विश्वनाथ सचदेव का नजरियाः कांग्रेस को असमंजस की स्थिति से उबरना होगा 

By विश्वनाथ सचदेव | Published: August 20, 2019 10:04 AM2019-08-20T10:04:31+5:302019-08-20T10:04:31+5:30

इस पराजय से कहीं अधिक गंभीर यह स्थिति है कि 134 साल पुरानी पार्टी अपना नया अध्यक्ष नहीं चुन पाई. अंतत: अंतरिम अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी को चुना गया.

Viswanath Sachdev's view: Congress will have to overcome confusion | विश्वनाथ सचदेव का नजरियाः कांग्रेस को असमंजस की स्थिति से उबरना होगा 

विश्वनाथ सचदेव का नजरियाः कांग्रेस को असमंजस की स्थिति से उबरना होगा 

शायद यह कांग्रेस के इतिहास में पहली बार हुआ होगा कि कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की बैठक सबेरे से आधी रात के बाद तक चलती रही हो, और परिणाम के नाम पर ढाक के तीन पात वाली बात ही सिद्ध हो. राहुल गांधी का पार्टी के अध्यक्ष-पद से हटने के निर्णय पर अड़े रहना चुनाव में पराजय के दायित्व को स्वीकार करने की जनतांत्रिक परंपरा के पालन का उदाहरण कहा जा सकता है. पिछले आम-चुनाव में कांग्रेस भले ही पहले की तुलना में कुछ अधिक सीटें जीतने में सफल हुई हो, और भले ही इससे पूर्व छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में भी सफल हुई हो, पर यह निश्चित रूप से कांग्रेस की भारी पराजय थी और पार्टी के अध्यक्ष को ऐसी पराजय का दायित्व स्वीकार करना ही चाहिए था. पर इस पराजय से कहीं अधिक गंभीर यह स्थिति है कि 134 साल पुरानी पार्टी अपना नया अध्यक्ष नहीं चुन पाई. अंतत: अंतरिम अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी को चुना गया.

सवाल सोनिया गांधी के इस पद के योग्य होने, न होने का नहीं है. और कांग्रेस के विरोधियों का इस नियुक्ति को नाटक  कहना भी स्थिति के गलत आकलन का उदाहरण माना जा सकता है. लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाने की कांग्रेस की यह विवशता पार्टी की कमजोरी के साथ-साथ एक मजबूत विपक्ष की जनतांत्रिक आवश्यकता के पूरा न होने का भी उदाहरण ही है. कांग्रेस को आज जिस तरह पराजय का सामना करना पड़ रहा है, और जिस तरह कांग्रेस को डूबता जहाज समझकर चूहे  भाग रहे हैं, वह कांग्रेस पार्टी के लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए. शर्मनाक है यह स्थिति. वैसे, जिस तरह सत्तारूढ़ दल भाजपा चूहों को शरण देने की व्यग्रता दिखा रही है, वह भी भाजपा के लिए शर्मनाक स्थिति ही है. फिलहाल यह भाजपा का संकट नहीं है. पर कांग्रेस सचमुच संकट में है और इसी तरह यह भी सच है कि भारतीय जनतंत्न के स्वास्थ्य की दृष्टि से भी कांग्रेस की यह स्थिति चिंताजनक है.

स्वतंत्नता-प्राप्ति से लेकर कुछ अर्सा पहले तक देश की राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व रहा है. सच यह भी है कि इस दौरान कांग्रेस पार्टी के भीतर नेहरू-गांधी परिवार की ही तूती बोलती रही है. जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के कांग्रेसी शासन में देश का विकास नहीं हुआ, यह कहना तो सच्चाई से आंख चुराना ही होगा, पर यह सच है कि कांग्रेस इस परिवार के साये में एक अप्राकृतिक सुरक्षा के भाव में जीती रही. इसी का परिणाम है कि आज जब कांग्रेस को एक गतिशील नेतृत्व की जरूरत है तो उसे अखिल भारतीय छवि और स्वीकार्यता वाला कोई चेहरा नहीं मिल रहा. कांग्रेस को लग रहा है कि पार्टी को एक बनाए रखने की सामथ्र्य नेहरू-गांधी परिवार में ही है. विकल्पहीनता की यह स्थिति अच्छी नहीं है.

Web Title: Viswanath Sachdev's view: Congress will have to overcome confusion

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