विजय दर्डा का ब्लॉग: पाक के लिए रिश्ते सुधारने का एक और मौका
By विजय दर्डा | Published: March 1, 2021 08:23 AM2021-03-01T08:23:24+5:302021-03-01T08:41:04+5:30
संघर्ष विराम समझौते की वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दोनों देशों के लिए सीमा पर शांति बहुत जरूरी है. यदि रोज-रोज की कटकट समाप्त होती है और दोनों के रिश्ते सामान्य होते हैं तो सौहार्द बढ़ेगा. शांति और प्रेम हो तो निश्चय ही अवाम का भला होगा.
यह पहला अवसर नहीं है जब भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर संघर्ष विराम का समझौता हुआ हो. 1999 में भीषण कारगिल युद्ध के बाद कुछ दिनों तक तो सीमा पर शांति रही लेकिन गोलियां फिर से चलनी शुरू हो गई थीं.
2003 आते-आते हालात ज्यादा खराब हो गए तो दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम का समझौता हुआ. अब भारत और पाक के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स इस बात पर सहमत हुए हैं कि 2003 के समझौते का पालन किया जाए और राजस्थान से लेकर कश्मीर तक सीमा पर शांति बहाल हो! क्या वाकई ऐसा हो पाएगा?
उम्मीदों पर तो संसार टिका है इसलिए अमन के पक्षधरों को शांति की उम्मीद भी करनी चाहिए और इसके लिए कोशिशें जारी भी रखनी चाहिए. हालांकि 2003 का संघर्ष विराम समझौता भी ज्यादा दिन नहीं टिक पाया था और 2018 में एक बार फिर इसी तरह का समझौता करना पड़ा. लेकिन तीन साल के भीतर ही फिर से संघर्ष विराम समझौता करना पड़ा है.
सवाल यह है कि यदि एक बार समझौता कर लिया है तो वह टूटता क्यों है? निश्चय ही इसके लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है. हमारी फौज बेवजह गोलियां नहीं चलाती. जब पाकिस्तानी फौज फसाद करती है और बेगुनाह गांव वालों पर मोर्टार दागती है या फिर उसके स्नाइपर भारतीय सेना के जवानों पर गोलियां चलाते हैं तभी हमारी सेना जवाब देती है.
अभी जो ताजा समझौता हुआ है उसमें भी भारत की सदाशयता है. पाकिस्तान तो हमेशा ही रिश्तों को खराब करने की कोशिशें करता रहता है. जब भारत जवाब देता है तो वह दुनिया भर में घूम-घूम कर कश्मीर का राग अलापने लगता है. अभी उसकी हालत खराब है इसलिए वह चाहता है कि सीमा पर उसे कुछ राहत मिल जाए क्योंकि हमारी फौज ने उसकी नकेल कस रखी है.
चीन की फौज को पीछे हटते देखकर पाक के हौसले भी पस्त हुए हैं. चूंकि भारत हमेशा ही शांति का पक्षधर रहा है इसलिए इस बार भी पाकिस्तान को मौका दे रहा है. इसके साथ ही मैं इस बात का भी जिक्र करना चाहता हूं कि पाकिस्तान की अवाम भी भारत के साथ अच्छे रिश्ते चाहती है.
समस्या है तो वहां की सेना की ओर से है. भारत से दुश्मनी उसकी रोजी रोटी है. ऐसे में यह सवाल सबके मन में है कि पाकिस्तान और भारत के संबंध इतने तल्ख दौर में होने के बावजूद यह समझौता हुआ कैसे?
दरअसल पाकिस्तानी आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा ने 2 फरवरी को कहा कि ‘सभी दिशाओं में शांति का हाथ बढ़ाने का समय आ गया है.’ इसके साथ ही पाकिस्तान की ओर से सीमा पर गोलियों की बौछार में कमी भी आई. जाहिर सी बात है कि भारत ने सकारात्मक उत्तर दिया.
यहां तक कि श्रीलंका जाने के लिए इमरान खान के विमान को भारतीय वायु सीमा से होकर गुजरने की इजाजत भी दे दी जबकि पाकिस्तान का रवैया हमेशा ही नकारात्मक रहा है. यहां तक कि हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी के विमान को भी पाकिस्तान ने एयर स्पेस नहीं दिया था. भारत चाहता तो उसी की भाषा में जवाब देता लेकिन ऐसा नहीं किया गया क्योंकि भारत चाहता है कि दोनों देशों के बीच संबंध सुधरें.
एक कोशिश अटलजी ने भी की थी लेकिन उसके बदले कारगिल का युद्ध मिला था. वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हमेशा ही इस बात के पक्षधर रहे हैं कि पाकिस्तान के साथ संबंध सामान्य होने चाहिए. 2008 में मुंबई बम विस्फोट के बाद सारे रिश्ते टूट गए थे लेकिन उस जमी हुई बर्फ को पिघलाने के लिए 2015 में नरेंद्र मोदी अचानक पाकिस्तान पहुंच गए थे और तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर जा पहुंचे थे.
शायद नवाज भी रिश्ते को सामान्य करना चाहते थे लेकिन उसके कुछ ही दिनों बाद पठानकोट एयर बेस पर आतंकी हमला हो गया था. उसमें पाकिस्तानी आतंकवादी शामिल थे जिन्हें वहां की फौज ने इस काम के लिए मुकर्रर किया था. जब इमरान खान प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भी जमी हुई बर्फ को नरम करने की कोशिश की लेकिन फौज ने उन्हें भी अपने लपेटे में ले लिया.
कश्मीर में वह आतंक की खेप भेजता रहता है. ध्यान रखिए कि खून का खेल खेलने वाले लोकतंत्र के दुश्मन हैं और दुर्भाग्य यह है कि ऐसा करने वालों की मदद के लिए बहुत से अदृश्य हाथ हमेशा सक्रिय रहते हैं.
संघर्ष विराम समझौते की वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दोनों देशों के लिए सीमा पर शांति बहुत जरूरी है. यदि रोज-रोज की कटकट समाप्त होती है और दोनों के रिश्ते सामान्य होते हैं तो सौहार्द बढ़ेगा. शांति और प्रेम हो तो निश्चय ही अवाम का भला होगा.
दोनों देश हर रोज के संघर्ष पर करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं. पाकिस्तान का आंकड़ा तो पता नहीं लेकिन भारत केवल सियाचिन की चोटियों पर अपने सैनिकों को बनाए रखने के लिए हर रोज करीब सात करोड़ रुपए खर्च करता है.
पाकिस्तान वहां नीचे की चोटियों पर है इसलिए उसे कम खर्च करना पड़ रहा होगा लेकिन वह राशि भी करोड़ों में ही होगी. इसके अलावा करीब 2900 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा पर होने वाला खर्च अलग है. जरा सोचिए कि यह राशि यदि आम लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों पर खर्च हो तो कितना अच्छा रहेगा!
यदि वह आतंकवाद का रास्ता छोड़ दे तो भला उसी का है. हम तो मजबूत देश हैं, आतंकवादियों का सफाया कर रहे हैं और नेस्तनाबूद भी कर देंगे. कश्मीर छीनने का ख्वाब पाकिस्तान को देखना भी नहीं चाहिए. उसे एक मौका मिला है खुद सुधरने का और भारत के साथ संबंध सुधारने का. उसे लाभ उठाना चाहिए.