विजय दर्डा का ब्लॉग: महिलाओं की जांबाजी पर शंका का सवाल ही नहीं

By विजय दर्डा | Published: February 24, 2020 07:50 AM2020-02-24T07:50:13+5:302020-02-24T07:50:13+5:30

2010 में दिल्ली हाईकोर्ट ने दे दिया था लेकिन सरकार को यह मंजूर नहीं था.  सरकार के तर्क बड़े अजीब थे. वो कह रही थी कि महिलाओं की शारीरिक क्षमता कम होती है. वे प्रेग्नेंसी की वजह से लंबे समय तक काम से दूर रह सकती हैं.

Vijay Darda's blog on SC clears permanent commission, command roles for women officers in Indian Army: There is no question of doubt on women's fight | विजय दर्डा का ब्लॉग: महिलाओं की जांबाजी पर शंका का सवाल ही नहीं

कमांड पोस्ट का मतलब है सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व करना.

सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ा सीधा सा, सटीक और वक्त के कैनवास पर नई इबारत लिखने वाला फैसला दिया है. न्यायालय ने कहा कि महिलाएं भी पुरुषों की तरह सेना में कमांड पोस्ट संभाल सकती हैं. कमांड पोस्ट का मतलब है सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व करना. सीधे शब्दों में कहें तो सीधे युद्ध में शामिल होने का अवसर मिलना. भारतीय सेना में महिलाएं हैं लेकिन उन्हें कमांड पोस्ट अब तक नहीं दी जाती थी.

दरअसल फैसला तो 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट ने दे दिया था लेकिन सरकार को यह मंजूर नहीं था.  सरकार के तर्क बड़े अजीब थे. वो कह रही थी कि महिलाओं की शारीरिक क्षमता कम होती है. वे प्रेग्नेंसी की वजह से लंबे समय तक काम से दूर रह सकती हैं. वे घर और परिवार की जिम्मेदारियां संभालती हैं इसलिए सैन्य चुनौतियों को नहीं संभाल सकती हैं. यदि दुर्भाग्य से वे युद्धबंदी बन जाएं तो वह तनावपूर्ण स्थिति होगी. सरकार का एक तर्क तो बिल्कुल ही समझ से परे था कि सेना में ज्यादातर पुरुष ग्रामीण इलाकों से आते हैं इसलिए वे महिलाओं को अपने समकक्ष स्वीकार नहीं कर पाएंगे!

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी ने सरकार के तर्को को दरकिनार कर दिया. कोर्ट ने सही कहा कि सामाजिक धारणाओं के कारण महिलाओं के साथ नाइंसाफी नहीं की जा सकती. सरकार इस मामले में पूर्वाग्रह से ग्रस्त है. महिलाएं लड़ाकू विमान उड़ा सकती हैं तो सेना में किसी टुकड़ी  का नेतृत्व क्यों नहीं कर सकतीं? महिलाओं की शारीरिक क्षमता पर शक करना न केवल उनका बल्कि सेना का भी अपमान है. न्यायालय ने फैसले को लागू करने के लिए तीन महीने का वक्त दिया है और हमें उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार महिलाओं को सेना में समान अधिकार व अवसर देगी.

बहरहाल, हमें इस बात पर जरूर गौर करना चाहिए कि जिंदगी के दूसरे अवसरों पर भी आखिर महिलाओं के साथ नाइंसाफी क्यों होती है, जबकि महिलाओं की क्षमता मेरी नजर में पुरुषों से ज्यादा है. आखिर हम पुरुषों को जन्म भी तो महिलाओं ने दिया है. हाल के दिनों में मैंने यह देखा है कि उन्नत कहे जाने वाले महाराष्ट्र में भी मुंबई के पुलिस कमिश्नर और सरकार के चीफ सेक्रेट्री स्तर पर महिलाओं के पहुंचने में व्यवधान पैदा किया गया. आखिर ऐसा क्यों? दरअसल हमारी सरकारें भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नजर आती रही हैं. यह किसी भी हालत में ठीक नहीं है.

हमारा इतिहास महिलाओं की बहादुरी और जांबाजी से भरा पड़ा है. रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की गाथा तो आज 162 साल बाद भी हर भारतीय के जेहन में बसी है. छत्रपति शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई के साहस को दुनिया आज भी याद करती है. भारत की बेटी कल्पना चावला ने तो अंतरिक्ष तक में छलांग लगाई. बहरहाल मैं यहां केवल उन महिला सैन्य अधिकारियों की चर्चा करना चाहूंगा जिनका जिक्र सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका में किया गया था. इनमें मेजर मिताली मधुमिता को कौन भूल सकता है? उन्हें वीरता के लिए सेना मेडल से नवाजा जा चुका है. फरवरी 2010 में जब काबुल के भारतीय दूतावास पर हमला हुआ तो उन्होंने मलबे में दबे 19 लोगों की जान बचाई थी. लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी को कम कैसे आंका जा सकता है? एक बड़े विदेशी सैन्य अभियान में भारतीय सेना की टुकड़ी का नेतृत्व करने वाली वे पहली महिला थीं. शांति मिशन के तहत कांगो में भी उन्होंने सेवाएं दीं. लेफ्टिनेंट कर्नल अनुवंदना जग्गी असाधारण योग्यता के कारण यूनाइटेड नेशन्स फोर्स कमांडर्स कमेंडेशन सम्मान से नवाजी जा चुकी हैं. लेफ्टिनेंट भावना कस्तूरी और कैप्टन तान्या शेरगिल गणतंत्र दिवस और सेना दिवस की परेड में पुरुषों की सैन्यदल टुकड़ी का नेतृत्व कर चुकी हैं. अश्विनी पवार, शिप्रा मजूमदार, दिव्या अजित कुमार, गोपिका भट्टी, मधु राणा और
अनुजा यादव जैसी जांबाज अधिकारियों का नाम हम कैसे भूल सकते हैं. ये अपनी जांबाजी साबित कर चुकी हैं.

मुङो पूरा विश्वास है कि युद्ध के मैदान में हमारी महिलाएं दुश्मनों के दांत खट्टे कर देंगी. दुनिया में जहां भी महिलाओं को अवसर मिला है और जरूरत पड़ी है तो उन्होंने अपने अदम्य साहस का प्रदर्शन किया है. हाल के वर्षो में इराक की यजीदी महिलाओं ने इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों का क्या हश्र किया, दुनिया ने देखा है. दूसरे विश्वयुद्ध में सोवियत संघ ने महिलाओं को युद्ध के मैदान में भेजा था. हालांकि अब रूस में महिलाओं को यह इजाजत नहीं है. अफगानिस्तान और इराक में जब अमेरिका और ब्रिटेन ने अपनी सेना भेजी, तब महिलाओं की टुकड़ी भी साथ थी. हालांकि तब दोनों देशों की महिलाओं को युद्ध में शामिल होने की इजाजत नहीं थी, लेकिन हालात ऐसे बने कि महिलाओं की टुकड़ी को जंग में उतरना पड़ा और करीब डेढ़ सौ महिलाओं ने वीर गति प्राप्त की. 2013 में अमेरिकी महिलाओं को और 2016 में ब्रिटेन की महिलाओं को युद्ध में शामिल होने की इजाजत मिल गई.

वैसे इजराइल, उत्तर कोरिया,  नॉर्वे, फिनलैंड, स्वीडन, फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, पोलैंड और ऑस्ट्रेलिया उन देशों में शामिल हैं, जहां महिलाओं को जंग में शामिल होने की इजाजत है. नाव्रे ने तो 2014 में जगरट्रॉपन शुरू किया. यह महिला सैनिकों का समूह है. इन्हें आप सुपर कमांडो कह सकते हैं. इन्होंने अफगानिस्तान में अपनी बहादुरी साबित की है. और जहां तक भारतीय महिलाओं का सवाल है तो वे शेरनी का जिगर और धैर्य रखती हैं. वे वाकई किसी से कम नहीं!

Web Title: Vijay Darda's blog on SC clears permanent commission, command roles for women officers in Indian Army: There is no question of doubt on women's fight

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