विजय दर्डा का ब्लॉग: उन्होंने कंगना को हिरोइन से ‘हीरो’ बना दिया
By विजय दर्डा | Published: September 13, 2020 04:26 PM2020-09-13T16:26:16+5:302020-09-13T16:26:16+5:30
जो मुंबई पुलिस और शिवसेना बॉलीवुड को माफिया के आतंक से बचाती रही हो, उसी बॉलीवुड की एक तरुण हिरोइन ने मुंबई को लेकर निंदनीय बयान भी दिया ओैर शिवसेना के विरोध का सिंबल भी बन गई. यदि उसकी उपेक्षा कर देते तो वह सहानुभूति की लहर पर इस कदर सवार नहीं होती.
कंगना राणावत के मामले ने जिस तरह से तूल पकड़ा है, उससे मैं अचंभित हूं. क्या वे इतनी बड़ी सामाजिक या राजनीतिक सेलिब्रिटी हैं कि उनके एक गैरजिम्मेदाराना बयान पर तूफान मच जाए? मुंबई पुलिस और पीओके संबंधी उनके बयान को लेकर मेरी नाराजगी है लेकिन मैं यह कतई जरूरी नहीं समझता कि उन्हें इतना तूल दिया जाए! वो फिल्मी हिरोइन हैं लेकिन राजनीति ने उन्हें ‘हीरो’ बना दिया.
बालासाहब के सृजन स्थल ‘मातोश्री’ के प्रति हमेशा ही आदर और सम्मान का भाव पूरी मुंबई में रहा है. एक तरह का डर भी रहा है लेकिन उस डर को और कंगना की भाषा में कहें तो उस घमंड को कंगना ने चकनाचूर कर दिया. मुझे साउथ की फिल्म इंडस्ट्री की याद आ गई जहां एमजीआर, एनटीआर, करुणानिधि और जयललिता अपनी फिल्मों के कैरेक्टर से राजनीति के हीरो बने. कंगना की खासियत है कि बॉलीवुड के लोगों के स्टारडम के आगे वे झुकी नहीं. बेबाकी से लड़ती रही हैं. उन्होंने कभी समझौता नहीं किया. उनके अंदर निर्भीकता और जोश है. जहां से रोजी-रोटी मिलती है, जहां से प्रतिष्ठा और सम्मान मिलता है, वहां के लोगों से संघर्ष की हिम्मत उन्होंने दिखाई है. पुरुष प्रधान मुंबई फिल्म उद्योग से लड़ती रही हैं. बिना हिचक के कि कल मेरा क्या होगा?
जरा भी टस से मस होने को तैयार नहीं कंगना
बॉलीवुड में मैंने बड़े-बड़े हीरो और हिरोइन को समझौता करते देखा है लेकिन कंगना जरा भी टस से मस होने को तैयार नहीं हैं और अपने टर्म्स के ऊपर काम लेती हैं और करती हैं. उन्होंने लोकमत पत्र समूह की वार्षिक पत्रिका दीपोत्सव से चर्चा करते हुए एक बार कहा था कि यदि मेरे भीतर प्रतिभा है तो मुझे काम मिलेगा. मुझे ऐसा लगता है कि हिमालय की ऐसी कन्या से उलझना योग्य नहीं था. शरद पवार ने मुख्यमंत्री को सलाह भी दी कि इसे अनदेखा करो मगर तब तक काफी पानी बह गया था.
कंगना को चुनौती दी गई कि मुंबई आकर दिखा! फिर जो शब्दों की फुलझड़ियां झड़ीं, कोरोना काल में लोगों का मनोरंजन हो गया. कंगना ने मुंबई जल्दी लौटने का निर्णय लिया और हुंकार भरी कि मैं पहले आ रही हूं. जिस तरह से वह मुंबई पहुंचीं और एयरपोर्ट से बाहर निकलीं, ऐसा लगा कि मैं किसी फिल्म का सीन देख रहा हूं. कमांडो से घिरी हुई महारानी जैसी चाल में वे आगे बढ़ रही थीं. गाड़ी में बैठने का जो अंदाज था वह बता रहा था कि वो न किसी तनाव में हैं और न ही कोई डर है उन्हें. घर पहुंचीं तो ऑफिस का कुछ भाग टूटा हुआ देखने को मिला. फिर वह गरजती हैं और कश्मीरी पंडितों का मुद्दा उछाल देती हैं और शिवसेना के विरोध के सिंबल के रूप में खुद को स्थापित कर लेती हैं
शिवसेना ने कंगना के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त की
दरअसल, शिवसेना ने उनके बयान पर जिस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की, उसकी कोई जरूरत ही नहीं थी. चार दिन बाद किसी को याद भी नहीं रहता कि कंगना राणावत ने कहा क्या था. राजनीति में और खासकर जब कोई पार्टी सत्ता में होती है तो उसे बहुत सोच समझकर कदम उठाना चाहिए. विश्लेषण करना चाहिए कि किसी क्रिया की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है. कई बातों को दरकिनार करना होता है. इसी में समझदारी होती है लेकिन जिस तरह की प्रतिक्रिया हुई उसने कंगना को सहानुभूति की लहर पर सवार कर दिया.
सोशल मीडिया पर लोग सरकार से यह सवाल पूछ रहे हैं कि 1992 में जो चार हजार अवैध इमारतों की सूची बनी थी उनका क्या हुआ? क्या सबको तोड़ दिया गया? इसके अलावा हजारों की संख्या में जो छोटे-मोटे अवैध निर्माण हैं, क्या उन्हें भी तोड़ा है? सोशल मीडिया ऐसी प्रतिक्रियाओं से भरा है कि कंगना के खिलाफ सख्ती इसलिए की गई क्योंकि वे सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं.
भाजपा ने की PoK को लेकर कंगना के बयान की आलोचना
राजनीति में यदि घटनाओं पर कोई नजर न रखे तो वह नेता ही क्या? बस मौका मिला गया! दिल्ली कूद गई और उन्होंने कंगना की सुरक्षा के लिए अपने वाय श्रेणी की सुरक्षा वाले कमांडो भेज दिए. मुंबइ और दिल्ली की सुप्त लड़ाई तो चल ही रही थी. ये एक नया मौका मिल गया. और कंगना की फिल्म हिट हो गई. राज्यपाल को मौका मिल गया सरकार की क्लास लेने का. अमूमन ऐसा होता नहीं है कि किसी अवैध निर्माण को तोड़े जाने के मामले में राज्यपाल जैसी प्रमुख हस्ती हस्तक्षेप करे. भाजपा ने पीओके को लेकर कंगना के बयान की तो आलोचना की है लेकिन उनके दफ्तर को तोड़े जाने को बदले की कार्रवाई ठहराया है. इधर अयोध्या के साधु-संतों ने कंगना के समर्थन में कमर कस ली है. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि और हनुमान गढ़ी के महंत राजू दास ने चेतावनी दी है कि उद्धव ठाकरे अयोध्या आए तो विरोध का सामना करना पड़ेगा.
वास्तव में कंगना प्रकरण को तूल दिए जाने का कोई मतलब नहीं था. शिवसेना ने तो हमेशा ही मुंबई फिल्म इंडस्ट्री का साथ दिया है और यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि हमेशा रक्षा की है. दाऊद, छोटा राजन और रवि पुजारी जैसे अपराधियों ने जब पूरी फिल्म इंडस्ट्री को आतंकित कर रखा था तब मुंबई पुलिस और बालासाहब ठाकरे रक्षक की मुद्रा में खड़े रहे. अपराधियों के आतंक पर अंकुश लगाने में कभी उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी. मातोश्री सबके लिए श्रद्धा का स्थान बन गया. बालासाहब ने नए और पुराने सभी कलाकारों का साथ दिया. सबके साथ उनके गहरे और निजी संबंध भी रहे. उद्धव ठाकरे के संबंध भी अच्छे ही रहे हैं. फिर ऐसा क्या हो गया कि शिवसेना की सरकार ने अपने विरोध में खड़ी एक हिरोइन को ‘हीरो’ बना दिया!