विजय दर्डा का ब्लॉग: कांग्रेसियों की निडरता पर सवाल क्यों..?

By विजय दर्डा | Published: July 19, 2021 07:47 AM2021-07-19T07:47:56+5:302021-07-19T07:50:38+5:30

राहुल गांधी कह रहे हैं कि जो डरे हुए हैं वे पार्टी से बाहर चले जाएं, आखिर क्या है इस वक्तव्य का निहितार्थ?

Vijay Darda blog Why question on fearlessness of Congress leaders | विजय दर्डा का ब्लॉग: कांग्रेसियों की निडरता पर सवाल क्यों..?

कांग्रेस को अपना रवैया बदलने की जरूरत! (फाइल फोटो)

राहुल गांधी के बयान को लेकर इस वक्त राजनीतिक हलकों में जबर्दस्त चर्चा हो रही है. लोग विश्लेषण कर रहे हैं कि उन्होंने यह क्यों कहा कि जो डरपोक हैं यानी बुजदिल हैं या लालची हैं वे कांग्रेस छोड़कर चले जाएं. जो हिम्मती हैं वो पार्टी में रहें. राहुल गांधी का यह बयान बिल्कुल स्पष्ट है और यह उन 23 नेताओं के लिए है जिन्होंने पार्टी के भीतर अपना सुर बुलंद किया है. राजनीतिक भाषा में बगावती तेवर दिखाए हैं.

ऐसे नेताओं को बगावती कह लें या कुछ और लेकिन कांग्रेस में इस तरह की आवाज कोई पहली बार नहीं उठी है. ऐसी आवाजें पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी के जमाने से लेकर आज तक यानी सभी दौर में उठती आई हैं. ऐसी आवाज कभी खुद इंदिरा जी ने भी उठाई थी! कुछ आवाजें उनके खिलाफ भी उठी थीं.  

कांग्रेस का इतिहास उठकर देखें तो फिरोज गांधी, चंद्रशेखर, मोहन धारिया, कृष्णकांत और रामधन जैसे बहुत से लोगों ने समय-समय पर कांग्रेस के भीतर अपनी आवाज बुलंद की. तब उन्हें भी बगावती ही कहा गया था. 
जहां तक गुलाम नबी आजाद का सवाल है तो उन्होंने कोई पहली बार ऐसा नहीं किया है. उन्होंने सीताराम केसरी और नरसिंह राव के खिलाफ भी आवाज उठाई थी. कैबिनेट में रहते हुए उठाई थी. जब भी कोई आवाज उठती है तो उसके निश्चित ही कुछ कारण होते हैं और उसका समाधान भी होना चाहिए.

जहां तक ज्योतिरादित्य सिंधिया या जितिन प्रसाद के कांग्रेस से बाहर जाने का सवाल है तो यह भी कोई पहली बार नहीं हुआ है. जिन्हें कांग्रेस हाईकमान ने मुख्यमंत्री और मंत्री बनाया उन्होंने भी कांग्रेस छोड़ी. हर नेता पार्टी छोड़ने के कारणों की सफाई देता है. यदि आज सिंधिया या जितिन गए हैं तो मैं यह बिल्कुल नहीं मानता कि वे केवल सत्ता के लिए गए हैं. पार्टी के प्रति समर्पण और निष्ठा के साथ-साथ हर नेता का अपना पुरुषार्थ होता है. कोई भी व्यक्ति ज्यादा समय घुटन बर्दाश्त नहीं कर सकता. चाहे वो पार्टी हो, परिवार हो या संगठन हो, सभी जगह मुक्त विचार रखने की आजादी होनी ही चाहिए. कांग्रेस की यह परंपरा रही है. और हां, बोलने की आजादी हमारे संविधान ने भी दी है.

आपने देखा ही होगा कि यदि कुकर की सीटी बजने के बाद उसमें से भाप नहीं निकल जाए तो कुकर फट जाता है. घुटन बर्दाश्त करने की अपनी एक सीमा होती है. चाहे कोई भी पार्टी छोड़ कर जाए, यह समझने की जरूरत है कि पार्टी के प्रति लंबी निष्ठा के बावजूद आखिर वो क्यों जा रहा है? यदि कोई आवाज उठ रही है तो सोचना चाहिए कि इसकी मूल वजह क्या है? इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि कांग्रेस संगठन बदहाल है.

एक पत्रकार की हैसियत से मेरा आकलन यह है कि आज भी कांग्रेस पांसा पलटने की क्षमता रखती है. यदि भाजपा किसी से डरती है तो वो क्षेत्रीय पार्टियां नहीं बल्कि कांग्रेस है. भाजपा केवल कांग्रेस से डरती है, गांधी परिवार से डरती है. राहुल और प्रियंका से डरती है क्योंकि इन लोगों ने यदि संगठन को परवान चढ़ा दिया तो इनमें अनंत संभावनाएं और क्षमता है. इनके पास इतिहास है, नाम है, विश्वास है, त्याग और तपस्या है. और हां, राजनीति में हार-जीत चलती रहती है लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व में हम लगातार दो चुनाव हार जाते हैं तो उसका भी मूल्यांकन निर्भीकता के साथ खुले माहौल में होना चाहिए. 

मनमोहन सिंह ने राहुल गांधी को पीएम बनने का प्रस्ताव दिया था. उन्होंने खुद सोनिया गांधी के समक्ष प्रस्ताव रखा था लेकिन राहुल गांधी ने साफ ना कह दिया! यदि राहुल गांधी मंत्री, प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता बनते तो देश के सामने उनकी प्रशासनिक क्षमता और निर्माण की क्षमता आती. मगर उन्होंने यह सब स्वीकार नहीं किया इसलिए उनकी क्षमता देश के सामने नहीं आई. अब वे पार्टी की जिम्मेदारी लेने को भी तैयार नहीं हैं. भाजपा ने इन सभी मौकों का भरपूर फायदा उठाया.  

भाजपा का सारा प्रचार नेहरू गांधी परिवार के खिलाफ केंद्रित है और रणनीति भी यही होती है कि जो शक्तिशाली हो, जो धैर्यशाली हो और जो नेतृत्वकर्ता हो, उसे कमजोर करो. धराशायी कर दो तो फौज खुद ही भाग जाएगी. इस तरह कांग्रेस और खासकर गांधी परिवार की छवि मलिन करने में भाजपा सफल हो गई और कांग्रेस के जो अन्य नेता थे उन्होंने भाजपा के जाल को काटने की कोई कोशिश तक नहीं की. 

यह जिम्मेदारी केवल गांधी परिवार की नहीं थी. यह पूरी कांग्रेस की जिम्मेदारी थी. यह जिम्मेदारी निभाने में कांग्रेसी पूरी तरह विफल रहे. सवाल यह है कि कांग्रेस के भीतर सुधार की आवाज बुलंद करने वाले ये जो 23 लोग हैं इनमें से किसी ने यह जिम्मेदारी क्यों नहीं उठाई? क्यों नहीं पूरी शक्ति के साथ आगे आए? 

जिस तरह से आज पूरी दुनिया पर कोरोना का हमला हुआ है उसी तरह से सोशल मीडिया के माध्यम से गांधी परिवार पर भाजपा ने जो हमला किया उसका जवाब देने का काम इन 23 लोगों ने क्यों नहीं किया? ये सभी बड़े नेता हैं. बैठकर क्यों देखते रहे? 

सवाल यह भी है कि जब राज्यसभा में राजीव गांधी पर बेबुनियाद आरोप लगाए जा रहे थे तो क्या कांग्रेसियों की जिम्मेदारी नहीं थी कि वे प्रतिवाद करते? वहां जया बच्चन को आगे आना पड़ा और उन्होंने तीव्र विरोध किया. कांग्रेसियों ने शर्मनाक चुप्पी साधे रखी.

कांग्रेस को अपना यह रवैया बदलना होगा. एक दूसरे की टांग खींचने की प्रवृत्ति बंद करनी होगी तभी भविष्य उज्‍जवल हो सकता है. कांग्रेसियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि विकल्प की शक्ति केवल कांग्रेस के पास है. उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात और पश्चिम बंगाल की बात छोड़ दीजिए जहां कांग्रेस जर्जर स्थिति में है तो बाकी सारे राज्यों में कांग्रेस मौजूद है. 

राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के पास आज करीब 30 प्रतिशत वोट हैं. यदि वह भाजपा के 10 प्रतिशत वोट काट लेने की क्षमता हासिल कर लेती है तो सत्ता मिल सकती है. यह क्षमता और किसी में नहीं है. इसीलिए भाजपा लगातार कांग्रेस और गांधी परिवार पर हमले कर रही है. कांग्रेस केवल एक उदाहरण याद रखे कि 1977 में राजनीतिक रूप से पूरी तरह बर्बाद होने के बावजूद केवल 28 महीने में इंदिरा गांधी ने पांसा पलट दिया था. आज भी
यह संभव है. केवल..!

Web Title: Vijay Darda blog Why question on fearlessness of Congress leaders

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