विजय दर्डा का ब्लॉग: चुनाव में कोई भी हारे, मगर देश जीतना चाहिए
By विजय दर्डा | Published: April 8, 2019 06:02 AM2019-04-08T06:02:30+5:302019-04-08T06:02:30+5:30
बहुत सारी विडंबनाओं के बावजूद भारत में गणतंत्र/लोकतंत्र सफल रहा है. इसकी सफलता के पीछे भारत के हर नागरिक का बड़ा योगदान है. यह परंपरा बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है.
भारतीय लोकतंत्र के महापर्व के इस सत्रहवें अनुष्ठान का पहला अभिषेक बस तीन दिन दूर है. आप तय करेंगे कि इस देश की सत्ता किसके हाथों में हो. आपका एक-एक मत महत्वपूर्ण है. आपका वोट न केवल प्रत्याशियों और पार्टियों की जीत-हार तय करता है बल्कि यह सुनिश्चित करने में सहायक भी होता है कि देश को आप किस राह पर ले जाना चाहते हैं. इसलिए मेरा विनम्र आग्रह है कि मतदान के लिए जरूर जाइए.
बहुत सोच समझकर वोट दीजिए. मैं तो बस इतना ही जिक्र करना चाहूंगा कि जाति और धर्म के आधार पर कोई देश आगे नहीं बढ़ता. आगे बढ़ता है तो अपने कौशल से, अपनी रणनीति से और अपने लोगों की ऊर्जा से!
यह जरूर ध्यान रखिए कि वोट देने की यह ताकत हमने बड़ी मुश्किल से प्राप्त की है. सदियों की गुलामी से उबर कर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में स्थापित होना कोई आसान काम नहीं था. हम जब आजाद हुए थे तो करीब 85 प्रतिशत लोग निरक्षर हुआ करते थे. ऐसे में गणतंत्र सफल कैसे होता? मगर हमने वह कर दिखाया जिसकी उम्मीद दुनिया ने नहीं की थी.
बहुत सारी विडंबनाओं के बावजूद भारत में गणतंत्र/लोकतंत्र सफल रहा है. इसकी सफलता के पीछे भारत के हर नागरिक का बड़ा योगदान है. यह परंपरा बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है.
तो चलिए भारत में लोकतंत्र के महापर्व के पहले अनुष्ठान के बारे में बात करते हैं जहां से हमने अपनी गणतांत्रिक यात्र शुरू की थी. आजादी के पहले हालांकि अंतरिम चुनाव हुए लेकिन वे अंग्रेजों के अधीन वाले 11 प्रांतों तक सीमित थे. राजाओं के अधीन वाले इलाके चुनाव से वंचित ही रहे. जब हमें 1947 में आजादी मिली तो हमने गणतंत्र/लोकतंत्र के रास्ते पर चलना तय किया. 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ. देश गणतंत्र बन गया.
इसके ठीक एक दिन पहले यानी 25 जनवरी 1950 को चुनाव आयोग का गठन हुआ और आईसीएस अधिकारी सुकुमार सेन को पहला चुनाव आयुक्त बनाया गया. वे बड़े गणितज्ञ भी थे. उनके सामने बड़ी समस्या थी कि संपूर्ण देश में चुनाव कैसे हों? किसी के पास भी कोई अनुभव था ही नहीं! लेकिन सेन और उनकी टीम ने गजब का हौसला दिखाया.
पहला आम चुनाव 25 अक्तूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक यानी करीब चार महीने चला. लोकसभा की 489 सीटों तथा विधानसभाओं की 3283 सीटों के लिए चुनाव हुए. 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 मतदाता रजिस्टर्ड थे जिनमें से 10 करोड़ 59 लाख मतदाताओं ने वोट डाले. दुनिया आश्चर्यचकित थी!
सेन और उनकी टीम ने जिस तरह से चुनाव कराए वह वाकई आश्चर्यचकित करने वाला था. निरक्षरता इतनी भीषण थी कि लोग प्रत्याशियों के नाम तक नहीं पढ़ सकते थे. तो सेन ने अलग-अलग चुनाव चिह्न् के लिए अलग-अलग बैलेट बॉक्स का उपयोग किया. खासतौर पर उत्तर भारत में ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत बड़ी थी जो अपना नाम नहीं बता कर ‘अमुक की पत्नी’ और ‘अमुक की मां’ के रूप में अपनी पहचान बताती थीं. सेन ने ऐसी 28 लाख महिलाओं के नाम पहले चुनाव में वोटर लिस्ट से हटाने का निर्णय लिया ताकि गलत वोटिंग न हो. दूसरे चुनाव में ऐसी महिलाओं को शिक्षित किया गया कि वे अपना नाम जरूर बताएं. लोगों को चुनाव के संबंध में शिक्षित करने के लिए चुनाव आयोग ने रेडियो और फिल्मों का सहारा लिया.
पहले चुनाव में संसद की 489 में से 364 सीटें कांग्रेस ने जीतीं. उधर राज्यों की विधानसभाओं की कुल 3283 सीटों में से कांग्रेस ने 2247 पर जीत हासिल की. दूसरे नंबर पर थी सीपीआई जिसे लोकसभा में केवल 16 सीटें ही मिलीं. तब रेडियो मास्को ने सीपीआई की खूब मदद की थी लेकिन जनता ने जवाहरलाल नेहरू को पसंद किया. नेहरूजी उस वक्त सांप्रदायिकता पर तेज और पुख्ता हमला कर रहे थे.
मैंने पहले आम चुनाव की चर्चा इसलिए की ताकि हमारे युवा समझ सकें कि हमारी लोकतांत्रिक यात्र कितनी कठिनाई में शुरू हुई थी. सौभाग्य से देश में निरक्षरता दूर हुई है. बैलेट बॉक्स से हम इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन तक आ पहुंचे हैं. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि हम में से बहुत से लोग आज भी जाति, धर्म, संप्रदाय और विचारधारा से इस कदर प्रभावित हैं कि वोट डालते समय उसी में उलझ कर रह जाते हैं.
मेरा आग्रह है कि वोट डालने से पहले यह जरूर सोचिए कि कौन सी पार्टी देश को मजबूत बनाएगी, सामाजिक एकता सुनिश्चित करेगी और दुनिया में भारत की साख बढ़ाएगी. पार्टियों के घोषणापत्र को भी ठीक से पढ़िए कि देश को बेहतर दिशा कौन दे सकता है. और हां, हम सबके लिए महत्वपूर्ण है देश. राजनीतिक दलों का नंबर देश के बाद ही आता है. इस चुनाव में कोई भी पार्टी हारे या जीते, मुद्दे की बात है कि देश जीतना चाहिए! तो ध्यान रखिए कि वोट डालने जरूर जाना है.