watch Arshad Nadeem-Neeraj Chopra Olympics 2024: इस बार ओलंपिक में भाला फेंक प्रतियोगिता में भारत के प्रतियोगी नीरज चोपड़ा रजत पदक ही जीत पाए. प्रतियोगिता का स्वर्ण पदक पाकिस्तान के खिलाड़ी अरशद नदीम के हिस्से में आया. यह समाचार तो मीडिया में आया था, पर पदकों के बजाय कहीं अधिक महत्व इस बात को मिला कि दोनों खिलाड़ियों की माताओं ने अपनी प्रतिक्रिया में इसे रेखांकित किया कि हिंदुओं और मुसलमानों के आपसी रिश्ते पदक से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं.
स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले पाकिस्तानी खिलाड़ी अरशद नदीम की मां से जब पूछा गया कि बेटे की इस उपलब्धि के बारे में उन्हें क्या कहना है, तो सामान्य जीवन जी रही उस मां ने यह कहना जरूरी समझा कि हिंदुस्तान का नीरज भी उन्हें अपने ही अरशद जैसा लगता है. उनके शब्द हैं, “खुशी है कि अरशद जीता, पर नीरज भी मेरे बेटे जैसा है.
वह अरशद का दोस्त भी है. हार-जीत तो होती ही रहती है. मैंने उसके लिए भी दुआ की थी.” उधर भारत में नीरज की माताजी ने भी अपनी प्रतिक्रिया कुछ इसी तरह व्यक्त की थी, “हम बहुत खुश हैं. हमारे लिए तो सिल्वर भी गोल्ड के बराबर है. गोल्ड जीतने वाला भी हमारा ही लड़का है, मेहनत करता है.”
“नीरज मेरे बेटे जैसा है”, “जीतने वाला (नदीम) भी हमारा ही लड़का है”, यह दो छोटे-छोटे वाक्य अपने भीतर बहुत कुछ छुपाए हुए हैं. हर मां अपने बेटे की जीत के लिए दुआ मांगती है, पर उसके प्रतिद्वंद्वी के लिए भी दुआ मांगना सहज नहीं होता. पर भारत और पाकिस्तान की इन दो माताओं ने एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिस पर मनुष्यता गौरवान्वित अनुभव कर सकती है.
सांप्रदायिक ताकतें जिस तरह हवा में जहर घोलने का काम कर रही हैं, उसे देखते हुए इन दो माताओं की यह बातें उम्मीद जगाने वाली हैं. पाकिस्तानी खिलाड़ी शोएब अख्तर ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा है, “गोल्ड जिसने जीता है वह भी हमारा बेटा है”, यह बात सिर्फ एक मां ही कह सकती है. इस बारे में नीरज से पूछा गया तो उनका उत्तर था “मेरी मां एक गांव से ताल्लुक रखती है.
वहां ज्यादा मीडिया नहीं है इसलिए वहां के लोग जो कहते हैं दिल से कहते हैं. मेरी मां को दिल से जो भी महसूस हुआ, उन्होंने कहा.” यह महसूस करने वाली बात विचार करने योग्य है. आज जबकि दुनिया भर के देशों में सांप्रदायिक उन्माद सिर उठाता दिख रहा है, एक-दूसरे के लिए अपनापन महसूस करना बहुत सारी गंभीर समस्याओं का समाधान दे सकता है.
इन दो माताओं ने अपने दिल की बात कह कर एक रास्ता दिखाया है दुनिया को, जो अमन की मंजिल तक पहुंचा सकता है, इंसानियत का वास्ता देकर धर्म या जाति के नाम पर आपस में लड़ने की निरर्थकता का अहसास करा सकता है.