जड़ को लगातार पुख्ता करता जा रहा है. 

Web Title: Why are we behind in the race for ethics?

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