वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: डॉ लोहिया और राजमाता सिंधिया की अप्रतिम यादें

By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 13, 2020 11:32 AM2020-10-13T11:32:52+5:302020-10-13T11:32:52+5:30

भारत और पड़ोसी देशों के कई नरेशों, शाहों और बादशाहों से मेरे संपर्क रहे हैं, लेकिन जैसी सादगी, सज्जनता और आत्मीयता मैंने राजमाता में देखी, वह सचमुच दुर्लभ है. कई अन्य राज परिवारों की महिलाओं ने भी भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन राजमाता विजयाराजे ने भारत के गैर-कांग्रेसी विपक्ष को मजबूत बनाने में जो योगदान किया है, वह अप्रतिम है.

Vedapratap Vedic Blog: Irresistible memories of Dr. Lohia and Rajmata Scindia | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: डॉ लोहिया और राजमाता सिंधिया की अप्रतिम यादें

राजमाता विजयाराजे सिंधिया से भी मेरा परिचय 1967 में ही हुआ

12 अक्तूबर को डॉ. राममनोहर लोहिया की पुण्यतिथि और राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जयंती मनाई जाती है. डॉ. लोहिया अगर आज होते तो 110 साल के हो जाते और राजमाता होतीं तो यह उनका 100 वां साल होता. मेरा सौभाग्य है कि दोनों महान हस्तियों से मेरा घनिष्ठ संबंध रहा. इनसे पत्नकार की तरह नहीं, मेरा संबंध शुरू हुआ एक छात्न-नेता के रूप में! जनवरी 1961 में यानी अब से 59 साल पहले उज्जैन में अंग्रेजी हटाओ सम्मेलन हुआ. डॉ. लोहिया उसके मुख्य प्रेरणा-स्नेत थे. मैं उन दिनों क्रिश्चियन कॉलेज इंदौर में पढ़ता था.

मैंने डॉ. लोहिया को अपने कॉलेज में आमंत्रित किया. हमारे प्राचार्य डॉ. सी. डब्ल्यू. डेविड कांग्रेसी थे. उन्होंने कहा कि लोहिया तो नेहरुजी को भला-बुरा कहता है, तुमने उसे यहां कैसे बुला लिया? मैंने कहा कि वे तो आएंगे ही और ब्रॉनसन हॉल में उनका भाषण होगा ही. आपको जो करना है, कीजिए. डेविड साहब ने उस दिन की छुट्टी ले ली और डॉ. लोहिया का भाषण मेरे कॉलेज में जमकर हुआ. तब से डॉ. लोहिया के साथ 1967 तक मेरा घनिष्ठ संबंध रहा. उनके असंख्य संस्मरण फिर कभी लिखूंगा. आज के दिन मैं यही कह सकता हूं कि स्वतंत्न भारत में डॉ. लोहिया जैसा प्रखर बौद्धिक, निर्भय, त्यागी और महान विपक्षी नेता कोई दूसरा नहीं हुआ.

राजमाता विजयाराजे सिंधिया से भी मेरा परिचय 1967 में ही हुआ. गुना से आचार्य कृपलानी ने संसद का चुनाव लड़ा. उनकी पत्नी सुचेताजी ने मुझसे कहा कि दादा (आचार्यजी) और राजमाताजी, दोनों ने कहा है कि आप चुनाव-प्रचार के लिए मेरे साथ गुना चलें. इंदौर में सारे मध्यप्रदेश के छात्न पढ़ने आते थे. मैं छात्न आंदोलनों में कई बार जेल काट चुका था. मालवा के लोग मुङो जानने लगे थे. दिल्ली में मैं सप्रू हाउस में रहता था और कृपलानीजी सामने ही केनिंग लेन में रहते थे. लगभग रोज उनसे मिलना होता था. गुना में मुङो देखकर राजमाताजी बहुत खुश हुईं.

उसके बाद उनके साथ मेरे संबंध निरंतर बने रहे. वे मेरे पुराने घर (प्रेस एनक्लेव) और पीटीआई (दफ्तर) भी अपने आप आ जाया करती थीं. मेरे घर पर राम मंदिर को लेकर मुस्लिम नेताओं से कई गोपनीय मुलाकातें भी उन्होंने कीं. वे मुङो कहती थीं कि मेरे लिए आप माधव (उनके बेटे) की जगह ही हैं. उनके कई संस्मरण फिर कभी. यहां इतना ही कह दूं कि भारत और पड़ोसी देशों के कई नरेशों, शाहों और बादशाहों से मेरे संपर्क रहे हैं, लेकिन जैसी सादगी, सज्जनता और आत्मीयता मैंने राजमाता में देखी, वह सचमुच दुर्लभ है. कई अन्य राज परिवारों की महिलाओं ने भी भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन राजमाता विजयाराजे ने भारत के गैर-कांग्रेसी विपक्ष को मजबूत बनाने में जो योगदान किया है, वह अप्रतिम है.

Web Title: Vedapratap Vedic Blog: Irresistible memories of Dr. Lohia and Rajmata Scindia

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