वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भूल सुधार की मुद्रा में आरएसएस
By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 11, 2019 07:29 AM2019-09-11T07:29:22+5:302019-09-11T07:33:00+5:30
देश के वंचितों और गरीबों को, वे चाहे किसी भी जाति के हों, न सिर्फ 70-80 प्रतिशत आरक्षण शिक्षा में दिया जाना चाहिए बल्कि उनके भोजन, वस्त्न और निवास की समुचित व्यवस्था भी सरकार और समाज को करनी चाहिए.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सत्तारूढ़ भाजपा की एक ताजा समन्वय गोष्ठी में यह विचार उछला कि संघ जातिगत आरक्षण का स्पष्ट समर्थन करता है. यह गहरे विवाद का विषय इसलिए बन गया कि संघ के मुखिया मोहन भागवत ने दो बार स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि आरक्षण की व्यवस्था पर पुनर्विचार किया जाए.
उन्होंने आरक्षण को खत्म करने की बात नहीं कही थी लेकिन उसका अर्थ यही लगाया गया. माना जा रहा है कि इसी कारण कुछ क्षेत्नों में भाजपा को कुछ आरक्षितों यानी अनुसूचित वर्गो और पिछड़ों के वोट नहीं मिले. दूसरे शब्दों में अब संघ भूल-सुधार की मुद्रा में है.
अब संघ के सह-सरकार्यवाह दत्तात्नय होसबोले ने कह दिया कि संघ यह मानता है कि आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक उसके लाभग्राही उसकी जरूरत महसूस करें. मैं संघ और भाजपा से पूछता हूं कि क्या कभी भारतीय इतिहास में वह दिन आएगा, जब ‘धनी पिछड़े और अनुसूचित’ अपने आप कहेंगे कि हमें आरक्षण नहीं चाहिए?
मोहन भागवत ने जब आरक्षण पर बयान दिए थे तो मैंने उनका डटकर समर्थन किया था, क्योंकि उनमें देशभक्ति का भाव था, जातिवाद का विरोध था, भारत राष्ट्र को सबल बनाने की कामना थी. वंचितों और विपन्नों की सच्ची हित-रक्षा थी. उस समय संघ का रुख अलग था. लेकिन अब वोट बैंक की मजबूरी के आगे संघ भी घुटने टेक रहा है.
अब संघ भाजपा को नहीं, भाजपा संघ को चला रही है.मैं अब से 50 साल पहले आरक्षण का कट्टर समर्थक था लेकिन अब मैं मानता हूं कि जरूरत के आधार पर आरक्षण अभी भी दिया जाना चाहिए लेकिन नौकरियों में नहीं, सिर्फ शिक्षा में.
देश के वंचितों और गरीबों को, वे चाहे किसी भी जाति के हों, न सिर्फ 70-80 प्रतिशत आरक्षण शिक्षा में दिया जाना चाहिए बल्कि उनके भोजन, वस्त्न और निवास की समुचित व्यवस्था भी सरकार और समाज को करनी चाहिए. ये बच्चे बड़े होने पर अपनी योग्यता के आधार पर सरकारी नौकरियां पाएंगे और भारत दिन दूनी और रात चौगुनी रफ्तार से दौड़ने लगेगा.