विजय दर्डा का ब्लॉग: गलतियां बाबर की, जुम्मन का घर क्यों जले

By विजय दर्डा | Published: June 6, 2022 10:11 AM2022-06-06T10:11:03+5:302022-06-06T10:14:28+5:30

नफरत की चिंगारी फेंकना बड़ा आसान होता है लेकिन धधकती आग को बुझाना आसान नहीं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढ़ने की प्रवृति को गलत ठहराकर भारत को शांति और विकास के पथ पर ले जाने का एक पवित्र मंत्र दिया है.

Vijay Darda's blog: Gyanvapi mosque controversy and communal tension | विजय दर्डा का ब्लॉग: गलतियां बाबर की, जुम्मन का घर क्यों जले

हर मस्जिद में शिवलिंग खोजने की प्रवृत्ति ठीक नहीं: मोहन भागवत (फाइल फोटो)

ज्ञानवापी का मामला लोगों के जेहन को झकझोर ही रहा था कि कुछ और मस्जिद-मंदिर विवाद की आशंका उपजने लगी. इतिहास के विवादित पन्नों को फड़फड़ाने की कोशिशें शुरू हो गईं. इसके साथ ही विचारवान लोगों के माथे पर शिकन उभरने लगी कि किस रास्ते पर जा रहा है हमारा देश? और ये रास्ता हमें किस मंजिल पर ले जाएगा? 

ऐसे माहौल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवतजी का यह विचार सामने आया कि ज्ञानवापी मामले का हल आपसी समझौते या फिर कोर्ट के निर्णय के सम्मान के तहत होना चाहिए. हर मस्जिद में शिवलिंग खोजने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है. ऐसा नहीं होना चाहिए.

संघ प्रमुख के इस विचार ने निश्चय ही यह उम्मीद जगाई है कि इतिहास में दफन जख्म को नए सिरे से कुरेदकर वर्तमान के पंखों को रक्तरंजित करने की कोशिशें शायद रुक जाएं! इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंदुत्व की बहुत बड़ी धारा संघ प्रमुख को आदर और सम्मान के साथ देखती है. उनके विचारों से प्रभावित होती है. ऐसे लोगों के लिए उनके विचारों का एक-एक कतरा बहुत मायने रखता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि उनके विचारों की हर व्यक्ति कद्र करेगा और ऐसे विवाद और नहीं पनपेंगे. 

वैसे कानूनी दृष्टि से देखें तो हमारे देश में उपासना स्थल अधिनियम 1991 के तहत सभी धार्मिक स्थलों का स्वरूप वही रहेगा जो 15 अगस्त 1947 के वक्त था. इसलिए नियमत: कोई विवाद उठना भी नहीं चाहिए.

मगर वक्त की सच्चाई यह है कि आज हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग इतिहास में दफन जुल्म के किस्सों को लेकर आक्रोशित है. इसमें कोई संदेह नहीं कि सातवीं शताब्दी में भारत पर खलीफाओं की सेना आक्रमण करने लगी थी. आठवीं शताब्दी के प्रारंभ में उन्हें सफलताएं भी मिलने लगीं. उसके बाद कई जुल्मी शासकों ने हिंदुस्तान के कई इलाकों पर कब्जा किया. जुल्म की बहुत सारी कहानियां इतिहास में मौजूद हैं. उन्होंने जुल्म केवल भारत में ही नहीं, दुनिया के कई हिस्सों में किया. उन्हीं जुल्मों को लेकर आज बहुत से लोग आक्रोशित हैं. यह आक्रोश स्वाभाविक है लेकिन सवाल यह है कि आक्रोश की अभिव्यक्ति का हमें प्रतिफल क्या मिलेगा? क्या हम विकासवाद की विचारधारा को जुल्म की उसी दुनिया में वापस ले जाना चाहेंगे? भारत विभाजन के समय हमने बहुत दर्द झेला है! अब और नहीं..!

इन्हीं शंकाओं को लेकर जाने-माने कवि और शायर अदम गोंडवी ने इस दुनिया से रुखसत होने के पहले एक मौजूं गजल लिखी...

हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है/द़फ्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
गर गलतियां बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले/ऐसे नाजुक व़क्त में हालात को मत छेड़िए
हैं कहां हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज खां/ मिट गए सब, कौम की औकात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ/ दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िए

लेकिन इतिहास गवाह है कि जीत का उन्माद होता ही ऐसा है कि वह अपनी फतह दर्ज करने के लिए हारे हुए समाज को बेइज्जत करता है. कभी धार्मिक स्थलों को तोड़कर तो कभी बहू-बेटियों के मांस नोचकर! यह दुनिया के हर हिस्से में हुआ है. आज यूक्रेन में क्या हो रहा है? बलात्कार के दर्दनाक किस्से सामने आ रहे हैं. यूक्रेन से भाग रही औरतों को मांस का लोथड़ा बनाने के लिए भूखे भेड़िए जाल बिछाकर बैठे हैं. 

पूरी दुनिया में इस्लामी खलीफा राज स्थापित करने का क्रूर सपना देखने वाले इस्लामिक स्टेट के खूंखार आतंकी अबू बकर ने क्या किया? जो इलाका जीता, वहां की बच्चियों को बर्बर आतंकवादियों के पास फेंक दिया. लाखों बच्चियां जिंदगी शुरू करने से पहले ही दफन हो गईं. जो बचीं, वो जिंदा लाश बनकर रह गईं. तो क्या अबू बकर को खत्म करने वाली सेना भी वैसा ही व्यवहार करती? नहीं..! उसे तो सुकून का मलहम लगाना था. सुकून के मलहम से ही इतिहास के काले पन्नों को सफेद किया जाता है. पन्ना जब तक सफेद नहीं होगा तब तक नई इबारत नहीं लिखी जा सकती है.

दुर्भाग्य से हम वक्त के जिस दौर से गुजर रहे हैं वहां नफरत की बयार अब आंधी का रूप लेने लगी है. आग के शोले दोनों ओर से भड़क रहे हैं. मैं आपको डरा नहीं रहा हूं बल्कि वक्त का आईना दिखा रहा हूं. नफरत की यह आंधी हम सबको उड़ा ले जाएगी. आज इस्लाम के नाम पर आतंक का जो खौफनाक मंजर तैयार हुआ है, उसमें ज्यादातर तो मुसलमान ही मर रहे हैं न..! मैं जानता हूं कि कोई भी सच्चा मुसलमान आतंकियों का हमदर्द नहीं हो सकता लेकिन आतंकियों के खिलाफ उसे भी तो अपनी आवाज बुलंद करनी होगी!

चलते-चलते एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि मुसलमानों की आबादी के लिहाज से भारत पूरी दुनिया में दूसरे क्रम पर है. निस्संदेह हर मुसलमान भारतीय है. उसके ईमान पर कभी शंका नहीं की जा सकती. हर पुरानी मस्जिद में शिवलिंग ढूंढ़ने की प्रवृत्ति से हिंदुस्तान का वाकई भला नहीं होने वाला है. हमारा संविधान सबको एक मानता है और हमारे पूर्वज भी यही मानते रहे हैं. तो एक-दूसरे के प्रति फिर से अटूट विश्वास पैदा कीजिए. हम सब की एकजुटता ही हिंदुस्तान को दुनिया का सिरमौर बना सकती है. जय हिंद! 

Web Title: Vijay Darda's blog: Gyanvapi mosque controversy and communal tension

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