वेद प्रताप वैदिक का ब्लॉग: अंग्रेजी के वर्चस्व का खामियाजा

By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 10, 2021 11:28 AM2021-02-10T11:28:05+5:302021-02-11T11:38:02+5:30

नरेंद्र मोदी को पहली बार मैंने यह कहते सुना है कि हर प्रदेश में एक मेडिकल कॉलेज और एक तकनीकी कॉलेज उसकी अपनी भाषा में क्यों नहीं हो सकता है? पूर्व स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा और वर्तमान स्वास्थ्य मंत्नी डॉ. हर्षवर्धन ने मुझसे कई बार वादा किया कि वे मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में शुरू करेंगे लेकिन अब तो प्रधानमंत्री ने भी कह दिया है.

Vedapratap Vedic's blog: the brunt of English supremacy | वेद प्रताप वैदिक का ब्लॉग: अंग्रेजी के वर्चस्व का खामियाजा

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

स्वतंत्र भारत को अंग्रेजी ने कैसे अपना गुलाम बना रखा है, इसका पता मुझे मंगलवार को इंदौर में चला. वहां के अखबारों में खबर थी कि कोरोना का टीका लगवाने के लिए 8600 सफाईकर्मियों को संदेश भेजे गए थे लेकिन उनमें से सिर्फ 1651 ही पहुंचे. बाकी को समझ में ही नहीं आया कि संदेश क्या था?

ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि वह संदेश अंग्रेजी में था. अंग्रेजी की इस मेहरबानी के कारण पांच टीका-केंद्रों पर एक भी आदमी नहीं पहुंचा. भोपाल में भी मुश्किल से 40 प्रतिशत लोग ही टीका लगवाने पहुंच सके.

कोरोना वायरस का टीका तो जीवन-मरण का सवाल है, वह भी अंग्रेजी के वर्चस्व के कारण देश के 80-90 प्रतिशत लोगों को वंचित कर रहा है तो जरा सोचिए कि जो जीवन-मरण की तात्कालिक चुनौती नहीं बनते हैं, ऐसे महत्वपूर्ण मसले अंग्रेजी के कारण कितने लोगों का कितना नुकसान करते होंगे? 

आजादी के 74 साल बाद भी भारतीय लोकतंत्न को अंग्रेजी ने जकड़ रखा है. भारत में ही अंग्रेजी ने एक बनावटी भारत खड़ा कर रखा है. यह नकली तो है ही, नकलची भी है, ब्रिटेन और अमेरिका की नकल करनेवाला. यह देश के 10-15 प्रतिशत मट्ठीभर लोगों के हाथ का खिलौना बन गया है. ये लोग कौन हैं? ये शहरी हैं, ऊंची जाति के हैं, संपन्न हैं, शिक्षित हैं.

इनके भारत का नाम ‘इंडिया’ है. एक भारत में दो भारत हैं. जिस भारत में 100 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं, वह विपन्न, अल्प-शिक्षित है, पिछड़ा है, ग्रामीण है, श्रमजीवी है. भारत में आज तक बनी किसी सरकार ने इस सड़ी-गली गुलाम व्यवस्था को बदलने का दृढ़ संकल्प नहीं दिखाया.

मैंने अब से 55 साल पहले इंडियन स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में अपना अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का शोधग्रंथ हिंदी (मातृभाषा) में लिखने का आग्रह किया तो मुझे वहां से निकाल दिया गया. कई बार संसद में हंगामा हुआ.

अंत में मेरी विजय हुई लेकिन वह ढर्रा आज भी ज्यों-का-त्यों चल रहा है. सारे देश में आज भी उच्च अध्ययन और शोध अंग्रेजी में ही होता है. दुनिया के किसी भी संपन्न और महाशक्ति-राष्ट्र में ये काम विदेशी भाषा में नहीं होते.

इस संदर्भ में नरेंद्र मोदी को पहली बार मैंने यह कहते सुना है कि हर प्रदेश में एक मेडिकल कॉलेज और एक तकनीकी कॉलेज उसकी अपनी भाषा में क्यों नहीं हो सकता? पूर्व स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा और वर्तमान स्वास्थ्य मंत्नी डॉ. हर्षवर्धन ने मुझसे कई बार वादा किया कि वे मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में शुरू करेंगे लेकिन अब तो प्रधानमंत्री ने भी कह दिया है. अब देर क्यों?

Web Title: Vedapratap Vedic's blog: the brunt of English supremacy

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे