विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: राजनीति में संवेदनशीलता की आवश्यकता

By विश्वनाथ सचदेव | Published: March 5, 2021 11:07 AM2021-03-05T11:07:06+5:302021-03-05T11:09:04+5:30

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैक्सीन लेने वाले दिन भले ही अस्पताल में वातावरण को हल्का बनाने के लिए नर्स से नेताओं की मोटी चमड़ी वाली बात कही हो, पर यह मोटी चमड़ी हमारी राजनीति की एक हकीकत है.

Vishwanath Sachdev's blog: The need for sensitivity in politics | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: राजनीति में संवेदनशीलता की आवश्यकता

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

जब देश का प्रधानमंत्री किसी अस्पताल पहुंचे कोरोनावायरस वैक्सीन लगवाने के लिए तो वातावरण में तनाव दिखना स्वाभाविक है. शायद इसी तनाव को हल्का करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीका लगाने के लिए काम में ली जा रही लंबी सुई को देखकर टिप्पणी की होगी.

जब नर्स वह इंजेक्शन लगाने के लिए आगे बढ़ी तो प्रधानमंत्री ने पूछा, ऐसी सुई तो शायद जानवरों के डॉक्टर काम में लेते हैं? नर्स को समझ नहीं आया वह क्या बोले. तब प्रधानमंत्री ने कुछ मुस्कराते हुए कहा था, वे सोच रहे थे शायद अस्पताल वाले जानवरों को लगाने वाली सुई इस्तेमाल करेंगे ‘‘क्योंकि राजनेताओं को भी मोटी चमड़ी वाला माना जाता है.’’

इस पर तो वातावरण का तनाव कम होना ही था. हंसते-मुस्कराते कब टीका लग गया, पता ही नहीं चला. फिर, सुना है प्रधानमंत्री आधा घंटा अस्पताल में रहे थे, यह देखने के लिए कि टीके का कोई विपरीत असर तो नहीं होता है. ऐसा कुछ नहीं हुआ. उम्मीद भी यही थी.

इस आधा घंटे में प्रधानमंत्री ने क्या बातें कीं यह नहीं पता, पर राजनेताओं की मोटी चमड़ी वाली उनकी बात अब भी हवा में गूंज रही है. सच है, राजनेताओं की मोटी चमड़ी के उदाहरण खोजने की जरूरत नहीं पड़ती, हर तरफ बिखरे पड़े हैं ऐसे उदाहरण.

इस मोटी चमड़ी के कई मतलब होते हैं, जैसे यह बात कि राजनेताओं के बारे में भले ही कुछ भी कहा जाता रहे, दिखाते वे यही हैं कि उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता. वैसे, शायद फर्क पड़ता भी नहीं है, अन्यथा हमारे नेता अपनी वाणी और व्यवहार, दोनों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता और महत्ता को अवश्य समझते. पर आए दिन दिखने वाले उदाहरणों को देख कर यह सहज ही कहा जा सकता है कि ऐसी कोई चिंता हमारे राजनेताओं को नहीं हैं.

वे यह मानकर चलते हैं कि या तो देश की जनता कुछ समझती नहीं या फिर उसके समझने से कोई अंतर नहीं पड़ता. हम भले ही यह कहते रहें कि ‘यह पब्लिक है, सब जानती है’ और समय आने पर सबक भी सिखा सकती है, पर हमारे राजनेताओं को तो, निश्चित ही यह लगता है कि जनता कुछ भी कहती-करती रहे, उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा. मोटी चमड़ी इसी को कहते हैं.

नेताओं के संबंध में आप कुछ भी कहते रहें, वे यह जानते हैं कि उनकी राजनीति चलती रहेगी. इसलिए वे भी कुछ भी करते-कहते रहते हैं. वे यह भी मानते हैं कि उनका कुछ बिगड़ेगा नहीं. उनकी राजनीति की दुकान चलती रहेगी. यही कारण है कि न तो हमारे राजनेता भ्रष्टाचार के आरोपों से डरते हैं और न ही उन्हें सजायाफ्ता होने का ही कोई डर होता है.

हमने भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं को उंगलियों से जीत का निशान बनाकर जेल जाते हुए देखा है और सजा काटकर आने के बाद जिंदाबाद के नारों के साथ जेल के दरवाजे से बाहर निकलते भी देखा है. यह सही है कि सारे नेता ऐसे नहीं होते, पर जो ऐसे होते हैं वे एक मछली की तरह सारे जल को गंदा करने के लिए काफी हैं.

मजे की बात तो यह है कि मोटी चमड़ी वाले राजनेता हर दल में मिल जाते हैं. यह कहना ज्यादा सही होगा कि जो राजनेता ज्यादा मोटी चमड़ी वाला होता है, वह राजनीति के तराजू पर ज्यादा भारी भी माना जाता है.

गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर होते हैं राजनेता. समय और अपने स्वार्थ की मांग के अनुसार वे कभी भी अपनी टोपी का रंग बदल सकते हैं बदल लेते हैं. हर चुनाव के पहले, या वैसे भी, हम इन राजनेताओं को टोपियां बदलते देखते हैं. कल तक वे जिस रंग की टोपी का मजाक उड़ाते रहे थे, आज उसी रंग की टोपी पहन कर, वे ताल ठोंक कर मैदान में उतर आते हैं.

नीति, सिद्धांत, मूल्य, आदर्श कुछ भी आड़े नहीं आता. न उन्हें कल तक के घोषित विरोधी को गले लगाने में कोई संकोच होता है और न ही उन नारों को अपनाने में जिनकी वे कल तक भर्त्सना कर रहे थे. नेताओं के दल-बदल से अब किसी को कोई आश्चर्य नहीं होता और न ही राजनेताओं को कहीं ऐसा लगता है कि उनके समर्थक क्या कहेंगे.

ये समर्थक भले ही कल तक के विरोधियों के साथ जुड़ने में संकोच करें, भले ही उन्हें लगे कि वे क्या मुंह दिखाएंगे, पर दल-बदलू राजनेताओं को मुंह दिखाने में शर्म नहीं आती. बीती को बिसार कर आगे की सुधि लेना एक लाभकारी नीति हो सकती है, पर कम से कम राजनेताओं के संदर्भ में ऐसा नहीं होना चाहिए.

आखिर हम उनके हाथों में अपना भविष्य सौंपते हैं. उन पर भरोसा करते हैं हम. जनता के इस भरोसे का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए. राजनेताओं का मोटी चमड़ी का होना उनके लिए भले ही राजनीतिक सुविधा हो, पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी संवेदनशीलता ही अंतत: उन्हें सही नेता बनाती है. संवेदनहीन राजनीति के लिए जनतांत्रिक व्यवस्था में कोई स्थान नहीं होना चाहिए.

उस दिन प्रधानमंत्री ने भले ही अस्पताल में वातावरण को हल्का बनाने के लिए मोटी चमड़ी वाली बात कही हो, पर यह मोटी चमड़ी हमारी राजनीति की एक हकीकत है. बदलनी चाहिए यह हककीत. मैं दुहराना चाहता हूं कि सब नेता संवेदनहीन नहीं होते, पर ऐसे संवेदनशील नेताओं का ही यह दायित्व बनता है कि वे अपनी कथनी-करनी से राजनीति में संवेदनशीलता की आवश्यकता को रेखांकित करें.

Web Title: Vishwanath Sachdev's blog: The need for sensitivity in politics

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