विजय दर्डा का ब्लॉग: कांग्रेस को सही राह दिखा रहे हैं राहुल गांधी..!
By विजय दर्डा | Published: July 8, 2019 07:15 AM2019-07-08T07:15:29+5:302019-07-08T07:15:29+5:30
कांग्रेस के नए कमांडर को इस बात पर पूरी गंभीरता से विचार करना होगा कि कांग्रेस कभी पूरे देश में थी. अब यूपी में करीब 30 साल से, बंगाल में 42 साल से, तमिलनाडु में 50 साल से, बिहार में 29 साल से, ओडिशा में 19 साल से और गुजरात में 24 साल से कांग्रेस सत्ता में नहीं है.
आखिर राहुल गांधी नहीं माने. उन्होंने घोषणा कर दी कि वे अब अध्यक्ष नहीं हैं. इस घोषणा के साथ उन्होंने एक खुली चिट्ठी भी लिखी है. निजी तौर पर मेरे लिए यह अत्यंत दुखद प्रसंग है लेकिन मैं उनकी हिम्मत और उनके नजरिये की तारीफ करता हूं.
स्वाभाविक रूप से यह त्याग उन्होंने कांग्रेस को नया जीवन देने के नजरिये से किया है. उन्हें इस बात का दुख जरूर रहा होगा कि उनके अध्यक्ष काल में कांग्रेस की इतनी बुरी पराजय हुई और मौजूदा दौर में पार्टी क्षतिग्रस्त हालत में है.
मेरा मानना है कि राहुलजी ने बहुत मेहनत की लेकिन उस लड़ाई में कांग्रेस कहीं नहीं थी. अपने पत्र में उन्होंने ठीक कहा है कि कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है.
बीते 3 जून का मेरा यह कॉलम इसी विषय पर केंद्रित था. मैंने विस्तृत विश्लेषण किया था कि कांग्रेस इस बेहद दर्दनाक स्थिति में क्यों पहुंच गई है.
इस हकीकत से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि कांग्रेस के भीतर संगठन नाम की कोई चीज बची ही नहीं है. न कहीं सेवादल है, न एनएसयूआई है, न युवक कांग्रेस है, न महिला कांग्रेस है और न उसका श्रमिक संगठन इंटक कहीं धरातल पर नजर आता है.
ये सारे संगठन बस कागजों पर बचे हैं. कागजों पर इनके अध्यक्ष भी हैं और पदाधिकारी भी हैं लेकिन वास्तविकता में कहीं इनका नामोनिशान नहीं है. वर्किग कमेटी में ऐसे लोग भरे पड़े हैं जिनका जमीन से कोई रिश्ता नहीं है और आम आदमी से कोई लेना-देना नहीं है. नेता एक दूसरे को निपटाने में इतने मशगूूल हैं कि इसी चक्कर में उन्होंने पार्टी को ही निपटा दिया!
हां, राहुलजी से यह अपेक्षा जरूर थी कि वे नए लोगों को लेकर टीम बनाते, लेकिन उनके आसपास जो लोग रहे हैं वे एक कॉकस की तरह काम करते रहे. सोनिया गांधी और राहुलजी ने जिन पर विश्वास किया वे विश्वास के योग्य नहीं थे.
वे अपना उल्लू सीधा कर रहे थे. इधर भाजपा ने बड़े सोचे-समझे तरीके से न केवल राहुल गांधी की छवि बिगाड़ दी बल्कि उन्हें पॉलिटिकल मजाक बना दिया. मुझसे बहुत से लोग पूछते रहे कि क्या कांग्रेस में नेहरू-गांधी खानदान के अलावा और कोई नहीं है जो अध्यक्ष बने? मैं लोगों को समझाता रहा कि इस देश के निर्माण में नेहरू-गांधी खानदान का न केवल बड़ा योगदान है बल्कि बड़ी कुर्बानियां भी हैं.
लेकिन आज स्थिति ऐसी बन गई है कि ये सब तर्क सुनने को कोई तैयार नहीं है. देश की आबादी का 65 प्रतिशत युवा वर्ग है. उनमें से बहुतों का परिवार कांग्रेसी रहा है लेकिन उस युवा का कांग्रेस से आज कोई लेना-देना नहीं है.
राहुल गांधी को जब पॉलिटिकल मजाक बनाया जा रहा था तब उससे निपटने पर कांग्रेस ने ध्यान ही नहीं दिया. बाद में जनमानस को कैसे बदलें, इसमें भी कांग्रेस नाकाम रही. आज बीजेपी ने नेहरू-गांधी परिवार के प्रति खतरनाक प्रचार तंत्र चलाया. लोगों के मन में यह बैठाने की सफल कोशिश की कि जवाहरलाल नेहरू ने अपने दौर के अपनी बराबरी के लोगों को राजनीतिक रूप से खत्म कर दिया.
मेरा सवाल है कि इस प्रचार तंत्र के खिलाफ कांग्रेस ने कुछ क्यों नहीं किया? नरेंद्र मोदी और अमित शाह को दोष देने से काम नहीं चलेगा. लड़ना है तो विरोधी को समझना होगा. अपने और पराए को समझना होगा.
मैंने महाराष्ट्र में कांग्रेस की स्थिति के बारे में राहुलजी को हमेशा ही सच्चाई से अवगत कराया. एक बड़े संगठनात्मक ऑपरेशन की जरूरत थी लेकिन कॉकस को यह मंजूर नहीं था. कौन अपना है, कौन केवल फायदा उठाने के लिए करीबी बना हुआ है, कौन सी संस्था कांग्रेस का साथ दे रही है, यह सब देखने की जरूरत थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.
जिनका कांग्रेस से समर्पण वाला रिश्ता रहा ही नहीं वे पद पाते रहे. जो विपरीत परिस्थितियों में कांग्रेस का साथ दे रहे थे, उन्हें दरकिनार कर दिया गया. कांग्रेस ने यह भी नहीं सोचा कि वह जिन लोगों को संसद में भेज रही है वे कांग्रेस के लिए किसी काम के नहीं हैं. उनका अपना एजेंडा है.
सवाल है कि जब पार्टी में नेताओं के निजी एजेंडे का बोलबाला हो जाए तो ऐसी स्थिति में पार्टी को मजबूती कैसे मिलेगी? दरअसल पार्टी को कैसे आगे बढ़ाया जाए, इस पर किसी का ध्यान ही नहीं है. अगले चुनाव के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ताल ठोंक दिया है कि वे दोबारा सत्ता में लौट रहे हैं, लेकिन कांग्रेस में इसकी कोई हलचल ही नहीं हुई. कांग्रेस की आखिर तैयारी क्या है?
मेरा मानना है कि केवल राहुल गांधी के इस्तीफे से नजारा नहीं बदल जाएगा. उस कॉकस को भी समाप्त करना होगा जिसने कांग्रेस की नैया डुबोई है. वैसे लोगों को आगे लाना होगा जो हर मोड़ पर समर्पित रहे हैं.
कांग्रेस के नए कमांडर को इस बात पर पूरी गंभीरता से विचार करना होगा कि कांग्रेस कभी पूरे देश में थी. अब यूपी में करीब 30 साल से, बंगाल में 42 साल से, तमिलनाडु में 50 साल से, बिहार में 29 साल से, ओडिशा में 19 साल से और गुजरात में 24 साल से कांग्रेस सत्ता में नहीं है.
अब कांग्रेस का मुकाबला उस भाजपा से है जिसके पास नरेंद्र मोदी जैसा करिश्माई नेता और अमित शाह जैसा कुशल रणनीतिज्ञ है. कांग्रेस को खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए बड़ी मेहनत करनी होगी.
पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने के लिए ही राहुलजी ने त्याग किया है. उनके पिता राजीव गांधी ने भी देश के लिए बड़ा त्याग किया. मैं ऐसा मानता हूं कि राहुलजी हमेशा पार्टी के साथ तो रहेंगे ही, पार्टी के विचारों के लिए तो काम करेंगे ही, हमेशा कांग्रेस पार्टी को दिशा भी देते रहेंगे.
समय बदलेगा. राहुलजी को एक दिन फिर कमान अपने हाथ में लेनी होगी. आज जरूरत इस बात की है कि उनकी छवि को ठीक किया जाए. राहुलजी के भीतर पोटेंशियल है, देशभक्ति है, काम करने की ललक और कर्मठता है. उनके साथ त्याग, तपस्या और राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत है.