विश्वनाथ सचदेव का नजरियाः सिर्फ जीत के लिए दागियों को उम्मीदवार बनाना खतरनाक

By विश्वनाथ सचदेव | Published: April 25, 2019 09:32 AM2019-04-25T09:32:21+5:302019-04-25T09:32:21+5:30

इस सवाल की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए कि आखिर राजनीतिक दलों की क्या मजबूरी होती है कि वे दागी व्यक्तियों को अपना उम्मीदवार बनाएं ही?

Vishwanath Sachdev's view: dangerous to make candidate with criminal background | विश्वनाथ सचदेव का नजरियाः सिर्फ जीत के लिए दागियों को उम्मीदवार बनाना खतरनाक

प्रतीकात्मक चित्र

Highlightsराजनेता कई बार धार्मिक या जातीय या क्षेत्नीय भावनाएं उभारकर जनता के निर्णय को प्रभावित करने में सफल हो जाते हैं. आखिर राजनीतिक दलों की क्या मजबूरी होती है कि वे दागी व्यक्तियों को अपना उम्मीदवार बनाएं ही? 

यह माना जाता है कि जनतंत्न में जनता की राय और जनता का निर्णय सर्वोपरि होता है. इसी मान्यता के चलते जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार को वैधता प्राप्त होती है, और जनता की सर्वोच्चता की इसी मान्यता की दुहाई देकर अक्सर हमारे राजनेता न्यायालय के बरक्स ‘जनतालय’ को खड़ा करके ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ हो जाने की बात कहा करते हैं. पर राजनेता कई बार धार्मिक या जातीय या क्षेत्नीय भावनाएं उभारकर जनता के निर्णय को प्रभावित करने में सफल हो जाते हैं. यही नहीं, कई बार धन-बल या बाहु-बल को भी जनता के निर्णय को प्रभावित करते देखा गया है. कभी राष्ट्रवाद की दुहाई देकर जनता को बरगलाने की कोशिश की जाती है और कभी चुनाव-जिताऊ व्यक्तित्व या कारण राजनीतिक दलों के निर्णयों का आधार बन जाते हैं. जब-जब ऐसा होता है, गलत व्यक्ति जनता का समर्थन पाकर विधानसभाओं और संसद में पहुंचने में सफल हो जाते हैं.

ऐसे व्यक्तियों को उम्मीदवार बनाने के पीछे अक्सर राजनीतिक दल और स्वयं उम्मीदवार यह तर्क देते हैं कि जबतक आरोप प्रमाणित नहीं हो जाते, किसी भी व्यक्ति को अपराधी नहीं माना जा सकता. न्याय का यह सिद्धांत गलत नहीं है. आरोप प्रमाणित होने पर ही सजा मिलनी चाहिए- और किसी को अपराधी कहना भी एक तरह की सजा ही है. लेकिन इस बात में भी कुछ सच्चाई तो है ही कि बिना आग के धुआं नहीं होता. राजनीतिक विरोध के चलते निराधार आरोप भी लगाए जा सकते हैं, पर सार्वजनिक जीवन में आने वालों को यह खतरा उठाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए. लेकिन, इस सवाल की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए कि आखिर राजनीतिक दलों की क्या मजबूरी होती है कि वे दागी व्यक्तियों को अपना उम्मीदवार बनाएं ही? 

इस चुनाव में साध्वी प्रज्ञा को भाजपा द्वारा अपना उम्मीदवार बनाए जाने के संदर्भ में यह सवाल जोर-शोर से उठा है. साध्वी प्रज्ञा आतंकवाद की आरोपी हैं और फिलहाल खराब स्वास्थ्य के आधार पर वे जमानत पर जेल से बाहर हैं. अभी उन्हें आरोप-मुक्त नहीं किया गया है. ऐसे में उन्हें भाजपा द्वारा अपना उम्मीदवार बनाना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि सत्तारूढ़ पार्टी के लिए कानूनी औचित्य कोई माने नहीं रखता- उसके लिए महत्वपूर्ण  सिर्फ जीत की संभावना है.

ज्ञातव्य है कि साध्वी प्रज्ञा पर एक आरोप यह भी है कि सन 2008 हुए मालेगांव-कांड में उनकी बाइक का इस्तेमाल किया गया था. उन पर महाराष्ट्र आंतकवाद-विरोधी दस्ते ने षड्यंत्न रचने संबंधी चार्जशीट दाखिल की थी. ज्ञातव्य यह भी है कि जब केंद्र में सरकार बदली तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अपना रु ख बदल लिया था और तब मामले की विशेष अभियोक्ता रोहिणी सालियन ने आरोप लगाया था कि उन पर दबाव डाला जा रहा है कि वे आरोपी के बारे में नरम रुख अपनाएं! इस बारे में आगे क्या हुआ, यह देश की जनता को नहीं पता. पता लगा सकने वाले लोगों ने इस दिशा में आगे कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं समझी और फिर, अंग्रेजी कहावत के अनुसार, मामले के इस पहलू को कारपेट के नीचे डाल दिया गया. ज्ञातव्य है कि सालियन द्वारा नरम रुख अपनाने के लिए दबाव के आरोप के कुछ अर्सा बाद एनआईए ने कह दिया था कि साध्वी प्रज्ञा पर लगे आरोपों के प्रमाण इतने पुख्ता नहीं हैं कि मामला आगे चलाया जाए! लेकिन मुंबई की विशेष अदालत के अनुसार मामला चलाने लायक उचित व पर्याप्त प्रमाण थे!  सवाल उठता है कि इस तरह की बातें राजनीतिक दलों के व्यवहार को प्रभावित क्यों नहीं करतीं? क्यों उन्हें लगता है कि दागी व्यक्तित्व और गंभीर आरोपों के बावजूद ऐसे व्यक्तियों को उम्मीदवार बनाया जाना जरूरी है? 

बहरहाल, साध्वी प्रज्ञा को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बना दिया है. हार-जीत का फैसला तो मतदाता करेगा, लेकिन यह एक उदाहरण हमारे राजनीतिक चरित्र को संदेह के घेरे में तो लाता ही है. यही नहीं, नामांकन के बाद साध्वी प्रज्ञा ने जिस तरह के आरोप दिवंगत पुलिस अधिकारी करकरे तथा अन्यों पर लगाए हैं, वे भी आपत्तिजनक हैं और भाजपा जिस तरह से साध्वी का बचाव कर रही है, उसे भी सही नहीं कहा जा सकता. 

इस समूचे प्रकरण को ऐसे उदाहरण के रूप में लिया जाना चाहिए जो हमारी समूची राजनीति के चरित्न को संदेह के घेरे में लाता है. सवाल सिर्फ एक आरोपी को टिकट देने का नहीं है, सवाल राजनीतिक स्वार्थो की सिद्धि के लिए गलत कदम उठाने या उन्हें समर्थन देने के औचित्य का है. चुनाव के समय इस तरह की गलत सोच ज्यादा सामने आती है, इसलिए यह ज्यादा जरूरी हो जाता है कि राजनेताओं और राजनीतिक दलों की रीति-नीति के औचित्य पर ‘जनतालय’ में भी बहस हो. जनता सोचे कि दागी राजनेताओं और सत्ता के भूखे राजनीतिक दलों की गलत करनी का समर्थन करना उसके लिए जरूरी क्यों हो? और यह भी सोचा जाना जरूरी है कि चुनाव जीत जाने मात्न से ही कोई गलत व्यक्ति सही कैसे हो सकता है. दूध का दूध और पानी का पानी तो तभी होगा जब राजनीति शुचिता के आधार पर होगी. सवाल एक साध्वी का नहीं, देश के समूचे राजनीतिक चरित्न का है. राजनेताओं और राजनीतिक दलों को अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करनी है.

Web Title: Vishwanath Sachdev's view: dangerous to make candidate with criminal background