वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भारत में दो क्रांतियों का होना जरूरी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 21, 2020 02:04 PM2020-10-21T14:04:58+5:302020-10-21T14:04:58+5:30
वर्तमान सरकार ने नई शिक्षा नीति बनाई है. उसमें कुछ सराहनीय मुद्दे हैं लेकिन वे लागू कैसे होंगे? हमारे बच्चे भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ेंगे लेकिन नौकरियां उन्हें अंग्रेजी के माध्यम से मिलेंगी. ऐसे में सिर्फ मजबूर लोग ही अपने बच्चों को बेकारी की खाई में ढकेलेंगे.
भारत में दो क्रांतियों की तत्काल जरूरत है. इन दो क्रांतियों को करने के लिए सबसे पहले भारत को एक राष्ट्र बनाना होगा. भारत इस वक्त एक राष्ट्र नहीं है. वह ऊपर-ऊपर से एक राष्ट्र दिखता है लेकिन वास्तव में वह एक नहीं, दो राष्ट्र है. एक भारत है और दूसरा ‘इंडिया’ है.
इन दो राष्ट्रों में भारत का बंटना 1947 के भारत विभाजन से भी ज्यादा खतरनाक है. भारत और इंडिया के विभाजन का दोषी कौन नहीं है? दिल्ली में बनी अब तक की सभी सरकारें हैं, हमारी सभी पार्टियां हैं और सभी नेतागण हैं.
कौन-सी ऐसी प्रमुख पार्टी है, जो केंद्र या प्रदेशों में सत्तारूढ़ नहीं रही है लेकिन किसी ने भी आज तक शिक्षा और स्वास्थ्य में कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं किया. सभी अपनी रेलें अंग्रेजों की बनाई पटरी पर ही चलाते रहे हैं.
वर्तमान सरकार ने नई शिक्षा नीति बनाई है. उसमें कुछ सराहनीय मुद्दे हैं लेकिन वे लागू कैसे होंगे? हमारे बच्चे भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ेंगे लेकिन नौकरियां उन्हें अंग्रेजी के माध्यम से मिलेंगी. सिर्फ मजबूर लोग ही अपने बच्चों को बेकारी की खाई में ढकेलेंगे. जो अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ेंगे, वे नौकरियों, रुतबे और माल-मत्ते पर कब्जा करेंगे.
ये ‘इंडिया’ के लोग होंगे. इनमें से जिसको भी मौका मिलेगा, वह विदेश भाग खड़ा होगा. जरूरी यह है कि सारे देश में शिक्षा की पद्धति एक समान हो.
नैतिक शिक्षा, व्यायाम और ब्रह्मचर्य पर जोर दिया जाए. गैर-सरकारी स्कूलों-कॉलेजों को खत्म नहीं किया जाए लेकिन उनमें और सरकारी स्कूल-कॉलेजों में कोई फर्क न हो. न फीस का, न माध्यम का और न ही गुणवत्ता का! सरकारी नौकरियों में से अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त हो.
यही क्रांति स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्न में जरूरी है. चिकित्सा के मामले में भारत बहुत पिछड़ा हुआ है. इंडिया बहुत आगे है. इंडिया के लोग 25-25 लाख रु. खर्च करके कोरोना का इलाज करवा रहे हैं. लेकिन ग्रामीण, गरीब, दलित, आदिवासी लोगों को मामूली दवाइयां भी नसीब नहीं हैं. तो क्या करें? करें यह कि सभी गैर-सरकारी अस्पतालों पर कड़े कायदे लागू करें ताकि वे मरीजों से लूटपाट न कर सकें.
कई नेताओं और अफसरों ने मुझसे पूछा कि गैर-सरकारी अस्पतालों और स्कूलों पर ये प्रतिबंध लगाए जाएंगे तो शिक्षा और चिकित्सा का स्तर क्या गिर नहीं जाएगा? वे सरकारी अस्पतालों और स्कूलों की तरह निम्नस्तरीय नहीं हो जाएंगे?
इसका बेहद असरदार इलाज मैं यह सुझाता हूं कि राष्ट्रपति से लेकर नीचे तक सभी कर्मचारियों और चुने हुए जन-प्रतिनिधियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाए कि वे अपने बच्चों को सिर्फ सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाएं और अपने परिवार का इलाज सिर्फ सरकारी अस्पतालों में ही कराएं. फिर देखें, रातोंरात भारत में शिक्षा और चिकित्सा में क्र ांति होती है या नहीं?