विजय दर्डा का ब्लॉग: पानी के प्रति लापरवाही से उपज रही है बर्बादी

By विजय दर्डा | Published: July 29, 2019 07:23 AM2019-07-29T07:23:13+5:302019-07-29T07:23:13+5:30

भारत सरकार ने हाल ही में जल शक्ति मंत्रलय का गठन किया है. इस मंत्रलय ने घोषणा की है कि भारत के हर घर में 2024 तक नल कनेक्शन पहुंचा दिया जाएगा.  

Vijay Darda's blog: Waste is being rampant towards water | विजय दर्डा का ब्लॉग: पानी के प्रति लापरवाही से उपज रही है बर्बादी

विजय दर्डा का ब्लॉग: पानी के प्रति लापरवाही से उपज रही है बर्बादी

कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स  2018 की रिपोर्ट को नीति आयोग ने सार्वजनिक करके पूरे देश की आंखें खोल दी हैं. भविष्य की भयावह तस्वीर सामने रख दी है. अगले साल  बेंगलुरु, चेन्नई, वेल्लोर, हैदराबाद, इंदौर, रतलाम, गांधीनगर, अजमेर, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, आगरा, नई दिल्ली, गाजियाबाद, गुरुग्राम, यमुनानगर, लुधियाना, मोहाली, अमृतसर, जालंधर और पटियाला में ग्राउंड वाटर लेवल जीरो हो जाएगा. 2030 तक भारत में पानी की जितनी जरूरत होगी उसका केवल आधा हिस्सा ही उपलब्ध हो पाएगा. खेती और उद्योग प्रभावित होंगे. इसका असर हमारी अर्थव्यवस्था पर होगा  और जीडीपी में करीब 6 प्रतिशत की गिरावट आ आएगी. रिपोर्ट जितनी लंबी है, उससे ज्यादा भयावह है. 

मैं आश्चर्यचकित हूं कि इस रिपोर्ट को लेकर कहीं कोई गंभीर चिंता दिखाई नहीं दे रही है. हमारी स्थिति से विदेशी मीडिया में कुछ चिंता जरूर नजर आई है लेकिन हमारे यहां तो इस रिपोर्ट पर उपेक्षित रवैया ही दिखाई दे रहा है. न सरकार के स्तर पर चिंता दिख रही है और न ही सामाजिक स्तर पर. हम अब भी लापरवाह ही बने हुए हैं. पानी के प्रति इसी लापरवाही ने हमें बर्बादी की कगार पर पहुंचाया है. पानी को सहेजने की कहीं कोई बात ही नहीं हो रही है. 

इसमें कोई संदेह नहीं कि लगातार सूखे ने स्थिति को बदतर किया है लेकिन जो बारिश होती भी है, उसे हम सहेज कहां रहे हैं? सेंट्रल वाटर कमीशन के अनुसार भारत को अधिकतम 3 हजार बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की हर साल जरूरत होती है जबकि बारिश होती है करीब 4 हजार बिलियन क्यूबिक मीटर. समस्या यह है कि बारिश के पानी का केवल 8 प्रतिशत ही हम उपयोग कर पाते हैं. करीब-करीब सभी शहरों और गांवों में वेटलैंड, तालाब, कुएं और स्थानीय नदियां समाप्त हो चुकी हैं. तो सवाल है कि पानी टिकेगा कहां? वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की मानें तो गंगा क्षेत्र में करीब 70 से 80 प्रतिशत तालाब और झीलें समाप्त हो चुकी हैं.

देश के दूसरे हिस्सों का भी हाल करीब-करीब यही है. इन तालाबों और झीलों को समाप्त करने में आम आदमी की भूमिका सबसे ज्यादा रही है और सरकार ने आंखें मूंद रखी हैं. जंगलों का नाश किया तो मिट्टी का कटाव बढ़ा और इससे जलस्नेतों पर असर पड़ा. बड़े तालाबों की भी जलसंग्रहण क्षमता कम होती चली गई. बारिश के पानी को नहीं रोक पाने का ही नतीजा है कि भारत का करीब पचास प्रतिशत हिस्सा सूखे की चपेट में है. हमारा विदर्भ और मराठवाड़ा भी इसी में है. देश में करोड़ों लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है. चेन्नई के पास कभी बड़ा वेटलैंड था, बड़े-बड़े तालाब थे लेकिन सबकुछ समाप्त हो गया.  

भारत सरकार ने हाल ही में जल शक्ति मंत्रलय का गठन किया है. इस मंत्रलय ने घोषणा की है कि भारत के हर घर में 2024 तक नल कनेक्शन पहुंचा दिया जाएगा.  चलिए यह मान लेते हैं कि नल कनेक्शन पहुंच जाएंगे लेकिन सवाल यह है कि पानी ही नहीं होगा तो जलप्रदाय कहां से होगा? इसके अलावा हकीकत तो यह है कि  जलशक्ति मंत्रलय का बजट इस कार्य के लिए पिछले साल बजट में आवंटित राशि से भी कम है. जबकि पानी की समस्या इतनी भयावह होती जा रही है कि इससे गृहयुद्ध होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता और इससे पशु हानि तो होती ही है, जन हानि भी बहुत होगी.

भारत दुनिया में भूमिगत जल का सबसे ज्यादा दोहन करता है. चीन और अमेरिका से भी ज्यादा. वाटर रिसोर्सेज पर गठित स्टैंडिंग कमेटी की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार भूमि से जो पानी हम निकालते हैं उसका 89 प्रतिशत खेती में तथा शेष 9 प्रतिशत पीने के रूप में उपयोग होता है. 2 प्रतिशत उपयोग उद्योग करते हैं. पूरा हिसाब लगाएं तो पता चलता है कि शहरी जरूरत का 50 प्रतिशत तथा ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू उपयोग के लिए 85 प्रतिशत पानी जमीन के नीचे से ही खींचा जाता है. पिछले साल सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की एक रिपोर्ट संसद में रखी गई थी जिसमें कहा गया था कि 2007 से 2017 के दस वर्षो में भूमिगत जल स्तर में गंभीर रूप से कमी आई है. आईआईटी खड़गपुर और कनाडा की अथाबास्का यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट कहती है कि हम भारतीय हर साल 230 क्यूबिक किलोमीटर ग्राउंड वाटर का उपयोग करते हैं. पूरी दुनिया में खपत का यह करीब एक चौथाई है. 

पानी के फिर से उपयोग के मामले में भी हम फिसड्डी हैं. जो पानी घरों तक पहुंचता है, उसका करीब 80 प्रतिशत हम बेकार नालों में बहा देते हैं. इसके ठीक विपरीत इजराइल घरों में पहुंचने वाले पानी का 100 फीसदी रिसाइकिल करता है और इसमें से 94 प्रतिशत पानी को फिर घरों में उपयोग के लिए भेजता है. वाटर मैनेजमेंट के मामले में सिंगापुर भी कमाल कर रहा है.

हमें इन देशों जैसी व्यवस्था अपने यहां करनी होगी. हमें अपने स्थानीय जलस्नेतों को पुनर्जीवित करना होगा ताकि बारिश के पानी को सहेजा जा सके. रेन वाटर हाव्रेस्टिंग का सख्ती से पालन कराना होगा और शहरों में नलों का लीकेज दूर करना होगा. जल संवर्धन, संरक्षण और प्रबंधन को एक आंदोलन के रूप में परिवर्तित करना होगा तभी स्थिति में सुधार की उम्मीद की जा सकती है. यदि हम इसी तरह लापरवाह बने रहे तो आने वाला कल बहुत बुरा होगा. इसमें सरकार को भी भूमिका निभानी है और आम आदमी को भी!

Web Title: Vijay Darda's blog: Waste is being rampant towards water

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे