वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः गरीबी और अमीरी की खाई के आंकड़े डरावने

By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 19, 2022 02:25 PM2022-01-19T14:25:28+5:302022-01-19T14:32:35+5:30

भारत में मार्च 2020 से नवंबर 2021 तक लगभग साढ़े चार करोड़ लोग गरीबी की सीढ़ी से भी नीचे यानी घोर दरिद्रता के पायदान पर जा बैठे हैं।

Vedpratap Vaidik's blog figures of the gap between poverty and wealth are scary | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः गरीबी और अमीरी की खाई के आंकड़े डरावने

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः गरीबी और अमीरी की खाई के आंकड़े डरावने

कोरोना की महामारी ने सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाला है, लेकिन जो देश सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, उनमें भारत अग्रणी है। यों तो भारत सरकार और हमारे अर्थशास्त्री जो आंकड़े बताते रहते हैं, उनसे लगता है कि हमारी अर्थव्यवस्था की सेहत बड़ी तेजी से सुधर रही है और हमें निराश होने की जरूरत नहीं है लेकिन स्विट्जरलैंड में चल रहे वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम में ऑक्सफेम की जो रपट जारी की गई, वह भारतीयों के लिए काफी चिंता का विषय है।

भारत में मार्च 2020 से नवंबर 2021 तक लगभग साढ़े चार करोड़ लोग गरीबी की सीढ़ी से भी नीचे यानी घोर दरिद्रता के पायदान पर जा बैठे हैं। अर्थात ये वे लोग हैं, जिनके पास खाने, पहनने और रहने के लिए न्यूनतम सुविधाएं भी नहीं हैं। इसका सरल शब्दों में अर्थ यह है कि भारत के करोड़ों लोग भूखे हैं, नंगे हैं और सड़कों पर सोते हैं। उनकी चिकित्सा का भी कुछ ठिकाना नहीं है। जो अत्यंत दरिद्र नहीं हैं, ऐसे लोगों की संख्या उनसे कई गुना ज्यादा है। वे भी किसी तरह जिंदा हैं। उनका गुजारा भी रो-धोकर होता रहता है। 40 प्रतिशत लोग मध्यम वर्ग के माने जाते हैं। ये भी बेरोजगारी और महंगाई के शिकार हो रहे हैं। ये राष्ट्रीय आय के सिर्फ 30 प्रतिशत पर गुजारा कर रहे हैं। निम्न मध्यम वर्ग के 50 प्रतिशत लोग सिर्फ 13 प्रतिशत राष्ट्रीय आय पर किसी तरह अपनी गाड़ी खींच रहे हैं।

देश के सिर्फ 10 प्रतिशत अमीर लोग कुल राष्ट्रीय आय के 57 प्रतिशत पैसे पर मजे लूट रहे हैं। उनमें भी मुट्ठीभर अति अमीर लोग उस 57 में से 22 प्रतिशत पर हाथ साफ कर रहे हैं। देश में अरबपतियों की संख्या में 40 नए अरबपति जुड़ गए हैं। इतने अरबपति तो यूरोप में भी नहीं हैं। उनकी कुल संपत्ति 53 लाख करोड़ रु. है। देश के सिर्फ 10 अमीरों की संपत्ति इतनी बढ़ी है कि उस पैसे से देश के सारे स्कूल-कॉलेज बिना फीस के 25 साल तक मुफ्त चलाए जा सकते हैं। देश के हर जिले और बड़े शहर में बढ़िया अस्पताल और दवाखाने खोले जा सकते हैं। इसमें शक नहीं है कि हमारे पूंजीपति अपने अथक परिश्रम और व्यावसायिक मेधा का इस्तेमाल करके भारत की संपदा बढ़ा रहे हैं लेकिन हमारी सरकारों का दायित्व है कि इस बढ़ती हुई संपदा का लाभ आम जनता तक पहुंचे। यदि सरकार इस सर्वोच्च सत्य पर ध्यान नहीं देगी तो यह अमीरी और गरीबी की खाई इतनी गहरी होती चली जाएगी कि देश किसी भी दिन अराजकता में डूब सकता है।

Web Title: Vedpratap Vaidik's blog figures of the gap between poverty and wealth are scary

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