विजय दर्डा का ब्लॉग: जेट एयरवेज के संकट ने सबको परेशानी में डाला

By विजय दर्डा | Published: March 25, 2019 08:39 AM2019-03-25T08:39:51+5:302019-03-25T08:39:51+5:30

जेट एयरवेज ने दुनिया की दूसरी कंपनियों से विमान किराए पर ले रखे हैं. इन विमानों की लीज राशि वह समय पर चुकता नहीं कर पा रहा है. इस कारण से पहले ही फेज में उसने 84 विमानों की उड़ानें रद्द कर दीं.

Vijay Darda's blog: Jet Airways crisis pervades everyone | विजय दर्डा का ब्लॉग: जेट एयरवेज के संकट ने सबको परेशानी में डाला

विजय दर्डा का ब्लॉग: जेट एयरवेज के संकट ने सबको परेशानी में डाला

जेट एयरवेज का शुरुआती सफर यदि आप देखें तो उसे आप शाइनिंग सफर कह सकते हैं. 1993 में एक कंपनी एयर टैक्सी ऑपरेटर के रूप में अपनी शुरुआत करती है. केवल दो साल की अवधि में यानी 1995 में वह विधिवत एयरलाइन के रूप में स्थापित होती है और 2004 आते-आते उसकी उड़ानें विदेश जाने लगती हैं. 2006 में वह कंपनी एयर सहारा को खरीद लेती है और 2010 आते-आते 22.6 प्रतिशत पैसेंजर मार्केट शेयर के साथ वह हिंदुस्तान की सबसे बड़ी कंपनी बन जाती है. एयर जेट को यात्री पसंद करने लगते हैं. उसकी सफलता का ग्राफ बढ़ता जाता है. 2012 तक उसका परचम बुलंद रहता है और नंबर वन की कुर्सी उसके पास ही रहती है. उसके बाद ग्राफ नीचे उतरता है, लेकिन पिछले साल तक जेट एयरवेज करीब 18 प्रतिशत शेयर के साथ नंबर दो की कुर्सी पर तो था ही! 

तो फिर ऐसा क्या हो गया कि जेट एयरवेज 2019 आते-आते इतनी तबाही की हालत में पहुंच गया कि न अपने कर्मचारियों को वेतन दे पा रहा है और न ही अपनी क्षमता के अनुरूप फ्लाइट उड़ा पा रहा है. दरअसल जेट एयरवेज ने दुनिया की दूसरी कंपनियों से विमान किराए पर ले रखे हैं. इन विमानों की लीज राशि वह समय पर चुकता नहीं कर पा रहा है. इस कारण से पहले ही फेज में उसने 84 विमानों की उड़ानें रद्द कर दीं. इसका परिणाम यह हुआ कि हवाई यात्रियों के लिए सीटें अचानक कम हो गईं. आंकड़े बताते हैं कि जनवरी महीने में घरेलू उड़ानों की कुल सीटें 1 करोड़ 47 लाख थीं जो फरवरी में केवल 1 करोड़ 34 लाख रह गईं यानी 13 लाख सीटें कम हो गईं. 

पायलटों की कमी के कारण इंडिगो की भी कुछ उड़ानें रद्द होती रहती हैं. स्पाइस जेट को अपने 12 बोइंग 737 मैक्स विमानों को हटाना पड़ा है क्योंकि अगले आदेश तक ऐसे विमानों की उड़ान पर डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) ने सुरक्षा कारणों से प्रतिबंध लगा रखा है. सीटों की क्षमता में गिरावट के मामले में एविएशन क्षेत्र का यह सबसे बड़ा मामला है. इसके पहले विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर के 69 एयरक्राफ्ट जब हवा से हटे थे तब भी सीटों की कमी हुई थी लेकिन इस बार का संकट पहले से बहुत बड़ा है.   अप्रैल के अंत तक 13 अंतर्राष्ट्रीय मार्गो पर भी जेट एयरवेज अपनी उड़ानें बंद करने जा रहा है. 

सीटों की संख्या में आई इस भीषण गिरावट का असर यह हुआ है कि कम व्यस्त रूट पर भी विमानों का किराया 35 से 40 प्रतिशत तक बढ़ गया है. महानगरों के बीच तो किराए में उछाल 50 से 60 प्रतिशत तक आया है. यह स्थिति तब है जब पर्यटन की भीड़भाड़ का  सीजन अभी शुरू नहीं हुआ है. यदि विमानों के किराए और बढ़ते हैं तो इसका सीधा असर टूरिज्म सेक्टर पर भी पड़ेगा.  

हम सभी यह जानते हैं कि निजी क्षेत्र की एविएशन कंपनियों के कारण ही यह संभव हो पाया कि किराया कम हुआ और आम आदमी विमान में सफर करने लगा. किराया बढ़ जाएगा तो आम आदमी हवाई सफर के बारे में शायद सोच भी न पाए. हालांकि आपको जानकर हैरत होगी कि इसी प्राइस वार ने आज जेट एयरवेज की यह हालत बनाई है. इंडिगो और स्पाइस जेट जैसी कंपनियां जब मध्यमवर्गीय ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए प्राइस वार में कूदीं तो मजबूरी में जेट एयरवेज को भी 2013 में किराया घटाना पड़ा. जानकारों का कहना है कि अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में जेट एयरवेज प्रति सीट प्रति किलोमीटर एक रुपया ज्यादा खर्च करता था. 2015 के अंत में जेट को प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले प्रति सीट प्रति किलोमीटर 50 पैसे ज्यादा कमाई हो रही थी. तभी इंडिगो ने एक बार फिर तेजी से किराया कम किया और विमानों के फेरे ढाई गुना बढ़ा दिए. हालांकि इंडिगो को 2016 के पहले नौ महीनों में करीब 90 पैसे प्रति सीट प्रति किलोमीटर का नुकसान हुआ लेकिन असली नुकसान हुआ जेट एयरवेज का. इसके बाद जेट ने भी किराया कम किया. 50 पैसे के फायदे को छोड़ा और 30 पैसे का अतिरिक्त घाटा बर्दाश्त किया लेकिन प्राइस वार में टिक नहीं पाया क्योंकि वह पहले से कर्ज में डूबा हुआ था. अब तो और भी कर्ज में है. 2021 तक उसे 63 अरब रुपए का कर्ज चुकाना है. 

उम्मीद की जानी चाहिए कि एसबीआई जैसी वित्तीय संस्थाएं जेट को उबारने के लिए सख्त से सख्त कदम उठाएंगी. इसके साथ ही सरकार को यात्रियों के हित में कठोर निर्णय भी लेने होंगे. अभी 41 दिनों का शेडय़ूल डीजीसीए ने क्लियर कर दिया है, लेकिन आम आदमी को यह शेडय़ूल अब तक नहीं बताया गया है. लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि किस फ्लाइट में बुकिंग कराएं जो कैंसल न हो. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यात्रियों ने जो एडवांस बुकिंग करा रखी है, उसके तीन हजार करोड़ रुपए भी जेट ने यात्रियों को अब तक नहीं लौटाए हैं. जबकि वो फ्लाइटें कैंसल हो चुकी हैं. संकट अभी टलता नजर नहीं आ रहा है क्योंकि एतिहाद एयरलाइंस और कतर एयरलाइंस ने जेट को साफ कह दिया है कि वो पहले अपनी ये विफलताएं सुधारे, उसके बाद ही कुछ सोचा जा सकता है. तो मुद्दे की बात यह है कि इस एविएशन संकट ने बिजनेस सेक्टर को भी प्रभावित किया है. फ्लाइट कैंसल होने के कारण बिजनेसमैन परेशान हैं. जो बड़े बिजनेसमैन हैं उनके लिए चार्टर्ड प्लेन जरूरी हो गया है, लेकिन वहां भी किराया अनाप-शनाप बढ़ गया है. सरकार को किराया न बढ़ने देने पर भी खास तौर पर ध्यान केंद्रित करना होगा. यह समझने की जरूरत भी है कि आज भारत में जितने प्लेन उड़ते हैं उससे तीन गुना ज्यादा प्लेन की जरूरत भारत को है. इस तरह उड़ानें अगर कम होती रहेंगी तो सरकार की नई एविएशन नीति का क्या होगा. छोटे शहर तो फिर विमान से जुड़ ही नहीं पाएंगे.

Web Title: Vijay Darda's blog: Jet Airways crisis pervades everyone

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