वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: असंसदीय शब्दों पर फिजूल की बहस

By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 16, 2022 03:15 PM2022-07-16T15:15:07+5:302022-07-16T15:19:49+5:30

संसदीय सचिवालय द्वारा जारी की गई आपत्तिजनक शब्दों की सूची का कोई तुक नहीं है, क्योंकि हर शब्द का अर्थ उसके आगे-पीछे के संदर्भ के साथ ही स्पष्ट होता है। इस मामले में अध्यक्ष का फैसला ही अंतिम होता है।

Vedpratap Vaidik's blog: futile debate on unparliamentary words | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: असंसदीय शब्दों पर फिजूल की बहस

फाइल फोटो

Highlightsलोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा है कि संसद में बोले जाने वाले किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं हैसदन के अध्यक्ष जिन शब्दों और वाक्यों को आपत्तिजनक समझेंगे, उन्हें वे कार्यवाही से हटवा देंगेऐसे में नई आपत्तिजनक शब्दों की सूची जारी करने का कोई तुक नहीं है

संसद के भाषणों में कौन-से शब्दों का इस्तेमाल सांसद लोग कर सकते हैं और कौन-से का नहीं, यह बहस ही अपने आप में फिजूल है। आपत्तिजनक शब्द कौन-कौन से हो सकते हैं, उनकी सूची 1954 से अब तक कई बार लोकसभा सचिवालय प्रकाशित करता रहा है।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने साफ-साफ कहा है कि संसद में बोले जाने वाले किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं है। सभी शब्द बोले जा सकते हैं लेकिन अध्यक्ष जिन शब्दों और वाक्यों को आपत्तिजनक समझेंगे, उन्हें वे कार्यवाही से हटवा देंगे।

यदि ऐसा है तो इन शब्दों की सूची जारी करने का कोई तुक नहीं है, क्योंकि हर शब्द का अर्थ उसके आगे-पीछे के संदर्भ के साथ ही स्पष्ट होता है। इस मामले में अध्यक्ष का फैसला ही अंतिम होता है।

कोई शब्द अपमानजनक या आपत्तिजनक है या नहीं, इसका फैसला न तो कोई कमेटी करती है और न ही यह मतदान से तय होता है। कई शब्दों के एक नहीं, अनेक अर्थ होते हैं। 17वीं सदी के महाकवि भूषण की कविताओं में ऐसे अनेकार्थक शब्दों का प्रयोग देखने लायक है। भाषण देते समय वक्ता की मंशा क्या है, इस पर निर्भर करता है कि उस शब्द का अर्थ क्या लगाया जाना चाहिए। इसी बात को अध्यक्ष ओम बिड़ला ने दोहराया है।

ऐसी स्थिति में रोजाना प्रयोग होनेवाले सैकड़ों शब्दों को आपत्तिजनक की श्रेणी में डाल देना कहां तक उचित है? इतने सारे ‘आपत्तिजनक’ शब्दों की सूची जारी करना अनावश्यक है। हां, सारे सांसदों से यह कहा जा सकता है कि वे अपने भाषणों में मर्यादा और शिष्टता बनाए रखें। किसी के विरुद्ध गाली-गलौज, अपमानजनक और अश्लील शब्दों का प्रयोग न करें।

जिन शब्दों को ‘असंसदीय’ घोषित किया गया है, उनका प्रयोग हमारे दैनंदिन कथनोपकथन, अखबारों और टीवी चैनलों तथा साहित्यिक लेखों में बराबर होता रहता है। यदि ऐसा होता है तो क्या यह संसदीय मर्यादा का उल्लंघन नहीं माना जाएगा? भारत को ब्रिटेन या अमेरिका की नकल करने की जरूरत नहीं है।

ये राष्ट्र आपत्तिजनक शब्दों की कोई सूची जारी करते हैं तो क्या हम भी ऐसा ही करें, यह जरूरी है? इस मामले में हमारे सत्तारूढ़ और विपक्षी नेता एक फिजूल की बहस में तू-तू, मैं-मैं कर रहे हैं।

Web Title: Vedpratap Vaidik's blog: futile debate on unparliamentary words

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