विजय दर्डा का ब्लॉगः हम सूखे से जूझ रहे थे, अब बाढ़ की मार पड़ेगी

By विजय दर्डा | Published: July 1, 2019 05:55 AM2019-07-01T05:55:13+5:302019-07-01T05:55:13+5:30

पर्यावरण के नुकसान का नतीजा हम अपने देश में भी देख ही रहे हैं. पिछले माह चेन्नई में पीने का पानी करीब-करीब खत्म हो गया था.  स्थिति भयावह हो गई. चेन्नई देश के उन 21 शहरों में शामिल है जहां 2020 तक भूजल समाप्त हो जाने की आशंका पहले ही व्यक्त की जा चुकी है.

We were battling drought, now the flood will be hit, monsoon, rainfall in mumbai | विजय दर्डा का ब्लॉगः हम सूखे से जूझ रहे थे, अब बाढ़ की मार पड़ेगी

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मैं अभी यूरोपीय देशों की यात्र पर हूं. यहां की कलकल बहती ट्रांसपैरेंट नदियों और शानदार जंगलों को देखकर दिल खुश हो जाता है लेकिन यहां पड़ रही गर्मी को लेकर हैरत में हूं. फ्रांस का तापमान शुक्रवार को करीब 45 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया. यूरोप के हिसाब से यह जानलेवा गर्मी है. स्विट्जरलैंड में सरकार ने हीट वार्निग जारी कर रखा है. आखिर इतनी गर्मी क्यों पड़ रही है? पता चला कि यूरोप के झुलसने का कारण अफ्रीकी गर्म हवाएं हैं. यानी पर्यावरण का नुकसान कहीं भी हो, परेशान तो पूरी दुनिया को ही होना है. 

पर्यावरण के नुकसान का नतीजा हम अपने देश में भी देख ही रहे हैं. पिछले माह चेन्नई में पीने का पानी करीब-करीब खत्म हो गया था.  स्थिति भयावह हो गई. चेन्नई देश के उन 21 शहरों में शामिल है जहां 2020 तक भूजल समाप्त हो जाने की आशंका पहले ही व्यक्त की जा चुकी है. आपको याद होगा कि जो चेन्नई अभी पानी के लिए तरस रहा था, वहीं 2015 में भीषण बाढ़ आई थी और बड़ा भारी नुकसान हुआ था.  

इस साल भी आप यह महसूस करेंगे कि जो पहले सूखे की चपेट में थे, ऐसे बहुत सारे इलाके बाढ़ की चपेट में आ जाएंगे. तो सूखे का नुकसान अलग और बाढ़ का नुकसान अलग! यह पर्यावरण के प्रति उपेक्षा का ही नतीजा है. पहले बारिश के समय गांवों में मेड़ बनाकर पानी को रोका जाता था ताकि बारिश का पानी रिसकर जमीन के भीतर पहुंचे. हर गांव में कई तालाब होते थे जिनमें बारिश का पानी एकत्र होता था. उनसे भी पानी जमीन में रिसता था. जंगलों की भरमार थी. पेड़-पौधे पानी को जमीन के भीतर पहुंचाने का काम बखूबी करते हैं, लेकिन धीरे-धीरे हमने जंगलों को नष्ट कर दिया. तालाबों को समाप्त कर दिया. 

शहरी क्षेत्र में कांक्रीट का ऐसा जाल बिछा दिया कि पानी जमीन के भीतर समा ही न पाए. ऐसी स्थिति में भूजल स्तर नीचे नहीं जाएगा तो और क्या होगा? आपको जानकर दुख होगा कि 2020 तक चेन्नई के अलावा बेंगलुरु, वेल्लोर, हैदराबाद, इंदौर, रतलाम, गांधीनगर, अजमेर, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, आगरा, नई दिल्ली, गाजियाबाद, यमुनानगर, गुरुग्राम, लुधियाना, मोहाली, अमृतसर, पटियाला और जालंधर में भूजल स्तर समाप्त हो जाएगा! 

हालांकि कहने को सरकार ने नियम बना रखा है कि जो भी घर बने उसमें बारिश के पानी को जमीन के भीतर पहुंचाने की व्यवस्था यानी  वाटर हाव्रेस्टिंग जरूर हो लेकिन हकीकत में ऐसा हो नहीं पा रहा है. एक तो लोगों में जागरूकता का अभाव है और दूसरी बात यह है कि स्थानीय प्रशासन की ओर से कोई सख्ती भी नहीं की जाती है. अनुमान है कि हमारे देश में हर साल करीब  4,000 अरब घनमीटर पानी बरसता है. इसका अधिकांश हिस्सा बहकर समुद्र में चला जाता है. केवल दस प्रतिशत अर्थात 400 अरब घनमीटर पानी ही हमारे उपयोग में आ पाता है.   

दक्षिण भारत की नदियों में 90 प्रतिशत तथा उत्तर भारत की नदियों में 80 प्रतिशत पानी जून से सितंबर महीने के बीच में प्राप्त होता है. यदि हम नहरों और छोटे-छोटे डैम के माध्यम से इस पानी का भंडारण कर सकें तो सूखे की समस्या से निश्चय ही निजात पाई जा सकती है. इसके साथ ही छोटे-छोटे बांध और तालाब बनाकर उस पानी को रोका जा सकता है जो अंतत: नदी के रास्ते होते हुए समुद्र तक पहुंच जाता है. 

पर्यावरण के नुकसान का ही नतीजा है कि हमारे यहां नदियां दम तोड़ रही हैं. यहां तक कि गंगा की भी हालत ठीक नहीं है. यमुना और गंडक जैसी नदियां तो पहले ही दम तोड़ चुकी हैं. नर्मदा कमजोर होती जा रही है और क्षिप्रा में एक बूंद पानी नहीं बचा है. नदियों को एक तरफ तो हमने खूब प्रदूषित किया और दूसरी तरफ उन्हें जीवन देने वाले जंगलों को लगातार नष्ट करते जा रहे हैं. नदी के पानी के भंडारण के लिए जहां तक नहर और डैम बनाने का सवाल है तो यह पूरी प्रक्रिया ही हमारे यहां भ्रष्टाचार की चपेट में है. दर्जनों ऐसी परियोजनाएं हैं जो पिछले पंद्रह, बीस साल से लटकी पड़ी हैं. ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार यूरोप में नहीं है, है लेकिन बहुत ऊपर के स्तर पर है. नीचे काम ठीकठाक होता है! खासकर जलसंवर्धन के क्षेत्र में इन देशों ने बहुत अच्छा काम किया है और कर रहे हैं. 

जब मैं सांसद था, तब तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने हम सांसदों को बुलाया था और कहा था  कि अपने क्षेत्र के कुओं, तालाबों और पोखरों को पुनर्जीवित करिए. उन्होंने हमें यह भी कहा था कि जंगलों को बचाइए और अपने इलाके में भरपूर पेड़ लगाइए. पेड़ और पानी ही पर्यावरण को सहेज सकते हैं. पर्यावरण अच्छा रहेगा तो दुनिया अच्छी रहेगी. मुङो लगता है कि अब्दुल कलाम का यह संदेश जन जन में फैलना चाहिए. ताकि हम सब मिलकर पेड़ और पानी को बचा सकें, धरती पर जंगल फैले और धरती के नीचे पानी रिसे.

हमारे देश में स्थिति कितनी खराब है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आजादी के समय हमारी आबादी करीब 35 करोड़ थी और हर व्यक्ति के लिए प्रतिवर्ष पांच हजार घनमीटर पानी उपलब्ध था. अभी यह उपलब्धता 1000 घनमीटर से थोड़ी ही ज्यादा है. 

हमारी आबादी बढ़ी है और पानी की जरूरतें भी बढ़ी हैं लेकिन हमने यदि जंगलों को बचाया होता, कांक्रीट के जंगल न फैलाए होते तो हालत इतनी बुरी भी नहीं होती. वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि हमें सूखे और बाढ़ से निपटना है तो कम से कम 600 अरब घनमीटर पानी को नदी में पहुंचने से पहले ही तालाबों, पोखरों और अन्य जलाशयों में रोकना होगा. 

महाराष्ट्र में रालेगण सिद्धि और राजस्थान में अलवर ने ऐसी राह दिखाई है. वहां के लोगों ने छोटे-छोटे तालाब बनाकर बारिश के पानी को बहने से बचाया. उन इलाकों में जमीन के भीतर पानी का स्तर बढ़ा है. सीधी सी बात है कि बारिश के पानी का यदि हम प्रबंधन कर पाए तो हमें सूखे से भी मुक्ति मिलेगी और बाढ़ की मार भी नहीं पड़ेगी!

Web Title: We were battling drought, now the flood will be hit, monsoon, rainfall in mumbai

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