विजय दर्डा का ब्लॉग: डरावनी हैं आरोप और अपमान की ये हरकतें
By विजय दर्डा | Published: April 22, 2019 08:05 AM2019-04-22T08:05:26+5:302019-04-22T08:05:26+5:30
प्रधान न्यायाधीश पर जिस महिला ने आरोप लगाया है वह एक व्यक्ति को नौकरी दिलाने के लिए पैसे लेने के आरोप में जेल भी जा चुकी है. माना जा रहा है कि उसने किसी शक्ति के इशारे पर ऐसी हरकत की है. कथित घटना भी तब की बताई है जब रंजन गोगोई चीफ जस्टिस बन चुके थे.
पिछले सप्ताह दो ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनमें डराने की नीयत साफ-साफ दिख रही है. जिस तरह से देश के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को निशाना बनाया गया है, उससे साफ लगता है कि कोई है जो उन्हें भयभीत करना चाह रहा है. भयभीत तो दरअसल सभी संवैधानिक संस्थाओं को करने की कोशिशें साफ नजर आ रही हैं. विपक्ष के नेता तो पहले से ही भयभीत हैं. ब्यूरोक्रेसी भयभीत है. यहां तक कि मीडिया का एक तबका भी भय में ही जी रहा है.
प्रधान न्यायाधीश पर जिस महिला ने आरोप लगाया है वह एक व्यक्ति को नौकरी दिलाने के लिए पैसे लेने के आरोप में जेल भी जा चुकी है. माना जा रहा है कि उसने किसी शक्ति के इशारे पर ऐसी हरकत की है. कथित घटना भी तब की बताई है जब रंजन गोगोई चीफ जस्टिस बन चुके थे. उसके आरोपों को लेकर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में विशेष सुनवाई भी हुई. सुनवाई के दौरान रंजन गोगोई ने आरोप को बेबुनियाद तो बताया ही, साफ तौर पर यह भी कहा कि ‘न्यायपालिका खतरे में है. अगले हफ्ते कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई होनी है, इसीलिए जानबूझकर ऐसे आरोप लगाए गए. कुछ लोग चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के ऑफिस को निष्क्रिय करना चाहते हैं. लोग पैसे के मामले में उंगली नहीं उठा सकते थे, इसलिए इस तरह का आरोप लगाया है. इसके पीछे कोई एक शख्स नहीं है, बल्कि कई लोगों का हाथ है.’
न्यायपालिका के खतरे में होने और सीजेआई कार्यालय को निष्क्रिय करने की कोशिशों का जो जिक्र न्यायमूर्ति गोगोई ने किया है वह बेहद चिंताजनक है. लोकतंत्र के लिए न्यायालय का स्वतंत्र रहना बहुत जरूरी है. हाल के दिनों में देश महसूस कर रहा है कि किस तरह उन सभी संवैधानिक शक्तियों को कमजोर करने की कोशिशें हो रही हैं जो लोकतंत्र की बुनियादी शक्ति हैं. यदि षड्यंत्रकारी इसमें सफल हो गए तो वह देश के लिए बहुत बुरा होगा.
अब जरा दूसरी घटना पर गौर करें. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने मुंबई हमले में शहीद हुए जांबाज पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे के लिए जिस भाषा का इस्तेमाल किया है, उसका जिक्र करते हुए भी मुङो अत्यंत पीड़ा हो रही है और मन विचलित है. साध्वी ने कहा- ‘मैंने हेमंत करकरे को कहा था कि तेरा सर्वनाश होगा, ठीक सवा महीने में सूतक लगा और उसे आतंकवादियों ने मार डाला.’ मुङो तो हैरत हो रही है कि इस तरह का अपमानजनक बयान देने की बात किसी साध्वी को कैसे सूझ सकती है? संतों के विचार ऐसे तो नहीं होते! इसलिए मेरा मानना है कि साध्वी कहलाने वाली प्रज्ञा ठाकुर ने संत परंपरा का भी अपमान किया है.
मालेगांव बम ब्लास्ट में साध्वी मुख्य आरोपी हैं क्योंकि जिस मोटरसाइकिल में बम लगा था, वह प्रज्ञा के नाम था. तब हेमंत करकरे मुंबई एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के चीफ हुआ करते थे. उन्हें जिम्मेदारी दी गई थी कि वे प्रज्ञा से पूछताछ करें. उन्होंने पूछताछ की थी. उसके बाद 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर आतंकी हमला हुआ और आतंकवादियों से लोहा लेते हुए करकरे शहीद हो गए. एक बहादुर और काबिल अफसर के शहीद होने पर सारा देश रोया. 2009 में उन्हें मरणोपरांत शांतिकाल में दिए जाने वाले सबसे बड़े सम्मान अशोक चक्र से नवाजा गया था. ऐसे बहादुर शहीद के खिलाफ जब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने अपमानजनक टिप्पणी की तो सारे देश का खून खौलना स्वाभाविक था. कुछ घंटों के भीतर ही प्रज्ञा ने अपना बयान तो वापस ले लिया लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि उन्होंने अपनी टिप्पणी के लिए माफी नहीं मांगी है. वैसे भी किसी का अपमान करके माफी मांग लेने से अपराध कम नहीं हो जाता है. साध्वी के मामले में तो बिल्कुल भी नहीं क्योंकि उन्होंने उस अधिकारी का अपमान किया है जिसने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी. साध्वी पर तो लोगों की जान लेने का गंभीर आरोप है.
सवाल यह है कि साध्वी की ताकत कौन है? इसका जवाब पूरा देश जानता है. देश भाजपा से यह सवाल पूछ रहा है कि किसी आतंकी घटना के आरोपी को अपना उम्मीदवार बनाने में उसे हिचक क्यों नहीं हुई? क्या उसे लगता है कि लोगों ने आंखों पर पट्टी बांध ली है? हिचक हो भी कैसे? सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार भाजपा के लिए कोई व्यवस्था मायने कहां रखती है! दुर्भाग्य यह है कि ऐसी सोच पर लगाम लगाने के लिए विपक्षी एकता कहीं दिखाई नहीं दे रही है. मीडिया का बड़ा वर्ग नतमस्तक है. यह स्थिति राष्ट्र के लिए और लोकतंत्र के लिए घातक है. लेकिन डर से आगे निकलना ही होगा अन्यथा अनर्थ हो जाने का भय बना रहेगा.