विजय दर्डा का ब्लॉग: नेता और पुलिस यदि ठान लें तो अपराध नहीं..!
By विजय दर्डा | Published: October 18, 2020 02:25 PM2020-10-18T14:25:02+5:302020-10-18T16:53:50+5:30
ऑर्गेनाइज्ड क्राइम ने एक पीढ़ी को खोखलाकर दिया है. जुआ, सट्टा से लेकर मटका और ड्रग्स के धंधे हो रहे हैं. क्या यह सब पुलिस और राजनीति के आशीर्वाद के बिना संभव है? अब समय आ गया है कि हम अपनी पुलिस को स्मार्ट और दबंग बनाएं और अपराध की दुनिया को नेस्तनाबूद कर दें.
इन दिनों आईपीएल का मैच चल रहा है. लोगों की नजर बाउंड्री पार जाने वाले चौकों और छक्कों की तरफ है लेकिन मेरी नजर इस बात पर थी कि इस सीजन में आईपीएल पर कितने हजार करोड़ का सट्टा लगा होगा. तभी नागपुर में धमाका हुआ. पुलिस आयुक्त अमितेश कुमार ने जब बुकी और हवाला कारोबारियों पर सर्जिकल स्ट्राइक किया, नागपुर से लेकर मुंबई तक सट्टे के कारोबार में भूचाल आ गया.
पत्रकारिता के अपने शुरुआती दिनों में 1968-69 के दौरान मैंने मुंबई में क्राइम रिपोर्टिग की है. हाजी मस्तान से लेकर कई बड़े अपराधियों के ठिकानों पर भी गया हूं. मैं आज भी क्राइम की खबरों पर नजर रखता हूं. मैंने अपने राज्य के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी ऐसे जांबाज और ईमानदार अधिकारियों को नजदीक से देखा है जिन्होंने अपने कार्य से पुलिस महकमे की शान बढ़ाई है. निश्चित रूप से इस मामले में महाराष्ट्र अव्वल दर्जे का रहा है. ..आखिर कसाब को हमने पकड़ा कि नहीं!
पुलिस का पूरा कल्चर बदले बगैर व्यवस्था नहीं बदल सकती है
जांबाज पुलिस अधिकारी अपना-अपना राज्य संभाल सकते हैं लेकिन पुलिस का पूरा कल्चर बदले बगैर व्यवस्था नहीं बदल सकती है. निश्चित रूप से यह जिम्मेदारी केवल और केवल राज्य सरकारों की है. किसी राज्य के मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, डीजीपी और सीपी तय कर लें कि समाज में पनपने वाले हर तरह के क्राइम को खत्म करना है, चाहे वो जमीन के अंदर हो या फिर बाहर, वो पानी में हो या हवा में हो तो अपराध हो ही नहीं! क्या उन्हें यह पता नहीं होता है कि हथियारों या सोने की तस्करी कहां से हो रही है? डांस बार कहां चल रहा है, ड्रग्स कहां बिक रहा है?
जरूरत केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की है. राजनेता और पुलिस मिल जाएं तो सबकुछ संभव है लेकिन जब तक राजनीति में पैसे का दुरुपयोग होता रहेगा तथा पोस्टिंग और ट्रांसफर में पारदर्शिता नहीं होगी तब तक गांव से लेकर महानगरों तक बढ़ते हुए और विकराल रूप धारण किए हुए क्राइम को काबू में नहीं किया जा सकता.
पुलिस को मानसिक, सामाजिक तथा आर्थिक स्तर मजबूत किया जाए-
जब तक पुलिस का आप दर्जा नहीं बढ़ाएंगे, मानसिक, सामाजिक तथा आर्थिक स्तर नहीं सुधारेंगे तब तक कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे बेहतर काम करें? क्या पुलिस इंसान नहीं है?
पुलिस से 18-18 घंटे तक काम लिया जा रहा है. उनके लिए दिवाली, क्रिसमस और ईद नहीं है. घर होते हुए भी बेघर हैं. ऐसे में वे अपना दायित्व कैसे निभा पाएंगे? और हां, पता नहीं क्या सच है और क्या झूठ है लेकिन जब लोग कहते हैं कि मुंबई में कई अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने हजारों करोड़ की माया एकत्रित की है तो लगता है कि इस तरह की चर्चा होती क्यों है?
जब मैं विदेशों की पुलिस की तुलना करता हूं तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि तुलना करना ही फिजूल है. क्योंकि उन्हें जिस प्रकार की फिजिकल ट्रेनिंग मिलती है, आधुनिक शस्त्र दिए जाते हैं और रुआबदार यूनिफॉर्म दिया जाता है और घर के मामलों से निश्चिंत रहते हैं, वैसा हमारे यहां तो सपने में भी नहीं सोच सकते! वे राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर रहते हैं.
हांगकांग या अमेरिका की पुलिस को मजाल है कि कोई उन्हें पैसे देने की बात भी सोच ले
मैं बताना चाहूंगा कि लंदन की ‘बॉबी’ हो या इजराइल, यूरोप, सिंगापुर, दुबई, हांगकांग या अमेरिका की पुलिस हो, मजाल है कि कोई उन्हें पैसे देने की बात भी सोच ले! ऐसा करने वालों को सख्त जेल हो जाती है. लंदन की पुसिल बॉबी को इतना प्रतिष्ठित बनाया गया है कि पर्यटक उनके साथ फोटो खिंचवाने को लालायित रहते हैं. सोवेनियर शॉप में उनके पुतले भी मिलते हैं.
मैं आपको सिंगापुर का एक किस्सा सुनाता हूं. मेरे एक मित्र मुङो लेने के लिए एयरपोर्ट आए थे. फ्लाइट में विलंब था तो उन्होंने एयरपोर्ट पर एक ग्लास बीयर पी ली. यह रात का समय था. एयरपोर्ट से मुङो लेकर वे जब निकले तो एक चौराहे पर गाड़ी रुकी और कांस्टेबल ने दूर से ही डंडा लगाया और कहा कि आपने मद्यपान किया है. गाड़ी बाजू में खड़ी करिए. मेरे मित्र ने लाख समझाने की कोशिश की कि केवल एक ग्लास बीयर पीया है, पर वह कांस्टेबल नहीं माना!
इसी बीच कार से एक महिला पुलिस अधिकारी उतरी और हमारे पास आई. उसने तुरंत हमको पहचान लिया, इसके बावजूद उसने हमारा चालान कटवाया और हमसे कहा कि आप मेरे वाहन में बैठिए. वह महिला अधिकारी और कोई नहीं, मेरे मित्र के बड़े भाई की बेटी थी. उसने मुझे होटल छोड़ा. रास्ते में मैंने उनसे पूछा कि आपने हमको छोड़ क्यों नहीं दिया? उसने कहा कि नियम सबके लिए एक है. मैं छोड़ देती तो मेरी नौकरी जाती और ये जिंदगी भर कार नहीं चला पाते. अब केवल उन्हें कोर्ट में पेश किया जाएगा और एक साल के लिए लाइसेंस सस्पेंड हो जाएगा.
हमारे हर राज्य की पुलिस को स्मार्ट और दबंग होनी चाहिए
मैं हमेशा सोचता हूं कि हमारे यहां इस तरह की व्यवस्था राजनेता क्यों नहीं बनाते? कभी-कभार ही ऐसा रुतबा दिखता है. उदाहरण के लिए जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आए थे तो उनके सुरक्षाकर्मियों ने प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया तो मुंबई पुलिस के एक अधिकारी ने उनकी गाड़ी रुकवा दी थी. लेकिन इस तरह की बात हमारे यहां अपवाद है जबकि जरूरत यह है कि हमारे हर राज्य की पुलिस इतनी स्मार्ट और दबंग होनी चाहिए.
इसके लिए जरूरी है कि सरकार जरूरी कदम उठाए. मानवाधिकार संगठन और न्यायिक व्यस्था इनकी मदद करे. ..और इसके साथ ही सबसे जरूरी है कि राज्यों के बीच पुख्ता समन्वय हो क्योंकि अपराधियों का तंत्र पूरे देश में फैला हुआ है. खासकर यूपी, बिहार, राजस्थान, केरल और पंजाब में संगठित अपराध का तंत्र गहरे पैठ जमा चुका है. उसे खत्म करने के लिए सख्त समन्वय बहुत जरूरी है.
ऑर्गेनाइज्ड क्राइम ने एक पीढ़ी को खोखलाकर दिया है. जुआ, सट्टा से लेकर मटका और ड्रग्स के धंधे हो रहे हैं. क्या यह सब पुलिस और राजनीति के आशीर्वाद के बिना संभव है? अब समय आ गया है कि हम अपनी पुलिस को स्मार्ट और दबंग बनाएं और अपराध की दुनिया को नेस्तनाबूद कर दें.