वेदप्रताप वैदिक का कॉलम: अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाएं
By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 10, 2019 02:53 PM2019-09-10T14:53:41+5:302019-09-10T14:53:41+5:30
इन सफल कामों का श्रेय इस सरकार को जरूर दिया जाना चाहिए. लेकिन आर्थिक मोर्चे पर इसकी गिरावट इतनी तेज है कि यदि अगले कुछ माह में वह नहीं संभली तो ऊपर गिनाई गई उपलब्धियों पर पानी फिरते देर नहीं लगेगी.
नई मोदी सरकार के पहले सौ दिन कैसे रहे, इस विषय पर पक्ष और विपक्ष में जबर्दस्त दंगल छिड़ा हुआ है. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि हमने पहले 100 दिन में वह कर दिखाया है, जो कांग्रेस अपने साठ साल के राज में नहीं कर सकी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी तथा उनकी बहन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा दावा कर रहे हैं कि पिछले 100 दिनों में देश ने तानाशाही, ढोंग, अराजकता और झूठे दावों का नंगा नाच देखा है.
ये दोनों अतिवादी बयान हैं. इसमें शक नहीं है कि तीन तलाक, कश्मीर में धारा 370 के प्रावधान का खात्मा, सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख की नियुक्ति का संकल्प, बालाकोट का हमला जैसी कुछ कार्रवाइयां पिछले 100 दिन में ऐसी हुई हैं, जो पिछली कांग्रेसी और गैर-कांग्रेसी सरकारें भी नहीं कर सकी हैं.
इसके अलावा हवाई अड्डों, सड़कों और रेल-पथ का निर्माण, किसानों को सीधी सहायता, स्वच्छ भारत अभियान, बैंकों का विलय, जल-सुरक्षा, ग्राम-विकास आदि कामों में उल्लेखनीय प्रगति इस सरकार ने वैसे ही की है, जैसी कि अन्य सरकारें करती रही हैं. विदेश नीति के क्षेत्न में भारत ने अमेरिका, फ्रांस, रूस और कुछ प्रमुख मुस्लिम राष्ट्रों के साथ पिछले दिनों में इतने अच्छे संबंध बना लिए हैं कि कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान को उसने किनारे लगा दिया है.
इन सफल कामों का श्रेय इस सरकार को जरूर दिया जाना चाहिए. लेकिन आर्थिक मोर्चे पर इसकी गिरावट इतनी तेज है कि यदि अगले कुछ माह में वह नहीं संभली तो ऊपर गिनाई गई उपलब्धियों पर पानी फिरते देर नहीं लगेगी. जब लोग भूखे मरेंगे तो उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि किसने किसको तलाक दे दिया या सशस्त्र सेनाओं का प्रमुख कौन बन गया या कश्मीर में धारा 370 है या नहीं?
इन मुद्दों पर आजकल हम सब सरकार के भजन गा रहे हैं लेकिन कहा गया है कि ‘भूखे भजन न होय गोपाला.’ सरकार भी परेशान है और वह रोज ही कुछ न कुछ कदम उठा रही है ताकि देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाए. पिछले 100 दिनों में सरकार का कुल रवैया काफी बहिर्मुखी रहा है और उसे इसका श्रेय भी मिला है लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है उसका अंतर्मुखी होना. यह ठीक है कि आज भारत में विपक्ष अधमरा हो चुका है लेकिन यदि आर्थिक असंतोष फैल गया तो जनता ही विपक्ष की भूमिका अदा करने लग सकती है.