विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: कानून बनाने वाले ही कानून तोड़ें तो क्या हो?

By विश्वनाथ सचदेव | Published: July 4, 2019 01:06 PM2019-07-04T13:06:16+5:302019-07-04T13:06:16+5:30

सवाल उठता है कि कानून के शासन को भीड़तंत्न में बदलने के ऐसे उदाहरण बढ़ते क्यों जा रहे हैं. पर इससे कहीं अधिक गंभीर सवाल यह है कि एक सभ्य समाज में, कानून के शासन में विश्वास करने वाले एक जनतांत्रिक देश में एक भी ऐसा उदाहरण क्यों सामने आए. भीड़ के पास विवेक नहीं होता यह सच है, लेकिन भीड़ कानून को अपने हाथ में ले ले तो शासन को क्या करना चाहिए.

Vishwanath Sachdev blog: What if lawmakers break the law | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: कानून बनाने वाले ही कानून तोड़ें तो क्या हो?

विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: कानून बनाने वाले ही कानून तोड़ें तो क्या हो?

आकाश विजयवर्गीय मध्य प्रदेश के एक युवा भाजपा नेता का नाम है. निर्वाचित विधायक है आकाश. उसकी एक पहचान यह भी है कि वह भाजपा के एक राष्ट्रीय स्तर के नेता का पुत्न है. हाल ही में इंदौर में एक सरकारी कर्मचारी को क्रिकेट के बल्ले से मारने के आरोप में आकाश को जेल में बंद किया गया था. 

अब आकाश जमानत पर रिहा कर दिया गया है. और अब वह व्यक्ति पुलिस से सुरक्षा की मांग कर रहा है जिसे आकाश ने पीटा था. आकाश का कहना है कि वह अधिकारी एक अनधिकृत और रहने के लिए खतरनाक हो चुके मकान से रहवासियों को जबरदस्ती निकाल रहा था इसलिए आकाश को उनकी मदद के लिए दनादन डंडा चलाना पड़ा. अपनी गिरफ्तारी से पहले इस युवा विधायक ने बड़ी शान से कहा था कि उसकी नीति है- पहले आवेदन फिर निवेदन फिर दनादन. 

इस पराक्रम के लिए आरोपी विधायक की पार्टी ने उनकी जय-जयकार की है. विधायक का कहना है कि उसने जो कुछ किया, वह असहायों की मदद के लिए किया था और नगर निगम के अधिकारी अत्याचार कर रहे थे. हो सकता है विधायकजी की बात सही हो लेकिन सवाल यह है कि क्या किसी विधायक को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार है?

दुर्भाग्य से पिछले कुछ दिनों में ही कानून हाथ में लेने वाले अराजकता के कई उदाहरण सामने आए हैं. झारखंड के एक गांव में एक मुस्लिम युवक को चोरी के आरोप में भीड़ ने इतना पीटा कि अंतत: उसकी मृत्यु हो गई. उससे जबरदस्ती जय श्रीराम और जय हनुमान के नारे भी लगवाए गए थे. इसी तरह मुंबई में एक टैक्सी चालक से भी भीड़ ने श्रीराम की जय बुलवाया और मार-मार के उसे बेहोश कर दिया. 

सवाल उठता है कि कानून के शासन को भीड़तंत्न में बदलने के ऐसे उदाहरण बढ़ते क्यों जा रहे हैं. पर इससे कहीं अधिक गंभीर सवाल यह है कि एक सभ्य समाज में, कानून के शासन में विश्वास करने वाले एक जनतांत्रिक देश में एक भी ऐसा उदाहरण क्यों सामने आए. भीड़ के पास विवेक नहीं होता यह सच है, लेकिन भीड़ कानून को अपने हाथ में ले ले तो शासन को क्या करना चाहिए. शासन को चाहिए कि भीड़ के नाम पर गुंडागर्दी करने वालों को शीघ्रातिशीघ्र सजा दिलवाए ताकि कानून अपने हाथों में लेने वालों को सबक मिल सके.

कुछ देर से ही सही, पर प्रधानमंत्नी ने संसद में झारखंड में मुस्लिम युवा पर हुए अत्याचार को संज्ञान में लेते हुए दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की बात कही है. उन्होंने यह भी कहा कि देश में कहीं भी इस तरह की अराजकता को स्वीकार नहीं किया जाएगा. लेकिन यह भाषा तो हम अरसे से सुनते आ रहे हैं. जब भी ऐसी कोई घटना घटती है तो शासक वर्ग चाहे वह किसी भी पार्टी का हो इसी भाषा में बोलता है फिर बात पुरानी पड़ जाती है. शासक मान लेते हैं कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है.

पहली बार जब भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनी थी तो नए प्रधानमंत्नी ने संसद की देहरी पर माथा टेक कर कानून के शासन में विश्वास प्रकट किया था. इस बार प्रधानमंत्नीजी ने अपने सांसदों के समक्ष दिए गए पहले भाषण के बाद देश के संविधान के आगे माथा टेक कर देश की जनता को विश्वास दिलाया था कि किसी को भी संविधान की मर्यादाओं का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं दिया जाएगा. उन्होंने सबका साथ, सबका विकास के साथ-साथ इस बार सबका विश्वास प्राप्त करने की बात भी कही थी. 

सबका विश्वास तभी प्राप्त किया जा सकता है जब देश के हर नागरिक को यह आश्वासन मिले कि उसके साथ न्याय होगा. न्याय का मतलब है एक ऐसी व्यवस्था जिसमें अपराध के लिए दंड का प्रावधान ही नहीं हो, अपराधी को दंड मिले भी. और यह दंड संविधान व्यवस्था के अंतर्गत हो, भीड़ की अराजकता का परिणाम नहीं. सवाल व्यवस्था बनाए रखने का ही नहीं, जनतंत्न को बचाने का भी है.
यह विडंबना ही है कि कानून की बात तो होती है पर अपराधी कानून से डरता नहीं दिखता. ऐसा कोई डर होता तो शायद इंदौर का आरोपी विधायक जमानत पर छूटने के बाद यह न कहता कि ‘उम्मीद है मुङो फिर से बल्ला घुमाने का अवसर नहीं मिलेगा’. 

जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों को इतना तो समझना ही चाहिए कि वे कानून का उल्लंघन करने वालों पर नजर रखने के लिए हैं, कानून का बल्ला घुमाने के लिए नहीं हैं. कानून का उल्लंघन करने वालों को पकड़ने का काम पुलिस का है और उन्हें सजा देने का काम अदालत का है. किसी भी नागरिक को चाहे वह किसी भी पद पर हो, कानून को अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है. वैसे आकाश ने यह भी कहा था कि अब वह गांधीजी द्वारा बताए रास्ते पर चलेगा. लेकिन याद रखना चाहिए कि गांधी की राह में किसी भी प्रकार की हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है. गांधी का नाम लेकर कुछ भी करने की आजादी अपने आप में एक अपराध है.

Web Title: Vishwanath Sachdev blog: What if lawmakers break the law

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