वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हिंदी बहन है, मालकिन नहीं
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 22, 2018 04:59 AM2018-10-22T04:59:00+5:302018-10-22T04:59:00+5:30
हिंदी अन्य भाषाओं को दबाने नहीं, उन्हें उठाने की भूमिका निभाएगी। वह अन्य भाषाओं की भगिनी-भाषा है, बहन है, मालकिन नहीं।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने हिंदी के बारे में ऐसी बात कह दी है, जिसे कहने की हिम्मत महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डॉ। राममनोहर लोहिया में ही थी। उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘अंग्रेजी एक भयंकर बीमारी है, जिसे अंग्रेज छोड़ गए हैं।’
अंग्रेजी का स्थान हिंदी को मिलना चाहिए जो कि ‘भारत को सामाजिक-राजनीतिक व भाषायी दृष्टि से जोड़नेवाली भाषा है।’
नायडू के इस बयान ने भारत के अंग्रेजीदासों के दिमाग में खलबली मचा दी है। कई अंग्रेजी अखबारों और टीवी चैनलों ने वेंकैया को आड़े हाथों लिया है।
अब भी उनके खिलाफ अंग्रेजी अखबारों में लेख निकलते जा रहे हैं। क्यों हो रहा है, ऐसा? क्योंकि उन्होंने देश के सबसे खुर्राट, चालाक और ताकतवर तबके की दुखती रग पर उंगली रख दी है। यह तबका उन पर ‘हिंदी साम्राज्यवाद ’ का आरोप लगा रहा है और उनके विरुद्ध उल्टे-सीधे तर्को का अंबार लगा रहा है।
नायडू ने यह तो नहीं कहा कि अंग्रेजी में अनुसंधान बंद कर दो, अंग्रेजी में विदेश नीति या विदेश-व्यापार मत चलाओ या अंग्रेजी में उपलब्ध ज्ञान-विज्ञान का बहिष्कार करो। उन्होंने तो सिर्फ इतना कहा है कि देश की शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, प्रशासन आदि जनता की जुबान में चलना चाहिए।
वे अंग्रेजी का नहीं, उसके वर्चस्व का विरोध कर रहे थे। यदि भारत के पांच-दस लाख छात्र अंग्रेजी को अन्य विदेशी भाषाओं की तरह सीखें और बहुत अच्छी तरह सीखें तो उसका स्वागत है लेकिन 20-25 करोड़ छात्रों के गले में उसे पत्थर की तरह लटका दिया जाए तो क्या होगा? उनकी मौलिकता नष्ट हो जाएगी, वे नकलची बन जाएंगे। सत्तर साल से भारत में यही हो रहा है।
हिंदी अन्य भाषाओं को दबाने नहीं, उन्हें उठाने की भूमिका निभाएगी। वह अन्य भाषाओं की भगिनी-भाषा है, बहन है, मालकिन नहीं। ऐसा ही है। तभी तो तेलुगुभाषी नायडू ने इतना साहसिक बयान दिया है। हमारे तथाकथित राष्ट्रवादी संगठनों और नेताओं को उपराष्ट्रपति से कुछ सीख लेनी चाहिए।