Waqf Bill JPC meeting: लोकतंत्र की गरिमा को ठेस न पहुंचाएं जनप्रतिनिधि 

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: October 24, 2024 05:19 AM2024-10-24T05:19:31+5:302024-10-24T05:19:31+5:30

Waqf Bill JPC meeting: संयुक्त संसदीय समिति में शामिल पक्ष-विपक्ष के सांसद ऐसा रास्ता तलाश कर रहे हैं जिससे किसी की भावना आहत न हो और न ही कोई समुदाय खुद को उपेक्षित महसूस करे.

Waqf Bill JPC meeting kalyan banerjee Public representatives should not harm dignity democracy tmc bjp congress om birla | Waqf Bill JPC meeting: लोकतंत्र की गरिमा को ठेस न पहुंचाएं जनप्रतिनिधि 

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Highlightsनिराकरण किया जा सके और संसद में एक ऐसा वक्फ बिल पेश हो जो सर्वमान्य हो.वक्फ विधेयक एक समुदाय विशेष की भावना से भी जुड़ा हुआ है. संयुक्त संसदीय समिति की भूमिका अत्यंत संवेदनशील हो जाती है.

Waqf Bill JPC meeting: वक्फ विधेयक पर गठित संयुक्त संसदीय समिति की बैठक में मंगलवार को संसदीय मर्यादाओं तथा लोकतंत्र की गरिमा को तार-तार करने वाला दुर्भाग्यजनक दृश्य दिखा. वक्फ बिल का विपक्ष जोरदार ढंग से विरोध कर रहा है. विपक्ष के इसी प्रतिरोध के कारण इस बिल को विचार के लिए संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजना पड़ा. उद्देश्य साफ है कि वक्फ विधेयक पर उपजे तमाम संदेहों को दूर किया जा सके, उसमें अगर कहीं कोई त्रुटि या कमी रह गई हो तो उसका निराकरण किया जा सके और संसद में एक ऐसा वक्फ बिल पेश हो जो सर्वमान्य हो.

वक्फ विधेयक एक समुदाय विशेष की भावना से भी जुड़ा हुआ है. इसीलिए संयुक्त संसदीय समिति में शामिल पक्ष-विपक्ष के सांसद ऐसा रास्ता तलाश कर रहे हैं जिससे किसी की भावना आहत न हो और न ही कोई समुदाय खुद को उपेक्षित महसूस करे. इस लिहाज से संयुक्त संसदीय समिति की भूमिका अत्यंत संवेदनशील हो जाती है.

उसके सदस्यों की भी यह जिम्मेदारी हो जाती है कि वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित में सोचें और वक्फ बिल को सही स्वरूप देने का प्रयास करें. अगर संयुक्त संसदीय समिति जैसे मंचों पर दलगत राजनीति, निजी विचारधारा तथा अपनी पार्टी के हितों को संसद सदस्य तरजीह देने लगेंगे तो समिति का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा.

संसदीय एवं लोकतांत्रिक गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले कार्य होंगे. मंगलवार को समिति की बैठक में दो सदस्यों के बीच जिस तरह शाब्दिक झड़प ने हिंसक रूप ले लिया, उससे आम आदमी की नजर में संसद सदस्यों की छवि को गहरा आघात पहुंचा है. तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी तथा कोलकाता उच्च न्यायालय के पूर्व जज एवं भाजपा सांसद अभिजीत गांगुली के बीच शाब्दिक बहस ने विकृत रूप ले लिया. मामला इतना आगे बढ़ा कि कल्याण बनर्जी ने कांच की बोतल टेबल पर पटक कर फोड़ दी और उसे समिति के सदस्य जगदंबिका पाल की ओर फेंक दिया.

पानी की बोतल तोड़कर बनर्जी ने खुद को घायल भी करवा लिया. सवाल यह नहीं है कि संसदीय समिति की बैठक में दो सदस्यों के बीच बहस इतनी उग्र क्यों हो गई, सवाल यह है कि क्या सांसद के रूप में बनर्जी और गांगुली संसदीय मूल्यों तथा जनप्रतिनिधि की गरिमा के अनुरूप आचरण कर रहे थे? आम आदमी के मन में तो यह धारणा पनपेगी कि लोकतंत्र के उच्च तथा पवित्र मंचों पर भी जनप्रतिनिधियों का व्यक्तिगत आचरण सारी मर्यादाओं को तोड़ देता है. बनर्जी इसके पहले भी विवादों में रह चुके हैं. वह अपनी टिप्पणियों से विवाद पैदा करने के लिए चर्चित रहे हैं.

यही नहीं प्रधानमंत्री की मिमिक्री करके भी उन्होंने संसदीय मूल्यों की पवित्रता का मखौल उड़ाया है. वक्फ संशोधन बिल में प्रस्तावित प्रावधानों की कानूनी जटिलताओं को लेकर भी विपक्ष हमलावर रहा है. ऐसे में उन्हें दूर करना भी संयुक्त संसदीय समिति का एक लक्ष्य है. गांगुली तथा बनर्जी दोनों ही कानून के गहरे जानकार हैं.

बनर्जी लंबे समय तक वकालत करते रहे हैं और गांगुली तो हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रह चुके हैं. दोनों की राजनीतिक विचारधारा एक-दूसरे के एकदम विपरीत है लेकिन वक्फ बिल को राजनीतिक आईने से देखना राष्ट्रहित में नहीं होगा. दोनों सांसद अपने-अपने कानूनी ज्ञान का उपयोग बिल को बेहतर बनाने के लिए सुझाव देने में कर सकते थे लेकिन दोनों की राजनीतिक निष्ठा राष्ट्रीय हितों पर हावी हो गई.

बैठक में दोनों सांसदों के बीच उनकी परस्पर विरोधी राजनीतिक मान्यताओं ने इतनी कटुता पैदा की कि वे शालीनता की सीमा को लांघ गए. यहां सबसे ज्यादा दोष बनर्जी का है. क्या वे बहस को ज्यादा बेहतर तथा रचनात्मक नहीं बना सकते थे. अगर गांगुली की किसी बात पर उन्हें आपत्ति थी तो उसका जवाब तर्कों से दिया जा सकता था, शब्दों की मर्यादा को तोड़कर नहीं.

संसदीय समितियां संसद का ही लघु रूप होती हैं और वे भी लोकतंत्र के सबसे पवित्र मूल्यों तथा सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करती हैं. इन समितियों का बुनियादी उद्देश्य ही लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत बनाने में योगदान देना होता है. मंगलवार को संयुक्त संसदीय समिति की बैठक में बनर्जी और गांगुली को किसी भी तरह की अशोभनीय बहस में उलझने के पूर्व जनप्रतिनिधि के रूप में अपने कर्तव्यों एवं लोकतंत्र की पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए था. उनके आचरण का किसी भी नजरिये से समर्थन नहीं किया जा सकता.  

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