ब्लॉग: वर्तमान हुकूमतदार का विकल्प कौन है?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 21, 2019 03:53 PM2019-11-21T15:53:23+5:302019-11-21T15:55:46+5:30
आप भारत की प्रगतिशीलता और लोकतंत्र को झूठा करार दे रहे हैं। आप तो खुद को भी अपाहिज मान रहे हैं क्योंकि विकल्प तो आप भी हो सकते हैं न?
गौरव अधिराष्ट्र
भारत की राजनीति में हूकूमत के सिपहसालारों का सबसे कथित तौर पर मजबूत और उनके द्वारा सर्वाधिक पूछा जाने वाला सवाल यही है कि वर्तमान हुकूमतदार का विकल्प कौन है ? पूछते हुए शर्म नहीं आती ? 130 करोड़ की आबादी वाला दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र यदि एक विकल्प नहीं दे सकता तो इसका मतलब ये है कि आप भारत माता की गोद और हिंदुस्तान की मिट्टी को बांझ घोषित कर रहें हैं।
आप भारत की प्रगतिशीलता और लोकतंत्र को झूठा करार दे रहे हैं। आप तो खुद को भी अपाहिज मान रहे हैं क्योंकि विकल्प तो आप भी हो सकते हैं न? अद्भुत संयोग ये है कि ये घोषणा करने वाले वही लोग हैं जो भारत माता की जय नहीं बोलने पर गोली मार देने की बात करते हैं और हिंदुस्तान की मिट्टी से अगाध श्रध्दा की हुंकार भरते हैं। यदि 130 करोड़ की आबादी में विकल्प ही नहीं है तो किस बात के विश्व गुरु? किस बात का लोकतंत्र ? किस बात का विकासशील राष्ट्र?
आइये अब आपको जबाब देते हैं कि विकल्प कौन है?
क्या इंदिरा का विकल्प नहीं हुआ ? या मनमोहन सिंह का? शिवराज सिंह चौहान का विकल्प नहीं हुआ ? या ज्योति बसु का ? कोई आजीवन चुनाव नहीं हारे तब भी आप ये नही कह सकते कि इसका विकल्प नहीं है या कौन विकल्प है ? क्योंकि विकल्प का संबंध हार या जीत से नहीं होता। क्या एक गांधी नहीं होते तो भारत आजाद नहीं होता ? या सिर्फ वही अकेले देश को आजादी दिला सकते थे? अताततियों का वध करने के लिए केवल परशुराम ही विकल्प थे या उनका किसी ने स्थान नहीं ग्रहण किया? यहां तक कि राम और कृष्ण के भी विकल्प क्रमशः कुश और परीक्षित आये और महान विकल्प बनें।
आप विकल्प हैं, हम विकल्प हैं, रिक्शा चलाने वाले से लेकर सचिवालय चलाने वाले तक हर कोई विकल्प है। भारत मे 130 करोड़ विकल्प हैं। क्या हूकूमतदार कोई ईश्वर हैं? क्योंकि सिर्फ एक ईश्वर ही है जिसका कोई विकल्प नहीं है। सूचना आतंकवाद की जकड़न से बाहर आइये। विकल्प को ढूँढिये दिन में आंखों से और रात को लालटेन लेकर और न मिले तो खुद बनिए, न बन सकें तो किसी को मिलकर बनाइए अन्यथा हिंदुस्तान के वजूद और लोकतंत्र पर दाग बनकर जिएंगे आप।
(लेखक- गौरव अधिराष्ट्र नई दिल्ली के आईआईएमसी में पत्रकारिता के छात्र हैं)