वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: किसान आंदोलन को लेकर बंधती उम्मीद
By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 22, 2021 10:56 AM2021-01-22T10:56:07+5:302021-01-22T10:57:01+5:30
कई बार सरकार सिर्फ नौकरशाहों के इशारे पर चलने लगती है. ऐसे में यह किसान आंदोलन सरकार के लिए अपने आप में गंभीर सबक है.
हाल ही में किसान नेताओं और मंत्रियों के सार्थक संवाद से यह आशा बंधी है कि इस बार का गणतंत्र दिवस का आयोजन बाधित नहीं होगा. यों भी हमारे किसानों ने अपने अहिंसक आंदोलन से दुनिया के सामने बेहतरीन मिसाल पेश की है.
उन्होंने सरकार से वार्ता के लगभग दर्जन भर दौर चलाकर यह संदेश भी दे दिया है कि वे दुनिया के कूटनीतिज्ञों-जितने समझदार और धैर्यवान हैं. उन्होंने अपने अनवरत संवाद के दम पर आखिरकार सरकार को झुका ही लिया है.
सरकार आखिरकार मान गई है कि वह एक-डेढ़ साल तक इन कृषि-कानूनों को ताक पर रख देगी और एक संयुक्त समिति के तहत इन पर सार्थक विचार-विमर्श करवाएगी. अब जो कमेटी बनेगी, वह एकतरफा नहीं होगी.
उसमें किसानों की भागीदारी भी बराबरी की होगी. अब संसद भी डटकर बहस करेगी. किसानों को सरकार का यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार लेना चाहिए.
सरकार का यह प्रस्ताव अपने आप ही यह सिद्ध कर रहा है कि हमारी सरकार कोई भी बड़ा फैसला लेते वक्त उस पर गंभीरतापूर्वक विचार नहीं करती. न तो मंत्रिमंडल उस पर ठीक से बहस करता है, न संसदीय कमेटी उसकी सांगोपांग चीर-फाड़ करती है और न ही संसद में उस पर जमकर बहस होती है.
सरकार सिर्फ नौकरशाहों के इशारे पर चलने लगती है. यह किसान आंदोलन सरकार के लिए अपने आप में गंभीर सबक है.
फिलहाल, सरकार ने जो बीच का रास्ता निकाला है, वह बहुत ही व्यावहारिक है. यदि किसान इसे रद्द करेंगे तो वे अपने आप को काफी मुसीबत में डाल लेंगे. यों भी पिछले 55-56 दिनों में उन्हें पता चल गया है कि सारे विरोधी दलों ने जोर लगा दिया, इसके बाजवूद यह आंदोलन आम तौर पर पंजाब और हरियाणा तक ही सीमित रहा है.
किसानों के साथ पूर्ण सहमति रखनेवाले लोग भी चाहते हैं कि किसान नेता इस मौके को हाथ से फिसलने न दें. पारस्परिक विचार-विमर्श के बाद जो कानून बनें, वे ऐसे हों जो भारत को दुनिया का सबसे बड़ा खाद्यान्न-सम्राट बना दें और औसत किसानों की आय भारत के मध्यम-वर्गो के बराबर हो जाए.