विनय प्रकाश जैन का ब्लॉग: प्रकृति से सीखें हम सहअस्तित्व का सबक
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 15, 2020 09:34 AM2020-04-15T09:34:21+5:302020-04-15T09:34:21+5:30
अब समय आ गया है कि हम इस संकट के लिए किसी पर दोषारोपण न करते हुए सहज जीवन चर्या को अपनाएं. प्रकृति से यथासंभव अल्प लें और अधिक दें.
कोरोना संक्रमण की इस महामारी की दस्तक ने दुनिया के ज्यादातर देशों को चिंताग्रस्त कर दिया है. यद्यपि यह पहली आपदा नहीं है. इससे पहले भी तमाम आपदाएं जैसे फ्लू, प्लेग, क्षय या अन्य महामारियों के रूप में दुनिया ने देखी हैं और बहुत से नागरिक इनके शिकार भी हुए हैं. कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि के कारण अकाल भी पड़ा है.
पुराणों के अनुसार जैन धर्म के प्रथम र्तीथकर आदिनाथ के काल में भी प्रजा में त्नाहि-त्नाहि मच गई थी. इसका कारण उन कल्पवृक्षों का समाप्त होना था जिनके नीचे आदमी की वांछित इच्छापूर्ति हो जाती थी. उस समय लोग अकर्मण्य थे. प्रजा ने अपने राजा से गुहार लगाई, तब भगवान आदिनाथ ने उन्हें असि, मसि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य और कला की शिक्षा देकर कर्म में संलग्न किया और काम का बंटवारा करके सामंजस्य से सुखी जीवन जीना सिखाया.
आयुर्वेद के महाज्ञाता आचार्य चरक ने चरक संहिता में कहा है कि मनुष्य जिस स्थान पर निवास करता है, उसकी बीमारी की औषधि भी उसी क्षेत्न में पैदा होने वाली वनस्पतियों में होती है.
वर्तमान में मानव बस्तियों के फैलाव ने इन वनस्पतियों को नष्ट कर दिया और उनकी जगह कांक्र ीट के जंगलों ने ले ली. अत्यधिक उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण हमारी महत्वाकांक्षाएं इतनी विस्तृत हुई हैं कि न केवल वनस्पति, बल्कि जीवन के लिए अनिवार्य सहज सुलभ सभी प्राकृतिक संसाधन विनाश के कगार पर हैं और संभवत: यही इन महामारियों के मूल में है.
अब समय आ गया है कि हम इस संकट के लिए किसी पर दोषारोपण न करते हुए सहज जीवन चर्या को अपनाएं. प्रकृति से यथासंभव अल्प लें और अधिक दें. जंगलों को हरा-भरा करें, नदियों को साफ कर जीवनदान दें. जैसा कि पढ़ने-सुनने में आ रहा है, इन दिनों प्रदूषण का स्तर कम हुआ है. इस आपदा को प्रकृति का संकेत मानकर सावधान हो जाएं. शाकाहार अपनाकर इम्यून सिस्टम को मजबूत करें. यह संकट प्रकृति के विरुद्ध किए हमारे कार्यो का दंड है.
प्रकृति से ही हमारा पोषण होता है, वही हमारी संरक्षक है. यदि हम अपनी भूलों से उसमें असंतुलन पैदा करेंगे तो उसका दंड भी हमें भुगतना ही पड़ेगा. निष्कर्षत: सहअस्तित्व और सामंजस्य से ही जीवन में खुशहाली है, इसलिए नि:स्वार्थ भावना से सभी के हित में कार्य करते हुए अपनत्व का वातावरण बनाएं. प्रकृति हमें हमेशा माफ करती आई है. आशा है इस संकट से मुक्ति की राह भी वही दिखाएगी.