विजय दर्डा का ब्लॉग: संघ और भाजपा से क्या धर्मनिरपेक्ष पार्टियां लड़ पाएंगी?
By विजय दर्डा | Published: December 6, 2020 04:18 PM2020-12-06T16:18:27+5:302020-12-06T16:39:27+5:30
कमाल देखिए कि ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का चुनाव इस बार ऐसे लड़ा गया जैसे लोकसभा या विधानसभा का चुनाव हो! भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी और जिस कॉरपोरेशन में पिछली बार केवल 4 सीटें थीं वहां 48 सीटों पर विजय हासिल कर ली. अपनी इसी शैली के कारण भाजपा लगातार अपने पैर पसार रही है.
भाजपा ने जिस तरह से ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का चुनाव लड़ा उसने पूरे देश का ध्यान खींचा. ऐसा पहली बार हुआ जब एक म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पूरी ताकत झोंक दी थी. चुनाव के दौरान मैंने देवेंद्र फडणवीस से पूछा कि स्थानीय चुनाव में अमित शाह जी और जेपी नड्डा जी जैसे लोग उतर रहे हैं, आप भी प्रचार कर रहे और कई सांसद भी लगे हुए हैं तो उन्होंने कहा कि देखना, भले ही हम सबसे बड़ी पार्टी वहां न बन सकें लेकिन सम्मानजनक सीटें जरूर लेकर आएंगे और अपना वोट बैंक बढ़ाएंगे. इस विश्वास का ही नतीजा है कि 4 सीटों वाली भाजपा ने न केवल 48 सीटें हासिल कीं बल्कि दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. उसने टीआरएस को 99 से 55 सीटों पर ला दिया.
दरअसल भाजपा के काम करने की शैली बड़ी अनोखी है. यह पुराना जनसंघ नहीं है बल्कि वो भारतीय जनता पार्टी है जिसे अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेताओं ने सींचा और आज जिसकी बागडोर नरेंद्र मोदी जैसे सशक्त नेता के पास है. वे सव्रेसर्वा हैं और उनकी रणनीति कुरुक्षेत्र में कृष्ण वाली है जो सबको पराजित करते चले गए. नरेंद्र मोदी को न कोई रोकने वाला और न टोकने वाला है. उनका अंदाज ऐसा है कि किसी में दम है तो आकर रोक ले हमें. कभी इसी तरह इंदिरा गांधी ने पराक्रम किया था और विपक्ष को तितर-बितर कर दिया था. उस वक्त भी ‘वन वर्सेज ऑल’ था और आज भी वही हालत है.
नरेंद्र मोदी, RSS एक साथ रणनीति बनाकर कर रहे हैं काम
नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी एक साथ रणनीति बनाकर काम कर रहे हैं. पूरे देश के भगवाकरण का मानो दोनों ने संकल्प ले लिया है. मोहन भागवत ने संघ की नीतियों व वैचारिक निष्ठा को छेड़े बगैर संघ को अत्याधुनिक बनाया है. इससे संघ की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है. एक समय था जब अखबार वाले दबी आवाज में संघ की बात करते थे. सरसंघचालक का सालाना उद्बोधन कहीं सिंगल कॉलम में छपता था. आज वो लीड होती है और टीवी पर उद्बोधन का लाइव कवरेज होने लगा है.
वक्त के अनुरूप निर्णय लेने में संघ कभी हिचकता नहीं है. नरेंद्र मोदी के दमदार नेतृत्व ने सोने पर सुहागा वाली कहावत को चरितार्थ किया है. उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उन जैसे सभी बुजुर्ग नेताओं से कहा कि आप हमारे आदर के पात्र हैं लेकिन नई टीम को आगे लाना है. उन्होंने बेमुरव्वत निर्णय लिया, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और जे.पी. नड्डा जैसे नेताओं को अध्यक्ष बनाया और उनके नेतृत्व को विकसित किया.
संघ की विचारधारा से आप या हम असहमत हो सकते हैं लेकिन सच यही है कि संघ जैसा दूसरा कोई संगठन नहीं है. संघ ही भाजपा के विचार और आचार का प्रशिक्षण स्थल है. संघ बड़ी गंभीरता से लंबी और पुख्ता योजनाएं बनाता है. उनका नेटवर्क न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया में काम कर रहा है. कुछ साल पहले मैं स्विट्जरलैंड में अपने एक दोस्त के यहां बैठा था. उसी वक्त मेरे दोस्त को एक फोन आया कि ‘लेक लुगानों’ में आरएसएस का बहुत बड़ा कैंप हो रहा है.
अब भाजपा का टारगेट पश्चिम बंगाल
आप भी आइए. मैं आश्चर्यचकित था कि संघ यहां भी? मेरे दोस्त ने बताया कि यहां तो संघ के कार्यक्रम लगातार चलते ही रहते हैं. उनके प्रचारक मिलते रहते हैं. यही बात मुङो लंदन, यूरोप और अमेरिका में भी नजर आई.
अब भारत में ही देखिए, क्या किसी ने सोचा था कि पूवरेत्तर के राज्यों में भी संघ अपनी पैठ बनाएगा और भाजपा वहां सत्ता में होगी. आज पूवरेत्तर के सभी राज्यों में भाजपा सत्ता में है या सत्ता में शामिल है. अब भाजपा का टारगेट पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्य हैं. केरल और पुडुचेरी में भी संघ धीरे-धीरे अपनी पैठ बना रहा है.
वक्त की हकीकत यही है कि भाजपा को रोकने वाला इस वक्त कोई नजर नहीं आ रहा है. कांग्रेस अपने आप में उलझी हुई है. राजस्थान या पंजाब में उसकी सरकार है तो वह कांग्रेस के कारण नहीं बल्कि अशोक गहलोत और अमरिंदर सिंह जैसे क्षत्रपों की निजी शक्ति के कारण है. मध्यप्रदेश में यदि कमलनाथ की बात मानते और फ्री हैंड देते तथा ज्योतिरादित्य का हस्तक्षेप नहीं रखते तो निश्चय ही वहां आज कांग्रेस की सरकार होती. लेकिन कांग्रेस वाले तो अपनों को ही निपटाने में लगे रहते हैं. शरद पवार ने कहा है कि राहुल गांधी में निरंतरता नहीं है. उन्होंने यह भी कहा है कि हम क्षेत्रीय पार्टी हैं लेकिन लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को जिंदा रखने के लिए मिलकर लड़ेंगे. कांग्रेस को सशक्त विपक्ष के गठन की जिम्मेदारी उठानी चाहिए क्योंकि वही एकमात्र पार्टी है जिसकी उपस्थिति पूरे देश में है. कांग्रेस ही देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बचा सकती है लेकिन इसके लिए कांग्रेस को बिल्कुल नए सिरे से शुरुआत करनी होगी और खुद को खड़ा करना होगा वरना..!
राहुल गांधी के हाथ में बागडोर सौंपने का निर्णय
ऐसा कहा जाता है कि कठिनाइयों के बावजूद कांग्रेस संगठन के चुनाव एकमत से करके राहुल गांधी के हाथ में संगठन की बागडोर सौंपने का निर्णय कांग्रेस ने कर लिया है. आलम ये है कि नेतृत्व के अभाव में कांग्रेस वाले निराश होकर भाजपा में जाने लग गए हैं. कई लोग चले भी गए हैं. कांग्रेस कब जागेगी और कब मैदान में उतरेगी? देश की सर्वसामान्य जनता कांग्रेस की ओर देख रही है कि सेक्युलर ताने-बाने को बचाओ.
इधर नरेंद्र मोदी ने सबका साथ सबका विकास का नारा दिया हुआ है. यह बात और है कि ‘उस विचारधारा’ से जुड़े लोग इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं. बल्कि उनमें कई बार सांप्रदायिकता नजर आती है. ध्यान रखिए कि इस देश का ताना-बाना धर्मनिरपेक्षता पर टिका है लेकिन इसे धक्का लग रहा है.
कितनी बड़ी विडंबना है कि कुछ लोग किसान आंदोलन को खालिस्तान आंदोलन कह रहे हैं? दुर्भाग्य है कि स्वस्थ विचार कहीं ओझल होते जा रहे हैं. दुनिया का इतिहास कहता है कि जिन देशों में भी विचार छिन्न-भिन्न हुए हैं और सत्ता किसी एक पार्टी के हाथ में सिमटी है तो लोकतंत्र जख्मी हुआ है. स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विपक्ष सशक्त होना ही चाहिए. यही लोकतंत्र की आत्मा है.
बहरहाल भाजपा के अश्वमेध का घोड़ा बिंदास घूम रहा है..! उसे कौन रोकेगा?