आम धारणा यह है कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ 16 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आमंत्रण पर प्रधानमंत्री कार्यालय में गए थे. यह बात पूरी तरह से गलत है. वास्तव में धनखड़ ने ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात का समय मांगा था.
चूंकि वह निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ राज्यपालों के पारंपरिक रात्रिभोज में शामिल होने के लिए नई दिल्ली पहुंच रहे थे, इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ बैठक भी करनी चाही. वह, दोनों नेताओं से मिलकर उन्हें पश्चिम बंगाल की मौजूदा स्थिति से अवगत कराना चाहते थे.
धनखड़ और मोदी की मुलाकात के दौरान चर्चा पश्चिम बंगाल तक ही सीमित थी. धनखड़ को न तो शाह ने और न ही मोदी ने कोई संकेत दिया कि शाम को उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए चुना जाएगा. हालांकि, प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा ट्विटर पर पीएम के साथ उनकी मुलाकात की तस्वीरें पोस्ट किए जाने के तुरंत बाद ही धनखड़ का नाम सोशल मीडिया में चर्चा में आ गया था, लेकिन उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. शाम को राष्ट्रपति भवन में रात्रिभोज के दौरान धनखड़ के मोबाइल फोन पर कई मिस्ड कॉल और संदेश आए.
चूंकि यह रात्रिभोज का महत्वपूर्ण आयोजन था, इसलिए वह न तो कॉल ले सकते थे और न ही मैसेज देख सकते थे. लेकिन राष्ट्रपति भवन का एक अर्दली उनकी सीट पर आ गया और फुसफुसाया कि उनके फोन में एक संदेश है. धनखड़ ने बाद में इस लेखक से पुष्टि की कि उन्हें राष्ट्रपति भवन में रात के खाने के समय ही उनकी उम्मीदवारी के बारे में पता चला.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री प्रोटोकॉल के पक्के हैं और अंत तक चीजों को अपने तक ही सीमित रखने के लिए जाने जाते हैं. यदि उन्होंने धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद के लिए उनके नामांकन की जानकारी दे दी होती तो, भाजपा संसदीय बोर्ड की शीर्ष नेताओं की बैठक बेमानी हो जाती. भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बोर्ड को बताया कि उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए तीन नाम मिले हैं और अब बोर्ड फैसला करे. आगे की कहानी सबको मालूम है.
2024 के लिए भाजपा की महत्वाकांक्षा
नरेंद्र मोदी अगले चुनाव में भाजपा को एक बार फिर विजय दिला सकते हैं. लेकिन फिर भी अधिक से अधिक राज्यों को भगवा झंडे के नीचे इकट्ठा करने के लिए पार्टी मशीनरी रात-दिन काम कर रही है. कुछ राज्यों में हार को जीत में बदला जा सकता है. आखिर यह नई भाजपा है.
हालांकि, पर्दे के पीछे काम करने वाले (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पढ़ें), एक अलग कहानी बताते हैं. नई भाजपा जरूरत पड़ने पर राज्यों में मार्शल रेस को बढ़ावा दे रही है. अगर वह ठाकुरों को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल में मुख्यमंत्री बनाए हुए है, तो वह राजनाथ सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल में दूसरे नंबर पर बरकरार रखे हुए है. अगर पार्टी गुजरात में एक पाटीदार को लाती है, तो उसने महाराष्ट्र में एक मराठा को मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित कर दिया.
एकनाथ शिंदे को अपने सबसे भरोसेमंद नेता देवेंद्र फडणवीस की कीमत पर शरद पवार और उद्धव ठाकरे का कद छोटा करने के लिए लाया गया था. इसने अन्य पिछड़ा वर्ग को खुश रखने के लिए शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाकर रखा है. उधर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर राजपूतों को लुभाने के लिए केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बने हुए हैं.
भाजपा को हरियाणा, राजस्थान और उप्र के कुछ हिस्सों में जीत के लिए एक वरिष्ठ जाट नेता की सख्त जरूरत है. वह जाटों को लुभाने के लिए जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति के रूप में स्थापित करना चाहती है. भारत के 75 वर्षों के इतिहास में पहले जाट नेता उपराष्ट्रपति बनेंगे.
हरियाणा में उसके पास पहले से ही जाट नेता दुष्यंत चौटाला हैं, जो उप मुख्यमंत्री हैं. छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और अन्य राज्यों की 109 लोकसभा सीटों पर आदिवासियों को लुभाने के लिए पहली आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति के रूप में लाया गया है. इस प्रकार, भाजपा का थिंक-टैंक 2024 के लिए अथक प्रयास कर रहा है.
गहलोत का नासिक दुःस्वप्न
महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के साथ कई नेताओं की किस्मत बदल सकती है. यह पता चला है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत के खिलाफ नासिक में एक पुलिस मामले में कुछ दिलचस्प मोड़ देखने को मिल सकते हैं. मामला तब सामने आया जब नासिक के एक व्यापारी ने इस साल मार्च में वैभव गहलोत और 13 अन्य के खिलाफ 6.89 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराया था.
कोर्ट ने पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया. मामला आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) को स्थानांतरित कर दिया गया था. कुछ दिनों बाद ही शिकायतकर्ता ने अदालत से कहा कि वह वैभव गहलोत के खिलाफ मामला आगे नहीं बढ़ाना चाहता. इस बीच, उद्धव ठाकरे सरकार गिर गई.
सभी की निगाहें नासिक शिकायतकर्ता पर टिकी हैं कि क्या वह महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद अपना स्वर बदलता है या नहीं. अशोक गहलोत के भाई अग्रसेन गहलोत पर जून में सीबीआई ने छापा मारा था और अब मुख्यमंत्री की नींद उड़ी हुई है.