वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: विरोध प्रदर्शनों से जनता को न हो परेशानी

By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 15, 2021 11:41 AM2021-02-15T11:41:59+5:302021-02-15T11:43:28+5:30

विरोधरहित लोकतंत्र तो बिना ब्रेक की गाड़ी बन जाता है. अदालत ने विरोध-प्रदर्शन, धरने, अनशन, जुलूस आदि को भारतीय नागरिकों का मूलभूत अधिकार माना है।

Vedapratap Vedic's blog: Public should not be troubled by protests | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: विरोध प्रदर्शनों से जनता को न हो परेशानी

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

सर्वोच्च न्यायालय ने जन-प्रदर्शनों के बारे में जो ताजा फैसला दिया है, उससे उन याचिकाकर्ताओं को निराशा जरूर हुई होगी, जो विरोध-प्रदर्शन के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं. यदि किसी राज्य में जनता को विरोध-प्रदर्शन का अधिकार न हो तो वह लोकतंत्र हो ही नहीं सकता.

विपक्ष या विरोध तो लोकतंत्र की मोटरकार में ब्रेक की तरह होता है. विरोधरहित लोकतंत्र तो बिना ब्रेक की गाड़ी बन जाता है. अदालत ने विरोध-प्रदर्शन, धरने, अनशन, जुलूस आदि को भारतीय नागरिकों का मूलभूत अधिकार माना है लेकिन उसने यह भी साफ-साफ कहा है कि उक्त सभी कार्यो से जनता को लंबे समय तक असुविधा होती है तो उन्हें रोकना सरकार का अधिकार है.

अदालत की यह बात एकदम सही है, क्योंकि आम जनता का कोई हुक्का-पानी बंद कर दे तो यह भी उसके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है. यह सरकार का नहीं, जनता का विरोध है. प्रदर्शनकारी तो सीमित संख्या में होते हैं लेकिन उनके धरनों से अनगिनत लोगों की स्वतंत्रता बाधित हो जाती है.

हजारों-लाखों लोगों को लंबे-लंबे रास्तों से गुजरना पड़ता है, धरना-स्थलों के आसपास के कल-कारखाने बंद हो जाते हैं और सैकड़ों छोटे-व्यापारियों की दुकानें चौपट हो जाती हैं. गंभीर मरीज अस्पताल तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देते हैं.

ऐसे धरने यदि हफ्तों तक चलते रहते हैं तो देश को अरबों रुपए का नुकसान हो जाता है. रेल रोको अभियान सड़कबंद धरनों से भी ज्यादा दुखदायी सिद्ध होते हैं. ऐसे प्रदर्शनकारी जनता की भी सहानुभूति खो देते हैं. उनसे कोई पूछे कि आप किसका विरोध कर रहे हैं, सरकार का या जनता का?

इस तरह के धरने चलाने के पहले अब पुलिस की अनुमति लेना जरूरी होगी, वर्ना पुलिस उन्हें हटा देगी. इन धरनों और जुलूसों से एक-दो घंटे के लिए यदि सड़कें बंद हो जाती हैं और कुछ सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा हो जाता है तो कोई बात नहीं लेकिन यदि इनसे मानव-अधिकारों का लंबा उल्लंघन होगा तो पुलिस-कार्रवाई न्यायोचित ही कही जाएगी.

पिछले 60-65 वर्षो में मैंने ऐसे धरने, प्रदर्शन, जुलूस और अनशन दर्जनों बार स्वयं आयोजित किए हैं लेकिन इंदौर, दिल्ली, लखनऊ, वाराणसी, भोपाल, नागपुर आदि शहरों की पुलिस ने उन पर कभी भी लाठियां नहीं बरसाईं. महात्मा गांधी ने यही सिखाया है कि हमें अपने प्रदर्शनों को हमेशा अहिंसक व अनुशासित रखना है. 

Web Title: Vedapratap Vedic's blog: Public should not be troubled by protests

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