विजय दर्डा का ब्लॉग: आपकी ये लापरवाही बहुत कुछ बर्बाद कर देगी
By विजय दर्डा | Published: April 5, 2021 02:12 PM2021-04-05T14:12:26+5:302021-04-05T14:12:26+5:30
Coronavirus: कोरोना वायरस का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है और इसका एक बड़ा और अहम कारण लोगों की लापरवाही है. इसे समझना होगा.
कोरोना की दूसरी लहर ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आप किसे चुनेंगे? आर्थिक बर्बादी को या फिर जिंदगी को? जाहिर सी बात है कि जान है तो जहान है. जिंदा रहेंगे तो और भी लड़ेंगे!
हालांकि सच्चई यह भी है कि लॉकडाउन को फिर से बर्दाश्त करने की ताकत हमारी अर्थव्यवस्था में नहीं है लेकिन सवाल फिर वही है कि क्या करें? लोगों की जान कैसे बचे?
न मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे चाहते हैं कि लॉकडाउन लगे और न सरकार में बैठा कोई दूसरा व्यक्ति यह चाहता है. लॉकडाउन लगाने का किसी को शौक नहीं है! लेकिन सवाल यह है कि जब लोग सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं तो विकल्प क्या बचता है?
मेरी नजर में इसका एक ही विकल्प है कि मास्क न लगाने वालों और सुरक्षित दूरी का पालन न करने वालों के खिलाफ अत्यंत सख्त रवैया अपनाया जाए. केवल दंड वसूलने से कुछ नहीं होगा. केवल मुंबई में मास्क नहीं पहनने वालों से 49 करोड़ रु. का दंड वसूला जा चुका है.
हम यह मानकर चलते हैं कि विमान यात्र करने वाले लोग शिक्षित हैं, जिम्मेदार हैं लेकिन मैं देखता हूं कि एयर होस्टेस चिल्ला चिल्ला कर घोषणा करती रहती है कि मास्क और शील्ड पहनिए, ये कंपल्सरी है. मैं देखता हूं कि कोई नहीं पहन रहा.
एयर होस्टेस की बात को सब इग्नोर करते हैं. जब हवाई जहाज खड़ा हो जाता है तो एयर होस्टेस कहती है कि नंबर के अनुसार उतरिए लेकिन लोग ऐसी जल्दी करते हैं जैसे कि प्लेन वहां से भाग जाएगा! जो लोग यात्र के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते हैं उन्हें यात्र से प्रतिबंधित कर देना चाहिए.
कानूनी रूप से सख्ती बरतनी ही पड़ेगी. लोगों को इस बात का भय होगा कि कोविड से बचने के प्रोटोकॉल का उल्लंघन करेंगे तो कड़ी सजा मिल सकती है, तभी लोग मास्क भी लगाएंगे और सुरक्षित दूरी का पालन भी करेंगे. बड़ी पुरानी कहावत है- भय बिन होय न प्रीति!
मगर सवाल यह भी है कि लोग ऐसी लापरवाही बरत क्यों रहे हैं? समाज में ज्यादातर लोग लापरवाह हो जाएं यह तो निश्चय ही आश्चर्य की बात है!
दरअसल जब लोग देखते हैं कि विभिन्न राज्यों में हो रही चुनावी रैलियों और सभाओं में लाखों लोग एकत्रित हो रहे हैं, कुंभ के मेले में लाखों लोग इकट्ठा हो गए, अहमदाबाद के स्टेडियम में दो मैचों में हजारों दर्शकों की भीड़ जुटी और कहीं भी न सोशल डिस्टेंसिंग थी और न ही मास्क तो स्वाभाविक रूप से उन्हें लगता है कि ये कोरोना कुछ नहीं है!
यह भाव पैदा होना निश्चय ही बहुत खतरनाक है. आश्चर्य की बात है कि ऐसे भीड़ भरे आयोजनों पर किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया. अहमदाबाद में दोनों मैच में स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था. जब कुछ दर्शकों को कोरोना हुआ तब क्रिकेट का तीसरा मैच बिना दर्शकों के हुआ.
ऐसी लापरवाही आखिर क्यों? चुनावी रैलियों और सभाओं पर चुनाव आयोग ने रोक क्यों नहीं लगाई या न्यायालय ने स्वत: संज्ञान क्यों नहीं लिया? सवाल यह भी है कि किसी राजनीतिक दल ने यह क्यों नहीं सोचा कि महामारी के इस दौर में रैलियों और सभाओं से परहेज किया जाए.
ये दल अपनी बात समाचार माध्यमों से भी जनता तक पहुंचा सकते थे! विडंबना देखिए कि एक तरफ हजारों, लाखों की भीड़ जुट रही है तो दूसरी ओर अंतिम यात्र में 20 और शादी में 50 लोगों की बंदिश है.
लोग जब ये विरोधाभास देखते हैं तो उनके मन में अनंत प्रश्न पैदा होते हैं और यहीं से गाड़ी पटरी से उतरती है. वे सोचते हैं कि क्या कोरोना नियम पालने वालों के इलाके में ही घूमता है? कुछ नहीं होता. ऐसे ही चलने दो!
यह निर्विवाद सत्य है कि जब तक लोग नहीं सुधरेंगे तब तक कोरोना पर काबू नहीं पाया जा सकता. सरकार की भी अपनी सीमाएं हैं. महाराष्ट्र के सरकारी अस्पतालों में कोरोना प्रारंभ होने से पहले केवल 8 हजार बेड थे.
आज इसकी संख्या करीब पौने चार लाख तक हो चुकी है फिर भी कोरोना के मरीजों को बेड मिलना मुश्किल हो रहा है. आज सरकार बेड की संख्या और भी बढ़ा दे तो सवाल यह है कि मरीजों के लिए चिकित्सक और पैरामेडिकल स्टाफ की व्यवस्था कहां से होगी?
हालांकि बहुत से लोग यह कहते हैं कि महाराष्ट्र में दूसरे राज्यों से चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ को बुलाना चाहिए.
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पहले दौर में भी महाराष्ट्र में कोरोना का प्रकोप बहुत ज्यादा था और इस दूसरे दौर में भी हालात वैसे ही हैं. आपको ध्यान होगा कि केंद्र की टीम यह देखने आई थी कि महामारी का प्रकोप सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में ही क्यों हो रहा है.
पुरानी घटनाओं के विश्लेषण से पता चला कि देश को एक लाइन से विभाजित करने वाली रेखा के पश्चिमी हिस्से और खासकर महाराष्ट्र को ही पहले भी महामारियों ने ज्यादा प्रभावित किया था. जाहिर सी बात है कि हमें ज्यादा सतर्कता बरतनी चाहिए.
हम यह देख रहे हैं कि कोरोना ने हर किसी को तबाह किया है. मेडिकल सिस्टम चरमरा गया है. करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई हैं. उद्योग-धंधे चौपट हुए हैं. निजी शिक्षा प्रणाली की तो कमर ही टूट गई है. जब उन्हें फीस नहीं मिल रही है तो शिक्षकों को तनख्वाह कहां से देंगे?
अब सोचिए कि यदि फिर से लॉकडाउन लगाने की नौबत आ ही जाए तो क्या होगा? जाहिर है कि सब बर्बाद हो जाएंगे! सीधी भाषा में यह समङिाए कि कोरोना के ठीक पहले हमारा जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद 7 प्रतिशत की दर से बढ़ने की स्थिति में था.
कोरोना ने इसे माइनस 23 प्रतिशत नीचे पहुंचा दिया. यानी 7 प्रतिशत की वृद्धि को भी इसमें जोड़ दें तो पिछले वित्तीय वर्ष में हमारे जीडीपी को करीब 30 प्रतिशत का नुकसान हुआ है. इससे ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकते.
इसलिए जरूरी है कि हम एहतियात बरतें ताकि फिर से लॉकडाउन की नौबत ही न आने पाए. एक बात मैं सरकार से भी कहना चाहता हूं कि वैक्सीनेशन की प्रक्रिया और तेज होनी चाहिए तथा उम्र के बंधन को तत्काल हटाकर 18 साल से ज्यादा के हर व्यक्ति को वैक्सीन मिलनी चाहिए.
वैक्सीनेशन का सूत्र केंद्र सरकार के पास है इसलिए उसकी जिम्मेदारी है कि किसी भी राज्य में वैक्सीन की कोई कमी न हो. खासकर बुरी तरह से प्रभावित महाराष्ट्र को जितनी वैक्सीन चाहिए, उतनी जल्दी से जल्दी मिले.
एक बार यदि हमने अपनी 80 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण कर दिया तो हर्ड इम्युनिटी आ जाएगी. लेकिन ध्यान रखिएगा कि उसके बाद भी कोरोना के खिलाफ हमारा सबसे बड़ा अस्त्र सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क ही रहेगा. इसके साथ जीना हमें सीखना होगा. लापरवाही बरतेंगे तो हालात और खराब होंगे.
अंत में मैं कोरोना योद्धाओं, डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस और फ्रंट लाइन वर्कर्स के प्रति आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर कर्तव्य पालन में कोई कसर नहीं छोड़ी. आप मास्क लगाकर और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करके उनके प्रति आभार तो व्यक्त करिए!