विजय दर्डा का ब्लॉग: खुशियों को पास बुलाएं तो बनेगी एंटीबॉडीज

By विजय दर्डा | Published: May 10, 2021 08:31 AM2021-05-10T08:31:11+5:302021-05-10T08:31:11+5:30

कोरोना का संकट गहरा है लेकिन ये भी विश्वास सभी को रखना होगा कि ये अंधेरा जल्द दूर हो जाएगा. इंसान एक बार फिर अंधेरे को मात देने में कामयाब होगा.

Vijay Darda blog: Amid Corona crisis get positive energy and call for happiness | विजय दर्डा का ब्लॉग: खुशियों को पास बुलाएं तो बनेगी एंटीबॉडीज

कोरोना संकट के दौरे में खुशी के पल भी तलाशना जरूरी (फोटो-पिक्साबे)

‘‘कोरोना..कोरोना..कोरोना..!

यह सुन-सुन कर मेरा सिर भारी हो गया है. मैं डर गया हूं! मुझे मौत नजर आ रही है और मैं अचानक पीएम को, सीएम को और डीएम को कोसने लगता हूं. मुझे वैक्सीन नहीं मिल रही है.. मुझे दवाइयां नहीं मिल रही हैं..मेरे रिश्तेदार को ऑक्सीजन वाला बेड नहीं मिल रहा है..मेरी बीवी को आईसीयू में जगह नहीं मिल रही है.. मेरा भाई दम तोड़ रहा है..मेरा साथी मुझे छोड़ गया..मेरा धंधा चौपट हो गया है..ये सरकार निकम्मी है..नाकारा है..!’’

फिर क्या..?
देखिए हुजूर, सरकार आपकी है. विश्वास कीजिए. ..और विश्वास नहीं करते आप तो क्या होगा? निगेटिव केमिकल बनते जाएंगे और डर बढ़ता जाएगा. जो हो रहा है वह भी नहीं हो पाएगा. जी हां, हर व्यक्ति अभी जान बचाने में लगा हुआ है. मुझ पर संकट न आ जाए इस डर से मानसिक रूप से जूझ रहा है. 

छोड़िए ये सब चिंता. जो संभव है वह सरकार करेगी लेकिन कुछ हमें भी करना पड़ेगा. हमें यह करना पड़ेगा कि जीवन जीने के लिए हमारे बीच जो शक्तियां हैं उन्हें खोजना होगा. दिल और दिमाग को शांत करना होगा. सुकून के पल तलाशने होंगे. दिल और दिमाग सुकून में रहेगा तो शरीर भी स्वस्थ होगा.

वैज्ञानिक कहते हैं कि जब आप तनाव में होते हैं, दिमागी रूप से परेशान होते हैं तो इसका सीधा असर शरीर के मैकेनिज्म पर पड़ता है और शरीर कमजोर होता है. इस दृष्टि से देखें तो अभी सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की है कि हम छोटी-छोटी खुशियों को तलाशें जो हमें भरपूर सुकून दे सकें. 

इस तरह हम अपने शरीर को प्राकृतिक रूप से एंटीबॉडीज तैयार करने के लिए अनुकूल माहौल दे सकते हैं. मुझे फिल्म आनंद की याद आ रही है. राजेश खन्ना को पता है कि वे मरने वाले हैं लेकिन वे डॉक्टर को कहते हैं कि जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं बाबू मोशाय! जब तक जिंदा हूं, मरा नहीं! 

वही राजेश खन्ना फिल्म बावर्ची में कहते हैं कि किसी बड़ी खुशी के इंतजार में हम छोटी-छोटी खुशियों के मौके खो देते हैं. कहने का आशय यह है कि मौत के डर से रोज-रोज क्या मरना?

नि:संदेह जब परिस्थितियां विकट हैं तो छोटी-छोटी खुशियां आपको बहुत सुकून देंगी. अभी दो दिन पहले ही मैंने गुजरात में अपने एक पुराने मित्र को फोन लगाया. पहले तो उसने ठेठ देशी भाषा में चार शब्द जड़ दिए. ऐसी भाषा का उपयोग कोई गहरा दोस्त ही कर सकता है. किसी और के साथ ऐसी भाषा में आप बात कर ही नहीं सकते! उसके बाद हम दोनों इतना हंसे, इतना खिलखिलाए कि पूरा मन और तनबदन खिल उठा. दिल और दिमाग प्रफुल्लित हो गया. आज लोग घरों में बंद हैं लेकिन किसी दोस्त को आप फोन लगा कर ठहाके तो लगा ही सकते हैं!

चलिए, आपको कुछ उदाहरण देता हूं. जब आप तनाव से लिपटे हुए घर आते हो और आपकी बीवी आप से पूछती है कि क्या हुआ? आप सबकुछ बता देते हैं और तब बीवी कहती है कि चिंता क्यों कर रहे हो? मैं हूं ना! तो आप एकदम तनाव मुक्त हो जाते हैं. ..अचानक आपके बच्चे आपसे लिपट जाते हैं तो आप दुनिया की सारी चिंताएं भूल जाते हैं. गाना न जानते हुए भी अचानक गुनगुना उठते हैं. भले ही नृत्य की भाषा न आती हो लेकिन आप थिरकने लगते हैं तो न जाने कितनी खुशियां आपके भीतर अचानक फैल जाती हैं. 

यही तो वो माहौल है जो आपके दिमाग को तंदुरुस्त बनाता है और जाहिर सी बात है कि इससे शरीर में भी तंदुरुस्ती पैदा होती है.

और हां, अपनी जीवनशैली पर जरूर ध्यान दीजिए. मैं तो इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि विज्ञान के विकास के साथ-साथ मनुष्य अनेक जटिल समस्याओं में फंसता जाएगा और दुनिया पर अपनी हुकूमत जमाने के लिए न जाने वो क्या-क्या खेल खेलेगा! पर्यावरण के असंतुलन की भूमिका बहुत बड़ी होगी. पर्यावरण के असंतुलन के साथ जीवन भी असंतुलित हो जाएगा. 

विज्ञान द्वारा निर्मित कचरे से लेकर रोज उत्सर्जित  होने वाला कचरा, वनों का विनाश, प्रदूषित पानी और विषाक्त वायु हमारे जीवन पर, हमारे परिवार पर, हमारे बच्चों पर और प्रकृति के सभी जीवों, प्राणियों पर प्रहार करेंगे. जिनकी मानसिक स्थिति अच्छी होगी या जिनकी शारीरिक क्षमता अच्छी होगी वे ही इन समस्याओं से लड़ पाएंगे. 

निश्चय ही मन और तन को तंदुरुस्त रखने में प्राणायाम, अध्यात्म, प्रसन्नता, मित्र और घर का वातावरण अहम भूमिका अदा करने वाले हैं. और खानपान की क्या बात  करूं? भूल जाइए कि आपको ताजी और विषमुक्त सब्जियां, अनाज और फल मिलेंगे. मनुष्य की लालसा तथा मनुष्य का मनुष्य के प्रति व्यवहार ही मनुष्य को बर्बाद करने में लगा है. 

मिलावट इंसान ही तो कर रहा है. नकली दवाइयां भी तो इंसान ही बना रहा है. मैं कहना चाहता हूं कि यदि आप किसी की मजबूरी का फायदा उठा नोट कमा रहे हो, चाहे पेशे से कोई भी हो तो यकीन जानिए कि खुशी लेने के लिए ही नहीं बचोगे तो खुशियां कहां से लाओगे और पैसे का क्या करोगे? 

वास्तव में आज पूरा वातावरण ही इंसानियत का दुश्मन बन बैठा है. कोई ऐसा घर नहीं जो दवाइयों से मुक्त हो. ये दवाइयां केमिकल ही तो हैं!

..तो अब आप खुद को संभालिए. यदि निराशा कहीं घेर रही हो तो उसे झटक दीजिए और सोचिए कि हर अंधेरे के बाद उजाले की किरण जरूर दस्तक देती है. कुछ अंधेरे हम सबने देखे हैं और कुछ घनघोर अंधेरे का सामना हमारे पूर्वजों ने भी किया था. 

उस वक्त इंसान इतना विज्ञान संपन्न नहीं था फिर भी अंधेरे को मात देने में हमारे पूर्वज सफल रहे. हमारे पास तो आज विज्ञान का बहुत बड़ा सहारा है. हम इस अंधेरे को जरूर चीरेंगे. मेरे जेहन में कुछ पंक्तियां उभर रही हैं..

क्यों कोसें अंधेरे को
कुछ फायदा भी तो नहीं!
चलो ढूंढ़ते हैं मिलकर
सूरज की मुट्ठी भर रौशनी!!

Web Title: Vijay Darda blog: Amid Corona crisis get positive energy and call for happiness

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