विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: रामराज्य लाने की भी होनी चाहिए कोशिश
By विश्वनाथ सचदेव | Published: July 25, 2020 01:21 PM2020-07-25T13:21:21+5:302020-07-25T13:21:21+5:30
रामराज्य जिसमें हर नागरिक को इज्जत से सुरक्षित जीवन जीने का अधिकार और अवसर मिलेगा. सच पूछा जाए तो यह सही अवसर है रामराज्य के बारे में बात करने का.
देश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद इस बात में कोई संशय नहीं रह गया था कि अब अयोध्या में भव्य राम-मंदिर बनने में कोई अड़चन नहीं आएगी. अब मंदिर के शिलान्यास की तारीख भी घोषित हो गई है.
अब तक प्रधानमंत्री-कार्यालय से भले ही औपचारिक घोषणा न हुई हो, पर यह लगभग तय है कि 5 अगस्त को प्रधानमंत्री मंदिर का शिलान्यास करेंगे और यह भी लगभग तय है कि 2024 में अगला आम-चुनाव होने से पहले अयोध्या में एक भव्य राम-मंदिर तैयार हो जाएगा.
निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी इसे एक उपलब्धि के रूप में दिखाएगी और नि:स्संदेह देश मंदिर के निर्माण पर प्रफुल्लित होगा. मंदिर को और भव्य बनाने तथा अयोध्या को एक धार्मिक पर्यटन-केंद्र के रूप में विकसित करने के निर्णय का भी देश की आम जनता स्वागत ही करेगी.
यह सही है कि दुनिया के बाकी देशों की तरह ही आज हमारा भारत भी कोरोना महामारी के चलते एक अभूतपूर्व संकट से जूझ रहा है. ऐसे में शरद पवार, जैसा कोई नेता यदि इस आशय का बयान देता है कि कोरोना संकट से निपटना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए तो इसे किसी गलत अर्थ में लेने की आवश्यकता नहीं है.
प्राथमिकता की बात न करके शरद पवार कह सकते थे कि राम-मंदिर के निर्माण का उद्देश्य तभी पूरा होगा, जब देश में रामराज्य आएगा. रामराज्य जिसमें हर नागरिक को इज्जत से सुरक्षित जीवन जीने का अधिकार और अवसर मिलेगा.
सच पूछा जाए तो यह सही अवसर है रामराज्य के बारे में बात करने का.
रामराज्य को लेकर अक्सर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हवाला दिया जाता है. राष्ट्रपिता के विचारों से अक्सर असहमति जताने वाले भी रामराज्य के संदर्भ में यह कहना नहीं भूलते कि रामराज्य तो बापू का भी सपना था. गलत नहीं कहते हैं वे. राम बापू के भी आराध्य थे.
राम का नाम लेकर देह त्यागने की बात वे कहा करते थे और ऐसा हुआ भी. बापू कुछ अरसा और जीवित रहते तो निश्चित रूप से वे स्वतंत्र भारत में रामराज्य की अपनी कल्पना को ठोस आकार देते. वैसे इस संदर्भ में बापू ने कई बार इस बात को रेखांकित किया था कि उनका रामराज्य एक आदर्श शासन-व्यवस्था है जिसमें हर मनुष्य के लिए न्यायपूर्ण अवसर है, उचित का सम्मान है, क्षमता के अनुरूप काम करने का अवसर है और आवश्यकता के अनुसार आश्वासन भी.
इसी को आदर्श जनतांत्रिक व्यवस्था कहते हैं. इस व्यवस्था में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता. धर्म, जाति, वर्ण-वर्ग के आधार पर किसी के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं बरता जाता. न समाज में भेद-भाव पलता है, न व्यवस्था ऐसा होने देती है.
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में इस रामराज्य को बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है. रामराज्य में अर्थात न्यायपूर्ण व्यवस्था में, किसी को किसी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए. यह शासक का कर्तव्य है कि वह ऐसी व्यवस्था करने में सक्षम हो-सब नर करें परस्पर प्रीति, चलहिं सर्वधर्म निरत श्रुति नीति.
मानस के रचनाकार ने यह कहकर कि ‘दैहिक, दैविक भौतिक तापा, रामराज नहीं काहुहिं व्यापा’ जैसे शासक को स्पष्ट निर्देश दिया है कि उसे राज्य के हर नागरिक के प्रति किस तरह का भाव और विचार रखना चाहिए.
राम-राज्य की और भी कुछ पहचान है जो मानस में बताई गई हैं- अल्प मृत्यु नहिं कवनिहुं पीरा, अर्थात वहां किसी की असमय मृत्यु नहीं होती; नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना, नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना अर्थात राम-राज में न कोई दीन-दुखी है, न अज्ञानी और न ही अविवेकी.
यह सब वर्णन मात्र नहीं है, एक कसौटी है किसी आदर्श शासन-व्यवस्था की. आज स्वयं को इस कसौटी पर कसने की आवश्यकता है. पिछले सत्तर वर्षों में जो व्यवस्था हमने अपने लिए बनाई है, वह उन मानकों पर कितना खरा उतरती है जो किसी रामराज्य को परिभाषित करते हैं.
हाल ही में सरकार ने यह घोषणा की है कि अस्सी करोड़ लोगों को अगले कुछ माह के लिए जीवन-यापन के लिए मुफ्त अनाज दिया जाएगा. अच्छी बात है कि कोई भूखा न रहे, पर क्या यह लज्जा की बात नहीं है कि रामराज्य की दुहाई देने वाले देश में आज आधी आबादी भूखी है? यह कैसी व्यवस्था बनाई है हमने आजादी पाने के बाद के इन सत्तर-बहत्तर सालों में जहां लोग भूखे रहने, अधनंगे रहने और बीमार रहने के लिए विवश हैं.
इक्कीसवीं सदी के भारत में अस्पतालों में ऑक्सीजन के अभाव में बच्चे दम तोड़ रहे हैं, महिलाओं की अस्मत पर रोज डाके पड़ते हैं, युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं...इसीलिए कहना पड़ रहा है कि राम का भव्य मंदिर बने यह तो बहुत अच्छी बात है, पर राम ने अपने कृतित्व और व्यक्तित्व से जो आदर्श स्थापित किए थे, जिन मूल्यों और आदर्शों के लिए राम निरंतर संघर्ष करते रहे, उनके बारे में हम कब सोचेंगे? यह बात हम कब समझेंगे कि राम ने आचरण का जो उदाहरण प्रस्तुत किया था, वह अनुकरणीय है? राम आदर्शों और मूल्यों की साकार प्रतिमा हैं.
हम उस प्रतिमा की पूजा तो करना चाहते हैं, पर राम की बताई राह पर चलना नहीं चाहते. आज आवश्यकता राम के चरित्र को अपने जीवन में उतारने की है.
राम ने शासन और जीवन, दोनों में जिन मर्यादाओं का पालन किया था, उन्हें भुलाकर राम की भक्ति का दावा नहीं किया जा सकता. राम के आदर्शों-मूल्यों पर आधारित समाज और व्यवस्था ही प्रभु राम का सबसे भव्य मंदिर होगा.